वैसे सुनने में यह अटपटा लग सकता है पर विपरीत और उग्र परिस्थितियों में घटनास्थल पर पहुँच कर खड़े हो जाना और तने हुए चेहरों के बीच मुस्कान बिखेरना भी एक प्रतिरोध है...कुछ महीने पहले ब्रिटेन के बर्मिंघम में गोरे अंग्रेजों के उग्र इस्लाम विरोधी प्रदर्शन के दौरान जब प्रदर्शनकारियों ने एक मुस्लिम युवती को चारों ओर से घेर लिया तो साफ़िया खान नामक युवती ने वहाँ पहुँच कर न सिर्फ़ भीड़ से घिरी युवती को आश्वस्त किया बल्कि बिल्कुल सहज भाव से जेब में हाथ डाले खड़े खड़े मुस्कुरा दी जैसे कुछ हुआ ही न हो...और यह संदेश भी दिया कि हम ऐसी बन्दर घुड़कियों से डरने वाले नहीं।यह प्रदर्शन कट्टर दक्षिणपंथी संगठन इंग्लिश डिफेंस लीग (EDL) ने आयोजित किया था जो मुसलमानों को वहाँ से हटाने की माँग कर रहे थे ।एशियाई देशों से आकर रह रहे नागरिक बहुल बर्मिंघम में इस तरह के प्रदर्शन के खास महत्व हैं और युवती को चारों ओर से घेर कर वे ' यह क्रिश्चियन देश है,तुम्हारा देश नहीं' जैसे जुमले उछाल रहे थे।'द गार्डियन' को भयभीत युवती सायरा जफ़र ने बताया कि नारे चिल्लाने वाली भीड़ ने उसको पकड़ कर इस्लामविरोधी बैनर उसके चेहरे पर लपेट दिया।तभी दूर खड़ी सब देख रही युवती साफ़िया खान दौड़ती हुई वहाँ आयी और आक्रामक प्रदर्शनकारियों को सहज मुस्कुराहट की भाषा में अनूठा जवाब दिया - "हम भी हैं तुम भी हो दोनों हैं आमने सामने...है आग हमारे सीने में हम आग से खेलते आते हैं/टकराते हैं जो इस ताकत से वो मिट्टी में मिल जाते है...."उस युवती के बचाव में साफ़िया के अचानक बीच में आ जाने पर भीड़ उससे चिपट गयी...प्रदर्शनकारियों के मुखिया ने साफ़िया के गालों पर अपनी उँगलियाँ गड़ा दीं और जोर जोर से चिल्लाते हुए बदले में हाथापाई करने के लिए उसको उकसाने लगा।पर साफ़िया ने अपना आपा नहीं खोया और बगैर उत्तेजित हुए चुपचाप जेब में हाथ डाले खड़ी मुस्कुराती रही। प्रदर्शनकारियों को इस जवाबी प्रतिरोध से सांप सूँघ गया और उन्होंने उन युवतियों की घेराबंदी तोड़ दी।इस प्रदर्शन को जाने कितनी पब्लिसिटी मिली पर जोए गिडिन्स की खींची साफ़िया खान के नायाब अहिंसक प्रदर्शन की फ़ोटो पूरी दुनिया में आग की तरह फैल गयी।
फोटोग्राफर ने टाइम पत्रिका की बताया :
"वैसे देखें तो फ़ोटो मामूली सी है - एक प्रतिरोधकर्ता,एक EDL सदस्य और एक पुलिस वाला।पर जब मैंने गौर किया तो प्रतिरोध कर रही युवती के बॉडी लैंग्वेज और उसके चेहरे के भावों पर ध्यान गया...तब मुझे इस फ़ोटो की ताकत का अंदाज हुआ।इस फ़ोटो के इतने प्रभावकारी होने का कारण उस युवती का बॉडी लैंग्वेज है।(साफ़िया)खान एकदम शांत और स्थिर लग रही थी,उसके चेहरे पर मुस्कान थी और उसके हाथ जेब में थे।इसके विपरीत क्रॉसलैंड(प्रदर्शनकारियों का नेता) बेहद क्रोधित और आक्रामक था - यह अंतर्विरोध ही इस फ़ोटो की ताकत है और इसको विशिष्ट बनाता है।उसका बिल्कुल शांत और विश्वासपूर्ण चेहरा...न तो कोई घबराहट न ही डर।"
इस अनूठे प्रतिरोध की फ़ोटो ने पाकिस्तानी बोस्निया मिश्रित मूल की ब्रिटिश की पैदाइशी नागरिक साफ़िया खान को रातों रात एक सेलिब्रिटी बना दिया।साफ़िया कहती हैं कि उस फ़ोटो ने मुझे एक गुमनाम नागरिक से अलग पहचान दे दी पर जब मैं पिछली घटनाएँ याद करती हूँ तो लगता है अच्छा ही हुआ...अब मुझे एक मकसद के लिए काम करना है...अब मैं ब्रिटेन की सड़कों पर नस्ली भेदभाव के विरोध में संघर्ष करूँगी।"मुझे लगता है कभी कभी चीखने चिल्लाने के बदले सिर्फ़ मुस्कुराना ज्यादा असरकारी होता है", साफ़िया कहती हैं।
2 comments:
बहुत प्रासन्गिक प्रस्तुति.आज के समय में मुस्कुराना सबसे बडा हथियार है.
बहुत प्रासन्गिक प्रस्तुति.आज के समय में मुस्कुराना सबसे बडा हथियार है.
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