हमारे मित्र अरविंद शर्मा की यह पोस्ट, इस अपील के साथ है कि जब भी वृक्ष लगाने का विचार अपने मन में लाएं, अपनी भविष्य की योजनाओं पर पहले अच्छे से चिंतन-मनन कर लें। आपका घर सुरक्षित रहे, आपकी सुविधायें बनी रहें पर निरीह पक्षियों का भी ध्यान रखें, जो आपके एक निर्णय पर उजड़ जाने को मजबूर हो जाते हैं। सुनिश्चित योजनाओं का यह मामला सिर्फ मनुष्यो और पक्षियों के संबंध को ही नहीं बल्कि मनुष्य और मनुष्य़ के बीच के संबंध का भी अहम पहलू है। लोगों को उनके जल, जंगल, जमीन से उजाड़ने में भी कई बार योजनाओं की सनक देखी जा सकती है। |
पक्षियों के जीवन में एक दुर्घटना अक्सर घट जाया करती है। सुबह दाना चुगने निकलते हैं कि शाम को लौटते हैं तो पाते हैं कि तिनके तिनके जुटा कर बनाया गया घर गायब है। आशियाना उखड़ने की यह कथा बार बार लिखी जाती है। पक्षियों में 'बयां' का नाम की चिडि़या का नाम एक हुनरमंद के पक्षी रूप में लिया जाता है। पीले, सफेद, मटमैले रंगी यह नन्ही सी चिडि़या सुरक्षित औरर मजबूत धागों जैसी तार निकल सके, ऐसे रेशेदार पत्तों एवं तनों वाले वृक्षों के बीच अपने घोंसले बनाती है। इस पक्षी को 'हैंगिंग बर्ड' भी कहा जाता है।
यहां जो लटकते हुए घोंसलों से सजा वृक्ष आप देख रहे हैं, इस पेड़ के पास ऐसे ही दो पेड़ ओर भी थे। बीच वाले पेड़ को सुरक्षित व अनुकूल जानकर, लगातार तीन बरस, मीलों दूर से अपने परिवार सहित आती रही।
दिसम्ब र माह के एक दिन उनका पूरा परिवार आ पहुंचता है। सुबह चहचहाट से भर जाती है और नजारा रंगीन हो जाता है। कुछ ही दिन की मेहनत मश्कत के बाद कितने ही घोंसलों वृक्ष सज जाता है। लटकते हुए घोंसलों की खूबसरती देखते ही बनती है। कभी इधर, कभी उधर उड़ते बैठते अपने घर की सुरक्षा में वे सब अपने समूह को सामूहिक कलरव से सावधान भी कर देते हैं। घोंसला किसी किले से कम सुरक्षित नहीं होता है। घोंसलों में जाने ओर आने के दो अलग अलग दरवाजे होते हैं। अन्यह किसी पक्षी का भी उसमें घुसना नामुमकिन होता है। कुशल कारीगरों को भी मात देने वाली कला कुशलता। मनुष्य भी चाहे तो ऐसा घोंसला नहीं बना सकता।
एक दिन मैं अचानक उदास हो गया। गर्मियों के दिन में घर के मालिक ने बीच वाला वृक्ष कटवा दिया। शेष दो पेड़ों पर चिडि़यों फिर कभी घोंसला नहीं बनाया। मौसम, यानी सर्दियों के आरम्भम में वे आयीं लेकिन फिर सदा के लिए अदृश्यम हो गयीं।
6 comments:
यह बड़ी दुखद स्थिति है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-06-2016) को "लो अच्छे दिन आ गए" (चर्चा अंक-2385) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
घर टूटने का दुख .....
कितनी मेहनत करता है पक्षी इसका अंदाज कुछ लोग नहीं समझ सकते ,, नासमझ होते है ऐसे लोग ..
बहुत सुंदर रोचक पोस्ट ...
एक संवेदनशील मन ही सोच सकता है इसका दर्द, बाकी लोग तो अपना नफ़ा नुकसान देखते है और इस तरह की उदंडता करते हुए जरा भी पश्चताप नहीं होता ।। बहुत दुःख हुआ
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