Friday, January 22, 2010
डॉ0 कालिका प्रासाद चमोला नही रहे
केन्द्रीय विद्यालय संगठन , जयपुर के सहायक आयुक्त डा। कालिका प्रासाद चमोला का दिनॉक 13.01.2010 को निधन हो गया । वे 46 वर्ष के थे और पिछले चार माह से लीवर की बीमारी से पीड़ित थे। तबियत बिगड़ने पर उन्हे दिनॉक 14.01.2010 को जयपुर के अपेक्स अस्पताल मे भरती किया गया जहॉ अपराह्रन 15:45 पर उनका निधन हो गया। उनके परिवार में पत्नी के अलावा दो पुत्र हैं।
दिनॉक 30.06.1963 को रूद्रप्रयाग में जन्मे चमोला आरॅभ से ही मेधावी छात्र थे। एमएससी गणित विषय में गोल्ड मेडलिस्ट होने के पश्चात उन्होने पीएचडी की और केन्द्रीय विद्यालय में पीजीटी अध्यापक के रूप में नौकरी आरम्भ किया। उसके पश्चात उन्होनें तिब्बती विद्यालय संगठन दिल्ली में एजूकेशन अधिकारी के रूप में कार्य किया। सन 2001 में वे केन्द्रीय विद्यालय पाण्डिचेरी में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त हुये। पाण्डिचेरी रहते हुये उन्होने गणित की दो शोधपरक् पुस्तकें लिखीं - वैदिक अर्थमेटिक्स एण्ड डेवलपमेंट ऑफ बेसिक कान्सेप्टस् तथा दूसरी एलिमेन्टरी वैदिक अलजेबरा ( दोनो ही सूरा प्रकाशन चेन्नई से सन 2006 में प्रकाशित)। वे विद्यालयं में स्कूली शिक्षा के अतिरिक्त रचनात्मक गतिविधियों की ओर भी विशेष ध्यान देते थे। सन 2006 में पाडिचेरी में प्रथम मैथमैटिक्स ओलम्पियाड कराने का श्रेय उन्हीं को जाता हैं।
बाद में सन 2007 जुलाई में केन्द्रीय विद्यालय संगठन के सहायक आयुक्त बन कर जयपुर आये। नई जिम्मेदारी में वे अत्यन्त व्यस्त रहते। प्राय: वे दौरे पर जयपुर से बाहर रहते और जब जयपुर में रहते भी तो देर रात तक कार्यालय में रहते। इतनी व्यस्तताओं के बावजूद उनकी दो अन्य पुस्तकें बाजार में आईं- वैदिक मैथमैटिक्स फॉर बिगनर्स (धनपत रॉय प्रकाशन नई दिल्ली 2007 ) तथा द ग्रेट आर्किटेक्ट्स ऑफ मैथमैटिक्स वाल्यूम 1 ( आर्य बुक डिपो नई दिल्ली 2008)। इसके अतिरिक्त निम्न लिखित पुस्तकों पर कार्य कर रहे थे-
1। मैथमैटिक्स डिक्शनरी
2। द ग्रेट आर्किटेक्ट्स ऑफ मैथमैटिक्स वाल्यूम 2
3। द पायोनियर ऑफ मैथमैटिक्स
4। मैथमैटिकल एम्यूज़मेन्ट्स
वैदिक मैथमैटिक्स फॉर बिगनर्स को केन्द्रीय विद्यालय संगठन के पुस्तकालयों के लिये अनुमोदित किया गया है।
डा कालिका प्रासाद चमोला का साहित्य से भी गहरा सरोकार रहा है। अस्सी नब्बे के दशक में जब वे देहरादून में थे तो वे रचनात्मक रूप से काफी सक्रिय थे। साहित्यिक गोष्ठियों में नियमित उनकी उपस्थिति रहती। उन्हे 1991 का कादम्बरी का युवा कहानीकार मिला था। पाण्डिचेरी और जयपुर रहते हुये भी वे साहित्य के लिए बेचैन रहते थे और कई बार अपनी व्यस्तता को कोसते रहते। फिर भी इस दौरान उन्होने "शिकार", "झड़ते काफल" तथा "एक और पलायन" जैसी कहानियॉ लिखा। जयपुर आते ही वे वरिष्ठ साहित्यकार विजयदान देथा से मिलने उनके घर बोस्न्दा ( जोधपुर) गये। साहित्य के प्रति उनके अनुराग का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा।
किसी एक नौकरी में लम्बे समय न टिके रहने से अस्थायित्व उनके जीवन का मुख्य चरित्र बन गया था। नई नौकरी को नई जगह से शुरू करने से वे हमेशा व्यस्त रहते। ऐसा नही था कि वे अपने बेहतर जीवन या व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए "कैरियरिस्ट" थे। वरन् यह कैसे होता कि इतनी बड़े पद पर आसीन व्यक्ति के पास चौपहिया तो क्या दुपहिया भी न हो। दरअसल जब उन्होने केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापक के रूप में नौकरी शुरू की तो उस समय केन्दीय विद्यालयों का स्तर का ग्राफ एक ऊंचाई को छूकर गिरना शुरू हो गया था। संवेदनशील चमोला इसे लेकर काफी बेचैन रहते। उन्होने सोचा कि सुधारने का वे कितना दृढ़ संकल्प क्यों न ले ले एक अध्यापक के रूप में तो केवल पहाड़ को खिसकाने जैसा ही कोशिश होती। इस कृत संकल्प के साथ उन्होने प्रशासनिक सेवा की राह चुना। और प्रशासक बनते ही संगठन से जुड़े विद्यालयों को सुधारने की मुहिम में लग गये। इसीलिए वे आये दिन विभिन्न केन्द्रीय विद्यालयों के दौरे पर रहतें। वे विद्यार्थियों मे नैतिक उत्थान के प्रति काफी चिन्तित रहते और इस क्षेत्र में सक्रिय संगठनों या संस्थाओं से अपने स्कूलों में कार्यशाला करवाने की सॅभावना का पता लगाते। इसी उद्देश्य से उन्होने माउंटआबू स्थित ब्रह्मकुमारियों के संगठन से अपने कई स्कूलों में कार्यशाला लगवाया। उनसे बातचीत से गृह प्रदेश उत्तराखण्ड के केन्द्रीय विद्यालयों का स्तर सुधारने की उनकी इच्छा जाहिर होती थी और इसके लिये उत्तराखण्ड में स्थानन्तरण के लिये प्रयत्नशील थे। उनके असमय निधन से शिक्षा क्षेत्र ने न केवल एक कुद्गाल एवम् ऊर्जावान प्रशासक को खोया है बल्कि गणित एवम् साहित्य का एक सॅभावनाशील व्यक्तित्व भी हमारे बीच से अचानक ही चला गया।
-अरूण कुमार असफल
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5 comments:
फोटो देख कर तुरंत याद आया,कोई साल भर या इससे थोडा पहले के वी आर्मी, जोधपुर में रीजनल स्तर पर quiz प्रतियोगिता हुई थी जिसमें आप मुख्य अतिथि के तौर पर जयपुर से पधारे थे.इस प्रतियोगिता के संचालन का जिम्मा मुझे सौंपा हुआ था, मुझे याद है इसके बाद श्री चमोला ने जो उदबोधन दिया था वो कई मायनों में विलक्षण था.बाद में उनके साथ भोजन पर कई बातें हुई थीं.
श्रद्धांजलि.
bahut hi dukhad ghatna
bhav bhini sradhanjali
उन्होंने कुछ कहानियां कालिका कर्णधारी के नाम से लिखी थीं.देहरादून में उनका प्रवास कुछ वर्षों तक ही रहा.उनमें गणित के प्रति गहरी ललक थी.जब वे तिब्बतन स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन में एजुकेशन आफिसर थे तब उनके साथ मसूरी में २० दिन बिताये थे. भास्कराचार्य की लीलावती से मैं उन्हीं की मार्फत परिचित हो पाया.
उनकी स्मृति को नमन
विनम्र श्रद्धांजलि...
Naveen Ne Phone Per Bataya Tha Ki Kalika Bahut Beemar Hai, Aur Phir Khabar Aa Gayi....Kalika se Tip Top, (Dehradun) Main Hi Mulakat Hue Thi, Phir Shayad Wo Mussoorie Chale Gaye The..
Shradhanjli aur Parivar key Prati Samvednayen
Sunil Kainthola
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