डॉ शादाब वजदी आधुनिक फारसी कविता में एक प्रतिष्ठित नाम है. १९३७ में शिराज,इरान में जनमी शादाब ने बचपन से कवितायेँ लिखनी शुरू की.तेहरान विश्व विद्यालय से फारसी साहित्य और समाज शास्त्र में पढाई करने के बद उन्होंने कुछ वर्षों तक देश में फारसी का अध्यापन किया.इसके बाद लन्दन विश्व विद्यालय से ph.d की.कई वर्षों तक बी बी सी में फारसी विभाग में काम किया, लन्दन विश्व विद्यालय में अध्यापन भी. कई कविता और गद्य पुस्तकें प्रकाशित. अंग्रेजी के अलावा जर्मन और स्वेडिश में भी उनकी कविताओं के अनुवाद हुए हैं.उन्होंने खुद भी विश्व साहित्य से अनेक फारसी अनुवाद किये हैं.
यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी एक प्रसिद्ध कविता .
यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी एक प्रसिद्ध कविता .
मैं एक ऐसे आदमी को जानती हूँ
जो माहिर है पत्थरों पर पुराने खुदे आलेखों को पढने में
और जिसे जबानी याद हैं तमाम व्याकरण
सभी भाषाओँ के
वे जीवित हों या बिसर गयी ही क्यों न हों हमारी स्मृतियों से...
पर वही ज्ञानी डूब जाता है बेचारगी के अँधेरे में
उस स्त्री की ऑंखें पढ़ नहीं पाता
जिससे वो समझता है कि करता है बे-इन्तहां प्यार...
अनुवाद एवं प्रस्तुति:
यादवेंद्र
1 comment:
धूप मे निकलो घटाओं मे नहा कर देखो....
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