(मटर का मौसम आते ही राजेश सकलानी की कविता ‘गेंद
की तरह’ चेतना में कौंध जाती है.आज इस कविता
का स्वाद लीजिये)
गेंद की तरह
-राजेश सकलानी
कौन से देश से
आयी हो
किसके हाथों उपजाई
हो
गदराई हुई मटर
की फलियों
जैसे धूप टोकरी
से कहती हो
मैं लगा छीलने
फलियां
एक दाना छिटक कर
गया यहां-वहां
लगा ढूंढने उसे
मेज के नीचे
वह नटखट जैसे छिपता
हो
फिर सोचा एक ही
दाना है
लगा दूसरी फलियों
को छूने
लेकिन नहीं,बार-बार
वह आंखों में कौंधता
आखिर गया तो गया
कहां
वह कसा-कसा हरियाला
मिल जाये तुरत
उसे छू लूं
काग़ज़,किताब,जूते
सब उठा पलट कर
मैं लगा देखने
एक और मेरा समय
दूसरी और मटर के
दाने का इतराना
ज्यों-ज्यों आगे
लगा काम में
लगता जैसे अभी-अभी
वह गेंद की तरह
टप्पा खाकर उछला
है.
2 comments:
behtarin kavita.
Bahut achchhi kavita.
Rajesh ji ki nayi kavitayein bhi post keejiye.
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