Monday, October 26, 2009

विश्वावा शिम्बोर्सका की कविता

विश्वावा शिम्बोर्सका पोलेंड में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली कवयित्री हैं। 1996 में उन्हें नोबेले पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनकी कविताओं को कई भाषाओं में अनुवादित किया जा चुका है।
यहां प्रस्तुत है उनकी एक कविता -

अंत और आरंभ

हर युद्ध के बाद
किसी-न-किसी को सब कुछ ठीक करना पड़ता है
आखिर चीजें अपने आप तो ठिकाने नहीं लग जायेंगी।

किसी को सड़क से मलबा हटाना पड़ता है
ताकि लाशों से भरी गाड़िया गुज़र सकें।

कोई भारी कदमों से चला जाता है
कीचड़ और राख़ से होते हुए,
सोफों के स्प्रिंग कांच के टुकड़ों
और खून सने कपड़ों से बचते हुए

किसी को घसीट कर लाना होता है एक खंभा
गिरती दिवारों से टिकाने के लिये,
किसी को खिड़कियों में कांच लगाने होते हैं,
चौखट में दरवाजा लगाना होता है...

कोई फोटोग्राफर मुस्कुराने के लिये
नहीं कहता बरसों तक।
सभी कैमरे किसी और मोर्चे पर चले गये हैं।
फिर से बनाने हैं पुल और रेलवे-स्टेशन
इसके लिये चीथड़े-चीथड़े हुए कमीजों की आस्तीनें चढ़ानी होंगी।

कोई हाथ में झाड़ू लिये याद करता है
कैसे हुआ यह सब
और कोई सुनता है हिलाते हुए अपना सिर
जो किसी तरह साबुत रह गया है।
लेकिन बाकी सब दौड़-धूप में लगे हैं
किसी कदर बोरियत से भरे हुए।

कभी-कभार ही सही
कोई अब भी गड़े मुर्दों की तरह
उखाड़ लाता है झाड़ियों के पीछे से
एक जंग खाई बहस और कचरे के ढेर में डाल जाता है।

वे जो ये सब जानते थे
उन्हें रास्ता छोड़ देना होगा
उनके लिये जो बहुत कम जानते हैं या उससे भी कम
यहां तक कि कुछ भी नहीं जानते।

और उस घास पर
जो सारे कारणों और परिणामों को
दबा लेती है अपने नीचे
दांतों में तिनका दबाये कोई होगा लेटा
अनमना सा देखते हुए
बादलों का बिखर जाना।

अनुवाद - विजय अहलुवालिया

7 comments:

Ashok Kumar pandey said...

ग़ज़ब की कविता और उत्तम अनुवाद

sanjay vyas said...

युद्ध और ध्वंस के स्थाई प्रभावों को चिन्हित करने वाली बहुत बड़ी कवयित्री.
अनुवाद कई जगह ख़ास कर कबाड़खाना पर पढ़ चूका हूँ.यहाँ इनकी कविता पढ़वाने के लिए आभार.

kishore ghildiyal said...

yudhh ki vibhitsta darsati ek maarmik kavita
jyotishkishore.blogspot.com

Udan Tashtari said...

जबरदस्त!! भावानुवाद बहुत शानदार..आभार प्रस्तुत करने का.

शरद कोकास said...

शिम्बोर्स्का मेरी पसन्दीदा कवयित्री हैं । यह कविता और यह अनुवाद बहुत सुन्दर बन पड़ा है । बधाई ।

अजेय said...

अच्छा अनुवाद. शायद अच्छी कविता का ही अच्छा अनुवाद हो सकता है.

सागर said...

सटीक निशाना ! कवयित्री का, कविता का, दृश्य का, भावः का, सत्य का, अनुवादक का और आपका भी...