देहरादून
एक समय में उत्तराखण्ड ही नहीं देश के अन्य हिस्सों में भी जन पक्षधर नुक्कड़ नाटकों की स्थापना के लिए सचेत देहरादून की नाट्य संस्था दृष्टि ने एक लम्बी खामोशी के बाद नये साल के पहले दिन जिस तरह से अपनी उपस्थिति को दर्ज किया है, उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्ष 2010 देहरादून के रंग आंदोलन में एक हिलौर लाने वाला हो सकता है। उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के दौरान देहरादून के उन तमाम रंग कर्मियों को, जो एक समय तक नुक्कड़ नाटकों से परहेज करते रहे, सड़क पर उतारते हुए जो भूमिका दृष्टि ने उस वक्त निभाई थी, वह आज इतिहास हो चुकी है।
नब्बे के दशक में मंचीय नाटकों से हटकर दादा अशोक चक्रवर्ती, अरुण विक्रम राणा, कुलदीप मधववाल और विजय शर्मा जैसे प्रतिबद्ध रंगकर्मियों ने दृष्टि की शुरुआत की थी। वह समय हिन्दी नाटकों में नुड़ नाटकों का शुरूआती दौर था। रंगकर्मी सफदर हाशमी और दर्शक के रुप में मौजूद कामरेड राम बहादुर की सहादत के दिन को नुक्क्ड़ नाटक दिवस के रुप में मनाने के लिए दृष्टि ने जन नाट्य मंच, दिल्ली, शमशूल इस्लाम और उनके साथी, बिहार के कई नाट्य ग्रुप, नैनीताल के नाट्य ग्रुप युवमंच जैसे दूसरे प्रतिबद्ध नाट्य ग्रुपों के साथ एक संवाद कायम किया और अपने सहोदर संगठनों के साथ लगातार मिलकर नुक्कड़ नाटकों की रंग यात्रा को एक मुकाम तक पहुंचाने में अपनी भूमिका निभाई। लेकिन उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन के उस संयुक्त संघर्ष के दौरान कई कारणों से विभ्रम की स्थितियों के चलते और राज्य निर्माण के बाद जो स्थितियां दिखाई दी, दृष्टि के साथियों को एक गहरी चुप्पी में ले जाने वाली रही। उस लम्बी चुप्पी की छाया को देहरादून के रंगमंच पर देखा भी जाता रहा। 1 जनवरी के दिन अपने बैनर और कविता पोस्टरों के साथ गांधी पार्क पहुंचे दृष्टि के साथियों ने जिस तरह से अपनी भूमिका को फिर से पहचाना है उससे देहरादून के रंग-आंदोलन में एक बहुत से गहरे उठती हलचल को हर कोई महसूस कर सकता था। सुबह 11 बजे से शुरू हुई पोस्टर प्रदर्शनी को देखने के लिए शहर के कई रंगकर्मी, साहित्यकार और नाटकों के वे दर्शक जो दृष्टि को उसके मिजाज से जानते रहे, दिन भर गांधी पार्क में मौजूद रहे। इप्टा, मसूरी के साथियों ने दृष्टि के मंच पर जनगीत और नाटक की प्रस्तुति दी।
नुक्कड़ नाटक दिवस के अवसर पर अपने बैनर पोस्टरों के साथ पहुंचे धरातल नाट्य संस्था और ज्ञान विज्ञान जत्थे के साथियों ने भी कविता पोस्टर प्रदर्शनी, जनगीत और अपने नाटकों की प्रस्तुति से गांधी पार्क में हलचल मचाए रखी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए धरातल संस्था ने अपने छ दिवसीय, पोस्टर, जनगीत और नुड़ नाटक अभियान की शुरूआत गांधी पार्क से ही की। इस अवसर पर डा। अतुल शर्मा द्वारा लिखित जनगीत ''बादशाह गश्त पर है"" का एक एकल अभियन युक्त पाठ रंगकर्मी पवन नारायण रावत द्वारा किया गया। ज्ञान विज्ञान समिति के सतीद्गा धौलाखण्डी ने भी अपने युवा साथियों के साथ एकल गीत नाटिका का मंचन किया।
दृष्टि, धरातल और ज्ञान विज्ञान समिति की हलचल भरी इस उपस्थिति को लम्बे समय से बेचैनी भरी कसमसाहट को महसूस करते रंगकर्मी, दर्शक और सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलन को उम्मीदों भरी निगाहों से सराहने वाले आखिर एक नई शुरुआत के रुप में ही देख रहे हैं।
ऐसा वहां मौजूद डा। जितेन्द्र भारती, मदन शर्मा, प्रेम साहिल, डा। अतुल शर्मा, अरविन्द शेखर, जयंति सिजवाल, रंजना शर्मा, रेवा नन्द भट्ट, रमेश डोबरियाल, जगदीश बाबला, रेखा शर्मा, कमला पंत, बी बी थापा, जगदीश कुकरेती और दूसरे कई जनसंगठनों के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ दर्शकों के रुप में मौजूद लोगों की उपस्थिति से जाना जा सकता है।
4 comments:
एक ऐसे समय में
जब लगता है कि कुछ नहीं किया जा सकता
दरअसल
यही समय होता है
जब कुछ किया जा सकता है
जब कुछ जरूर किया जाना चाहिए
वह जुनून क्या लौट आएगा ?
जुनून का लौटना बहुत जरूरी है।
और वह इस तरह ही लौटेगा।
आस अब भी बाकी है...
aamen !
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