पिछली पोस्ट में नवीन मैठाणी जी ने हरजीत सिंह का एक पोस्टर लगाया था। इस पोस्ट में मैं उनकी दो गज़लें लगा रही हँ।
1.
जो अपने खून में जारी नहीं है
अदाकारी अदाकारी नहीं है
सभी फूलों में जितना खौफ है अब
ख़िजाँ की इतनी तैयारी नहीं है
ख़ला में जो भी मेरे हमसफर हैं
कोई हल्का कोई भारी नहीं है
निकलकर घर की दीवारों से बाहर
कोई भी चारदीवारी नहीं है
सभी मेहनत से बचना चाहते हैं
वगरना इतनी बेकारी नहीं है
मैं उनके खेल में शामिल हूँ लेकिन
वो कहते हैं मेरी बारी नहीं है
2.
उसके लहजे में इम्तिहान भी था
और वो शख्स बदगुमान भी था
फिर मुझे दोस्त कह रहा था वो
पिछली बातों का उसको ध्यान भी था
सब अचानक नहीं हुआ यारों
ऐसा होने का कुछ गुमान भी था
देख सकते थे छू न सकते थे
काँच का पर्दा दरमियान भी था
रात भर उसके साथ रहना था
रतजगा भी था इम्तिहान भी था
आई चिड़ियाँ तो मैंने ये जाना
मेरे कमरे में आसमान भी था
हरजीत सिंह
1.
जो अपने खून में जारी नहीं है
अदाकारी अदाकारी नहीं है
सभी फूलों में जितना खौफ है अब
ख़िजाँ की इतनी तैयारी नहीं है
ख़ला में जो भी मेरे हमसफर हैं
कोई हल्का कोई भारी नहीं है
निकलकर घर की दीवारों से बाहर
कोई भी चारदीवारी नहीं है
सभी मेहनत से बचना चाहते हैं
वगरना इतनी बेकारी नहीं है
मैं उनके खेल में शामिल हूँ लेकिन
वो कहते हैं मेरी बारी नहीं है
2.
उसके लहजे में इम्तिहान भी था
और वो शख्स बदगुमान भी था
फिर मुझे दोस्त कह रहा था वो
पिछली बातों का उसको ध्यान भी था
सब अचानक नहीं हुआ यारों
ऐसा होने का कुछ गुमान भी था
देख सकते थे छू न सकते थे
काँच का पर्दा दरमियान भी था
रात भर उसके साथ रहना था
रतजगा भी था इम्तिहान भी था
आई चिड़ियाँ तो मैंने ये जाना
मेरे कमरे में आसमान भी था
हरजीत सिंह