Monday, July 20, 2009

महिला समाख्या एवं साहित्य अकादमी के कार्यक्रम


18 एवं 19 जुलाई 2009 देहरादून के हिसाब से साहित्यक, सामाजिक रूप से हलचलों भरे रहे। एक ओर महिला समाख्या, उत्तराखण्ड एवं चेतना आंदोलन के द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित सम्मेलन जिसमे शिक्षा का अधिकार बिल जो कि लोकसभा में पारित होना है पर समझदारी बनाने तथा बिल के जनपक्षीय पहलुओं पर विचार विमर्श किया गया तो वहीं दूसरी ओर साहित्य अकादमी दिल्ली की उस महती योजना का पहला आयोजन- रचना पाठ।
शिक्षा विद्ध अनिल सदगोपाल,


गांधीवादी और जनपक्षीय पहलुओं पर अपनी स्पष्ट राय रखने वाले डा ब्रहमदेव शर्मा, इतिहासविद्ध शेखर पाठक के अलावा नैनीताल समाचार के सम्पादक राजीव लोचन शाह, पी.सी.तिवारी, शमशेर सिंह बिष्ट के साथ-साथ कई अन्य सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलनो में हिस्सेदारी करने वाले कार्यकर्ताओं ने शिक्षा के सवाल पर विचार विमर्श किया। कुछ ऐसे सवाल जो इस दौरान उठे और जिन पर सहमति और असहमति की एक स्थिति बनती है उस बाबत विस्तार से लिखे जाने का मन है, उम्मीद कर सकते है कि जल्द ही उसे लिखा जाएगा।


वहीं दूसरी ओर 19 जुलाई के एक दिवसीय कार्यक्रम में साहित्य अकादमी दिल्ली के द्वारा आयोजित रचना पाठ के चार सत्र एक अनुभव के रूप में दर्ज हुए। दो सत्र कविताओं पर थे जिसमें विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, प्रयाग शुक्ल, गिरधर राठी, लीलाधर जगूड़ी, शेरसिंह बिष्ट, देवसिंह पोखरिया, दिनेश कुमार शुक्ल, शंभु बादल, बुद्धिनाथ मिश्र, माधव कौशिक, हरिश्चंद्र पांडेय, रति सक्सेना, हेमन्त कुकरेती, रमेश प्रजापति, यतीन्द्र मिश्र के साथ-साथ मैंने भी अपनी कविताओं का पाठ किया।

कहानी के सत्रों में विद्यासागर नौटियाल, बटरोही, सुभाष पंत, मंजुला राणा, अल्पना मिश्र, ओम प्रकाश वाल्मिकि एवं जितेन ठाकुर ने अपनी-अपनी कहानियों के पाठ किए।

वे कविताएं जिनका मैंने पाठ किया, उनकी रिकार्डिंग प्रस्तुत है जो कि कार्यक्रम के दौरान नहीं हुई है, अलबत्ता उन्हें अलग से रिकार्ड कर यहां प्रस्तुत किया है।




डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें।

6 comments:

Vineeta Yashsavi said...

kavita to achhi hai hi par apki awaz ke sath to bahut bahut achhi lagi...

अजेय said...

sundar paath .

तल्ख़ ज़ुबान said...

जनाब विजय गौड़ साहब!
क्या रिपोर्ट लगायी है आपने. साहित्य अकादमी की सारी पोल खोल कर रख दी.
ये एक बेशर्म संस्था है. हिन्दी सलाहकार मंडल की उत्तराखंड प्रतिनिधि मंजुला राणा एक अफ़सानानिगार भी हैं - पहली बार पता लगा. कवियों की सूची में भी कुछ नाम ना कभी सुने ना पढ़े ! और ना कभी आगे सुनने पढ़ने को मिलेंगे! क्या ये कार्यक्रम उसी देहरादून में हुआ जहाँ नवीन नैथानी,सुभाष पंत, राजेश सकलानी वग़ैरह रहते है? इन संस्थाओं का यही काम रह गया है कि कुछ बड़े लेखकों के साथ अपने चमाचो को खड़ा कर उनका बौना क़द सुधारने की असफल कोशिश करो. एक बटरोही जी का नाम भी देखा गया जो खुद महादेवी वर्मा के नाम की रोटी खाते हैं और अक्सर ऐसे समारोह आयोजित कर अपने साथियों को भी खिलाते हैं. उनकी नेकनामी देखने के लिए हंस के पिछले दो अंक पढ़ें या राजकमल से ख़रीद कर दूधनाथ सिंह की महादेवी जी पर लिखी किताब पढ़ें.

जय हो पंडित विश्वनाथ तिवारी जी महाराज !

अजेय said...

ऐसा था तो बहुत गलत था विजय भाई!
इस बात को उजागर करने के लिए तल्ख ज़बान को बधाई.

विजय गौड़ said...

मैं कुछ समझा नही अजेय जी क्या कहना चाह्ते हैं आप?

शिरीष कुमार मौर्य said...

मुझे लगता है तल्ख़ जुबान के पीछे हमारा कोई जाना पहचाना चेहरा है. अकादमी के बारे में तो " केशव कहि न जाये क्या कहिये" वाली स्थिति है. लेकिन बटरोही जी पर इस एकपक्षीय हमले का मैं विरोध करता हूँ. ये तल्ख़ जुबान चाहे तो कह सकती है कि शिरीष मौर्य ने भी महादेवी जी की रोटी खायी है.