शार्ट लिस्टिंग की युक्ति का एक नाम आलोचना हो गया है
स्मृतियों की सघनतामें दबे छुपे समय कोपकड़ने की कोशिश संवेदनाओं के जिस धरातल पर पहुंचाती है, वहां एक ऎसे दिन की याद है जो सूरज की कोख से जन्म लेती धूप और चन्दा की कोख में पनपती चांदनी के खूबसूरत बिम्ब की संरचना करती है। बिना किसी दावे के , सिर्फ़ सहज अनुभूतियों का घना विस्तार कविता को सिर्फ़ एक मित्र के जन्मदिन की स्मृतियों तक ही सीमित नहीं रहने देता। सहजता का एक और द्रश्य विश्वास में भी दिखाई देता है। भाई प्रदीप कांत से मेरा परिचय मात्र उनके लिखे के कारण है। उन्हें उनके ब्लाग तत्सम पर पहले पहले पढ़ने का अवसर मिला। इससे ज्यादा मैं उनके बारे में कुछ नहीं जानता। उनकी कविताओं और इधर दो एक बार उनसे फ़ोन पर हुई बातचीत से जो तस्वीर मेरे भीतर बनती है उसमें एक सादगी पसंद सहज और प्रेमी व्यक्ति आकर लेता है। बिना हो-हल्ले के चुपचाप अपने काम में जुटा मनुष्य। बाद में उनके बारे में और जुटाई जानकारियां चौंकाने वाली थी कि वे लगातार लिखते और महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं (कथादेश, इन्द्रपस्थ भारती, साक्षात्कार, सम्यक, सहचर ,अक्षर पर्व आदि-आदि) में छपते रहने वाले रचनाकार होते हुए भी मेरे लिए अनजाने ही थे। यूं मैं इसे अपनी व्यक्तिगत कमजोरी स्वीकार करता हूं कि ब्लाग से पहले मैं कभी उन्हें एक कवि के रूप में क्यों न जान पाया ! पर जब इसकी पड़ताल करता हूं तो पाता हूं साहित्य कि दुनिया के प्रति मेरे आग्रह अनायास नहीं हुए। दरअसल साहित्य की गिरोहगर्द स्थितियों ने आलोचना के नाम पर जिस तरह से शार्ट लिस्टिंग की है उसके चलते बहुत सा प्रकाशित भी बिना पढ़े छूट जा रहा है। ऎसे ही न जाने कितने रचनाकार है जिनकी रचनाएं समकालीन रचनाजगत के बीच महत्वपूर्ण होते हुए भी या तो अप्रकाशित रह जाने को अभिशप्त है या हल्ला-मचाऊ आलोचनात्मक टिप्पणीयों के चलते पाठकों तक पहुंचने से वंचित रह जा रही है।
प्रस्तुत है कवि प्रदीप कांत की दो कविताएं।
वि.गौ.
प्रदीप कांत
विश्वास
स्कूल जाते
बच्चे के बस्ते में
चुपके से डाल देता हूं
कुछ अधूरी कविताएँ
इस विश्वास के साथ
कि वह
पूरी करेगा इन्हें
एक दिन
मित्र के जन्म दिन पर
दीवार पर टंगी है
मुस्कुराती हुई स्मृति
जो स्पर्श कर रही है
तुम्हारे और मेरे बीच
कुछ न कुछ
स्थापित होने की प्रक्रिया को
पता नहीं
सूरज की कोख से
कब जन्मी धूप
चन्दा की कोख में
कब पनपी चांदनी
लेकिन अब भी अंकित है
मन के किसी कोने में
आंचल में बन्धे
एक स्वप्न के
साकार होने की तिथि
आज भी वही दिन है
और मैं देख रहा हूं
ढेर सारी मोमबित्तयों की
थरथराती लौ
अनाम से रह गए कवियों की कविताओं की प्रस्तुति टिप्पणी के साथ आगे भी जारी रहेगी।
बहुत महत्वपूर्ण बात कही है आपने कि शोर्ट लिस्टिंग की प्रवृत्ति के कारण बहुत सी रचनाएँ अप्रकाशित ही रह जाती हैं भले ही वे कहीं न कहीं छाप चुकी हों. दोनों कवितायेँ पंक्तियों के तरतीब से किये गए विन्यास से कहीं आगे होकर, भीतर स्पर्श करती हैं. उत्प्रेरक की तरह हमारे स्मृति कोशों को संवेदित करतीं.
12 comments:
बहुत ही अच्छी कविता है "विश्वास"
dono hi kavitaayen achcii lagiin.
दोनों बहुत सुंदर कविताएँ हैं। एक में भविष्य के लिए आशा और विश्वास दोनों हैं और दूसरी में दोस्त के लिए जज्बा।
khoob bhalo..........
सुंदर कविताएं। आप दोनों को बधाई।
बहुत महत्वपूर्ण बात कही है आपने कि शोर्ट लिस्टिंग की प्रवृत्ति के कारण बहुत सी रचनाएँ अप्रकाशित ही रह जाती हैं भले ही वे कहीं न कहीं छाप चुकी हों.
दोनों कवितायेँ पंक्तियों के तरतीब से किये गए विन्यास से कहीं आगे होकर, भीतर स्पर्श करती हैं. उत्प्रेरक की तरह हमारे स्मृति कोशों को संवेदित करतीं.
donoh kavitayen bahut hi beautiful hain.
Madhu Toley
अच्छी कविताएं। बधाई।
''tumhare aur mere bich
kuch n kuch
sthapit hone ki prakriya........''
waah!!!!!!!!
dono hi kavitaye achhi hai per mujhe to pahli wali kavita zyada achhi lagi...
पहली वाली.
bahut badhiya kavitayen.
badhai ho.
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