इस कडी की तीन कहानियां पिछली पोस्ट में थीं। शेष आज
कत्ल
एक मकान के पास वह रुक गया.इसमें दोस्त रहता है,उसने दरवाजा खटखटाया.
"कौन है?"
"मैं"
"मैं कौन?"
"तुम्हारा दोस्त."उसने टूटती आवाज में कहा."
"वह नहीं आया."भीतर से आवाज आयी.
"अच्छा!मैंने उसे कत्ल कर दिया"उसने दरवाजे पर लात जमायी
दोस्त
वह शहर के अंधेरे में उजली सड़कों पर भटक रहा है.अस्पताल पीछे छूट गया,जनाना अस्पताल से आती चीख की आवाजें पीछे छूट गयीं.गश्त में निकले पुलिस के सिपाहियों ने उसे अनदेखा किया.उसे थाने जाना चाहिये.
"थाना किधर है?"वह सिपाहियों के सामने खड़ा हो गया.
"उधर"एक सिपाही ने उस तरफ़ संकेत किया जहां आग जल रही थी.वह उधर बढ़ गया.
वहां आग जल रही है और लोग बैठे हैं.
"तुम लोग कौन हो?"उसने पूछा.
"हम तुम्हारे दोस्त हैं"
"दोस्त! तुम्हारे घर कहां हैं?"
"हमारे घर नहीं हैं"
"सुबह उठ कर कहां जाओगे?"उसका संशय दूर नहीं हुआ.
"सूरज की रोशनी में किसी को घर की जरूरत नहीं रहती"
6 comments:
निश्चित ही पांचों लघु कथाएं सम्मिलित रुप से एक लयबद्ध प्रवाह में हैं। अफ़ोसस कि इतनी सुंदर कथाएं आज लिखे जाने के पन्द्रह वर्ष बाद पढ़ने को मिल रही हैं। अगले संग्रह में इन्हें उपस्थित होना चाहिए। सच कहूं तो इस ब्लाग के लिए यह लघु कथाएं एक उपल्बधि हैं क्योंकि इनका पहला प्रकाशन यहां हो रहा है।
वही सरग़ोशी...
बेहतरीन....
shandaar...
bahut khoob
क़त्ल बेमिसाल है
"सूरज की रोशनी में किसी को घर की जरूरत नहीं रहती"
sachmuch....
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