अजेय ने कुछ कविताऐं भेजी हैं (उनमें से एक यहां प्रस्तुत है) मैं नहीं जानता कि लिखे जाते वक्त कवि के भीतर कौन से बिम्ब तैर रहे होगें। कोसी नदी की बाढ़ और उसमें डूब रहा सब कुछ, नदी कहने भर से ही मुझे, उस व्यथित कर देने वाले मंजर में डूबो रहा है।
लाहुल (लाहौल- स्पीति ) में रहने वाले अजेय की कविता में नदी अपने सौन्दर्य भरे चित्रों के साथ होते हुए भी ऐसी ही स्थितियों के बिम्ब अनायास प्रकट नहीं कर रही हो सकती है - अलग-अलग बिछे हुए/पेड़/मवेशी/कनस्तर/डिब्बे लत्ते/ढेले/कंकर/---
अजेय
ajeyklg@gmail.com
इस उठान के बाद नदी
इस नदी को देखने के
लिएआप इसके एक दम करीब जाएँ।
घिस-घिस कर कैसे कठोर हुए हैं और सुन्दर
कितने ही रंग और बनक लिए पत्थर।
उतरती रही होगीं
पिछली कितनी ही उठानों पर
भुरभुरी पोशाकें इन की
कि गुमसुम धूप खा रही
चमकीली नंगी चट्टानें
उकड़ूँ ध्यान मगन
और पसरी हुई कोई ठाठ से
आज जग उतर चुका है पानी।
अलग-अलग बिछे हुए
पेड़
मवेशी
कनस्तर
डिब्बे
लत्ते
ढेले
कंकर
रेत---
कि नदी के बाहर भी बह रही थीं
कुछ नदियां शायद
उन्हें करीब से देखने की ज़रूरत थी।
कुछ बच्चे मालामाल हो गए अचानक
खंगालते हुए
लदे-फदे ताज़ा कटे कछार
अच्छे से ठोक- ठुड़क कर छांट लेते हर दिन
पूरा एक खज़ाना
तुम चुन लो अपना एक शंकर
और मुट्ठी भर उसके गण
मैं कोई बुद्ध देखता हूँ अपने लिए
हो सके तो सधे पैरों वाला
एकाध अनुगामी श्रमण
और खेलेंगे भगवान-भगवान दिन भर।
ठूँस लें अपनी जेबों में आप भी
ये जो बिखरी हुई हैं नैमतें
शाम घिरने से पहले वरना
वो जो नदी के बाहर है
पानी के अलावा
जिसकी अलग ही एक हरारत है
गुपचुप बहा ले जाएगा
अपनी बिछाई हुई चीज़ें
आने वाले किसी भी अंधेरे में
आप आएँ
देख लें इस भरी पूरी नदी को
यहां एक दम करीब आकर।
9 comments:
सुन्दर। लिखते रहें। लिखवाते रहें।
गहरी मार्मिक कविता है..आभार अजेय जी की कविता पेश करने का.
इस नदी को देखने के
लिएआप इसके एक दम करीब जाएँ।
घिस-घिस कर कैसे कठोर हुए हैं और सुन्दर
कितने ही रंग और बनक लिए पत्थर।
sunder shed hai
1995 sept.
Kullu ki Vyasa bhayanak uthaan par thi.ye bimb mere adhyapak pita k us chhote se baagiche k hain jo us baadh me beh gaya.us me mere carpenter Taau ji ka ghar bhi tha.
do gareebon ki khoon paseene ki kamai...
mujhe yaad hai taauji ne pita ko kya santvana di thee..jis ka tha vahi le gaya..aur mujhe bhi dukh ko bichha -2 kar dayaneey banana sahanu bhooti batorna achha nahi
lagta.me sant nahi hoon ki bhool hi jaaun....ye bimb mujhe aage bhi haunt karenge...aur mere lekhan me aayenge.... beshak bahut chhhan kar...maidaani nadiyon k baadh ka anubhav apan ko nahi hai vijay bhai,lekin TV Par nadi ki tabahi dekh kar mujh ye kavitayen chhapvana paasangik laga. nadi kitna bhi kroor kyon n ho , me us k paksh me khada rehna chahta hoon.akhir sab kuchh useeka diya hai....bakaul taauji !
bhut sundar rachna. jari rhe.
अजेय युवतर कवियो मे बहुत तेज़ी से अपनी अलग पहचान बनाते जा रहे है ! मेरी शुभकामना !
achhi kavita.badhai.
अजेय की कविताएँ पहले भी यहाँ पढ़ी हैं। कहना पड़ेगा हर बार पहले से ज़्यादा प्रभावित हुआ।
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