Sunday, November 17, 2013

ओमप्रकाश वाल्मीकि को विनम्र श्रद्धाँजलि

(साथी रतिनाथ योगेश्वर की टिप्पणी के साथ वाल्मीकि जी की शुरूआती दौर की कविता के साथ लिखो यहां वहां की विनम्र श्रद्धाँजलि)
 
  बहुत ही प्यारे इन्सान बड़े भाई ओमप्रकाश बाल्मीकि का वो स्नेह अब कहाँ...कैसे...किससे मिलेगा ----गहरे सदमें में हूँ...देहरादून के साहित्यिक परिवेश में --जब मैं अ आ की वर्णमाला सीख रहा था ---उनका प्रोत्साहन प्यार --उफ़ --वो सृजनात्मक छटपटाहट के बीच ---सार्थक साहित्य की पहचान --जनसाहित्य से जुडाव संभव न हो पता ----अगर हम युवाओं के बीच बाल्मीकि जी --हमें निर्देशित न करते --सुझाव देकर सहायता न करते ---उन दिनों भाई विजय गौड़ ने एक महत्वपूर्ण कविता फोल्डर ''फिलहाल'' का प्रकाशन हम सभी की कविताओं को लेकर किया था--- भाई विजय गौड़ ने ही अनौपचारिक रूप से बाल्मीकि जी के पहले कविता संग्रह '' सदियों का संताप'' को प्रकाशित करने का प्रस्ताव हम सब के बीच रखा ---और फ़िलहाल प्रकाशन, देहरादून से हम लोगों ने उसे प्रकाशित किया ---उसके आवरण डिजायन का दायित्व मुझे सौपा गया था ---जिसे मैंने पूरी निष्ठा और लगन से निभाया --अच्छा बन पड़ा था आवरण ---बहुत चर्चित हुई थी ''सदियों का संताप '' की कवितायेँ ----करीब करीब रोज शाम को मिलना होता था ---कितनी सार्थक और खूबसूरत होती थी वे शामें ----उसी श्रंखला में मैंने और जनकवि नवेंदु जी ने एक कविता संकलन '' इन दिनों'' सम्पादित करने का विचार किया जिसमे बाल्मीकि जी की कविताओं सहित हम सभी देहरादून के १७ कविओं की कवितायेँ संकलित हुई ---जिसकी भूमिका चौथा सप्तक के कवि अवधेश कुमार भाई ने लिखी और फ्लैप ''उन्नयन'' पत्रिका के संपादक वरिष्ठ कवि श्रीप्रकाश मिश्र जी ने---'' इन दिनों'' कविता संकलन का विमोचन किया प्रख्यात जन कवि बाबा नागार्जुन ने ---बहुत ही आत्मीय भाई ओमप्रकाश बाल्मीकि को मैं भरे मन से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ --- 
---रतीनाथ योगेश्वर










ठाकुर का कुँआ

-ओमप्रकाश वाल्मीकि




चूल्हा मिट्टी का

मिट्टी तालाब की

तालाब ठाकुर का.



भूख रोटी की

रोटी बाजरे की

बाजरा खेत का

खेत ठाकुर का.



खेत ठाकुर का

बैल ठाकुर का

हल ठाकुर का

हल की मूठ पर हथेली अपनी

फसल ठाकुर की.



कुंआ ठाकुर का

पानी ठाकुर का

खेत खलिहान ठाकुर के

गली मुहल्ले ठाकुर के

फिर अपना क्या?

गाँव?

शहर?

देश?


3 comments:

Rajesh Kumari said...

कुछ देर पहले ही ओम प्रकाश बाल्मीकी जी की शोक सभा से ही वापस आई हूँ आकर आपकी पोस्ट पढ़ी बहुत दुखद है किन्तु उनकी रचनाएं अमर हैं ,मेरी विनम्र श्रद्धांजली उस महान रचनाकार को

Unknown said...

विनम्र श्रद्धांजलि

सूरज प्रकाश. Blog spot. In said...

वाल्‍मिकी जी से मेरी दो ही मुलाकातें हुई। पहली टिपटाप में जब मैं कहीं देहरादून गया हुआ था और शायद अवधेश ने उनसे परिचय कराया था। मैं लिखना शुरू कर रहा था और वे अपनी जगह बना रहे थे। वह मुलाकात दुआ सलाम तक सीमित रही। बाद में हमारा पत्राचार होता रहा,मैं उन्‍हें लगातार पढ़ता रहा। दूसरी मुलाकात 2003 में उनसे जबलपुर में हुई थी और हमने कई घंटे एक साथ गुजारे थे। जूठन जैसी आत्‍मकथा लिख कर उन्‍होंने अपनी बाद की पीढ़ी के लेखकों के लिए एक बड़ा काम किया कि उनके भीतर के डर, संकोच और हीन भाव को बहुत हद तक कम किया और लिखने की दिशा सुझायी।