Wednesday, April 14, 2010

माँ

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ,
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ।

बान की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोयी-आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ।

चिढ़ियों की चहकार में गूंजे
राधा-मोहन, अली-अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी जैसी माँ।

बीबी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी-थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ

बांट के अपना चेहरा माथ
आंखें जाने कहाँ गयी
फटे पुराने इक एलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ

- निदा फाज़ली

11 comments:

दिलीप said...

waah maa ka koi mol nahi...nida sahab ki kalam ko salaam...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

मनोज कुमार said...

भावभीनी!

रंजू भाटिया said...

बहुत पसंद है यह रचना शुक्रिया एक बार इसको फिर से पढवाने के लिए

Udan Tashtari said...

आभार मेरी पसंदीदा रचना प्रस्तुत करने के लिए.

P.N. Subramanian said...

बहुत ही सुन्दर रचना है. आभार इस प्रस्तुति के लिए

सागर said...

yaad hai yeh kavita...shukriya

वाणी गीत said...

बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ ...
निदा फाजली जी की यह ग़ज़ल पहले भी पढ़ी थी ...
यहाँ पढना और अच्छा लगा ...!!

अपूर्व said...

निदा साहब की यह ग़ज़ल अलग-अलग तरीके से हमें हांट करती है..इसमे सिर्फ़ माँ ही नही बल्कि एक पूरा वक्त, एक मौसम, एक भरे घर की शाम आंखों मे आ जाती है..जो हमारी जिंदगी की दौड़ मे कहीं खोती जाती है..

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

gazab....adbhut....gazab....adbhut....gazab....adbhut.....

सुशीला पुरी said...

मेरी पसंद की रचना ......

Narender Singh said...

अति उत्तम