(आजकल इस ब्लाग के कर्ता-धर्ता विजय गौड़ कलकत्ता में अपनी नौकरी की नयी जिम्मेदारियों को समझने और खुद को स्थापित करने में व्यस्त हैं.देहरादून पर कुछ लेख आगए मिलेंगे. फिलहाल इस ब्लाग के साथी यादवेन्द्र जी के कुछ छाया चित्र. इनके बारे में यादवेन्द्रजी का कहना है
सबसे पहले तो ये बता दूँ कि मुझे अचानक यह मुगालता नहीं हो गया है कि मैं कोई अति विशिष्ट या दुर्लभ काम कर रहा हूँ।अपने काम के सिलसिले ने ...या यूँ भी घूमने फिरने की यायावर प्रवृत्ति ने ...मुझे देश के विभिन्न हिस्सों में आने जाने के अवसर दिए। इन मौकों का लाभ मैं हमारी नज़रों से लगभग ओझल हो चुके इन दृश्यों को दर्ज करने के लिए उठाता हूँ --- शहरी जीवन की जटिल और लगभग कृत्रिम जीवन शैली से ये नज़ारे विलुप्त हो चुके हैं ...हाँ, अब भी ग्रामीण या पर्वतीय इलाकों में सुकून की जिंदगी जी रहे मित्रों को संभव है इनमें कुछ भी नयापन न लगे ...पर कुतूहल और लगभग अविश्वास के साथ इन्हें देख कर खुश होने वाले सरल हृदयों की भी कमी नहीं ...इसी भरोसे के साथ आपके साथ इनको साझा कर रहा हूँ ...)
6 comments:
बहुत सुन्दर चित्र
Khoob halo .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल शनिवार (10-08-2013) को “आज कल बिस्तर पे हैं” (शनिवारीय चर्चा मंच-अंकः1333) पर भी होगा!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर!
खूबसूरत
बहुत खूबसूरत चित्र प्रस्तुति.
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