Tuesday, April 14, 2020

अमेरिका और लॉकडाउन के मायने

कोविड-19 नामक वैश्विक महामारी से निपटने के लिए जहां दुनिया के ज्यादतर देश लॉकडाउन के स्तर पर हैं, वहीं यह सवाल भी है कि बुरी तरह से प्रभावित अमेरिका ने आखिर अभी तक इस रास्ते् को क्यों नहीं अपनाया ? सेंट लुईस में रहने वाले जे सुशील इस सवाल से टकराते हुए अमेरिकी समाज का जो चित्र रखते हैं, वह गौरतलब है। वर्तमान में सुशील एक शोधार्थी है। पूर्व में बीबीसी हिंदी के पत्रकार रहे हैं।
‘’अमेरिका में लॉकडाउन क्यों नहीं होता है ये एक कठिन सवाल है.’’  जिन कारणों पर सुशील की निगाह अटकती है, वहां एक समाज की कुछ सभ्यतागत विशिष्टताएं नजर आती हैं और इसीलिए उन्हें कहना पड़ता है, ‘’सभ्यतागत चीज़ें एक्सप्लेन करना इतना आसान नहीं होता है.’’ उन सभ्यतागत विशिष्टताओं को पकड़ते हुए अमेरिका में लॉकडाउन के मायने को सुशील ने अच्छे से समझने की चेष्टा की है। जे सुशील के उस विश्लेषण को पाठकों तक पहुंचाते हुए जे सुशील का आभार। 

वि.गौ.


जे सुशील

अमेरिका में कोरोना से मरने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद देश में लॉकडाउन नहीं किया गया है. ये बात कई लोगों को अचंभे की लग सकती है कि अमेरिका ने ऐसा क्यों नहीं किया है लेकिन इसका जवाब गूगल करने पर नहीं मिलेगा. इसके लिए इस देश की साइकोलॉजी को समझना होगा कि लॉकडाउन जैसे शब्दों को लेकर इस देश में धारणा क्या है और वो इसे कैसे देखते हैं. इन सवालों के जवाब में ही इसका उत्तर भी छुपा है कि इतनी मौतों के बावजूद भारत जैसा लॉकडाउन क्यों नहीं किया जा रहा है अमेरिका में. इसके मूल में तीन कारण हैं.

अमेरिका में अपनी पर्सनल आज़ादी या लिबर्टी की भावना इस गहरे तक पैठी हुई है कि अगर कोई भी सरकार कोई भी ऐसा फैसला लेती है जिसमें नागरिकों के निजी अधिकारों का हनन हो तो उसे पसंद नहीं किया जाता. लोग इसका जमकर विरोध करते हैं. ये विरोध करने वाला अल्पसंख्यक, अश्वेत या दूसरे देशों से हाल में आकर बसे लोग नहीं होते बल्कि खालिस गोरे अमेरिकी ही इसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं.
पहला तकनीकी कारण है जो इस मुद्दे का एक पहलू है. अमेरिका की संघीय़ व्यवस्था का ढांचा ऐसा है कि नागरिकों के आम जीवन से जुड़े ज्यादातर फैसले खासकर उसमें अगर पुलिस की कोई भूमिका हो तो वो राज्य का प्रशासन ही करता है यानी कि गवर्नर. कई बार ऐसे भी उदाहरण हैं जब एक काउंटी यानी एक कोई इलाका गवर्नर की बात न माने. टेक्नीकली देखा जाए तो राष्ट्रपति अगर चाहें तो नेशनल लॉकडाउन की घोषणा कर सकते हैं लेकिन वो ऐसा नहीं करेंगे और इसका कारण तकनीकी नहीं है. इसका कारण है अमेरिका के लोगों की साइकोलॉजी जो लिबर्टी और पर्सनल स्पेस में गुंथी हुई है.

अमेरिका में अपनी पर्सनल आज़ादी या लिबर्टी की भावना इस गहरे तक पैठी हुई है कि अगर कोई भी सरकार कोई भी ऐसा फैसला लेती है जिसमें नागरिकों के निजी अधिकारों का हनन हो तो उसे पसंद नहीं किया जाता. लोग इसका जमकर विरोध करते हैं. ये विरोध करने वाला अल्पसंख्यक, अश्वेत या दूसरे देशों से हाल में आकर बसे लोग नहीं होते बल्कि खालिस गोरे अमेरिकी ही इसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं. इसलिए ट्रंप को डर है कि अगर वो लॉकडाउन जैसा कोई कदम उठाएंगे तो उनके समर्थन में खड़े लोग ही उनका विरोध करने लगेंगे. दूसरा अगर उन्होंने कोशिश की तो राज्य सरकारें भी विरोध कर सकती हैं. तो फिर इस समय अमेरिका में जहां कोरोना तेज़ी से फैल रहा है वहां किया क्या जा रहा है.

केंद्र सरकार यानी ट्रंप सरकार की तरफ से एडवाइज़री है कि लोग सोशल डिस्टैंसिंग का पालन करें यानी कि दूर दूर रहें. रेस्तरां और क्लब या ऐसी जगहें जहां लोगों के जुटने की संभावना होती है उन्हें बंद करने के आदेश दिए गए हैं और वहां से ऑर्डर कर के खाना लिया जा सकता है. जहां थोड़े हालात और खराब हैं वहां स्टे एट होम के आदेश हैं यानी कि आप कुछ मूलभूत कार्यों (भोजन लाना, दवाई लेना, वाक करना और कुत्ते को घुमाना) को छोड़कर बेवजह बाहर नहीं निकल सकते हैं. निकलने पर पुलिस कारण पूछ सकती है.

ज्यादातर राज्यों में यही नियम राज्य के गवर्नर और मेयरों ने लागू किए हैं. मैं जिस इलाके में रहता हूं उससे थोड़ी ही दूर पर मेयर की पत्नी को करीब दो हफ्ते पहले पब में पाया गया जहां वो अपनी मित्रों के साथ बीयर पी रही थीं जबकि सोशल डिस्टैंसिंग का नियम लागू था. मेयर की पत्नी पर जुर्माना लगाया गया.

कैलिफोर्निया में सबसे सख्ती है लेकिन वहां भी लॉकडाउन शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है क्योंकि इस शब्द का इस्तेमाल ही एक नेगेटिव भाव लिए हुए हैं अमेरिकी लोगों के लिए. कैलिफोर्निया राज्य के कुछ इलाकों में शेल्टर एट होम के आदेश हैं यानी कि आप अपने घरों में ही रहें और उन्हीं से मिले जिनसे आप पिछले दस पंद्रह दिनों में मिले हों. कहने का अर्थ ये है कि हर राज्य में अलग अलग नियम लागू किए गए हैं.

न्यूयार्क जो सबसे बुरी तरह प्रभावित है वहां भी लॉकडाउन नहीं है और लोग मेट्रो का इस्तेमाल कर रहे हैं. खबरों के अनुसार मेट्रो ट्रेनों की संख्या कम कर दी गई है और कई ट्रेनों में भीड़ भी हो रही है लेकिन जीवन अनवरत जारी है. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका में घरेलू विमान सेवाएं अभी भी जारी हैं लेकिन इंटरनेशनल ट्रैवल पर रोक लगाई गई है. घरेलू विमान सेवाओं में न्यूयार्क और ज्यादा प्रभावित इलाके के लोगों से अपील की गई है कि वो पंद्रह दिनों तक ट्रैवल न करें ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके.
तीसरा बड़ा कारण है इकोनोमी. अगर सादे शब्दों में कहा जाए तो अमेरिका पैसा जानता है और इकोनॉमी सबके लिए सर्वोपरि है. ट्रंप ने यूं ही नहीं कहा था कि अमेरिका इज़ नॉट मेड टू स्टॉप. शेक्सपियर का कहा हम जानते हैं कि द शो मस्ट गो ऑन. अमेरिका इकोनॉमी को लेकर ऐसी ही सोच रखता है. चाहे कुछ हो जाए इकोनॉमी ठप नहीं पड़नी चाहिए इसलिए काम जारी है. जो भी बिजनेस घर से हो सकता है वो घर से चल रहा है लेकिन बाकी जिस किसी भी काम के लिए कम लोगों की ज़रूरत है वो अबाध जारी है मसलन ई कामर्स, अमेजन और ऐसे ही तमाम ईशापिंग के काम. स्टॉक एक्सचेंज और तमाम बिजनेस को चलाए रखा जा रहा है. यूनिवर्सिटी, संग्रहालय, रेस्तरां और वो चीजें ही बंद की गई हैं जिससे इकोनॉमी को बहुत अधिक नुकसान न हो.

एक छोटा और महत्वपूर्ण कारण ये भी है कि अमेरिका की सुपरपावर की एक छवि है और वर्तमान विश्व में इमेज के इस महत्व को नकारा नहीं जा सकता. कल्पना कीजिए दुनिया भर के अख़बारों में अमेरिका ठपजैसा शीर्षक लगे तो उस छवि को कितना धक्का लगेगा. जो देश ग्यारह सितंबर के हमले में नहीं रूका वो एक वायरस से रूक जाए ये अमेरिकी जनता और नेताओं को बिल्कुल गवारा नहीं है. ये बात अमेरिकी मीडिया के बारे में भी कही जा सकती है कि मीडिया में भी लॉकडाउन को लेकर बहुत अधिक शोर नहीं है. मीडिया ट्रंप की आलोचना कर रहा है कि उन्होंने शुरूआती दौर में इसकी गंभीरता को नहीं लिया या फिर अभी भी वो ऐसी दवाओं पर भरोसा कर रहे हैं जिसका वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है लेकिन अखबारों में ऐसी तस्वीरें तक नहीं छप रही हैं जिसमें सुनसान सड़कें दिख रही हों. अखबारों की वेबसाइटों को भी देखें तो तस्वीरों में डॉक्टर हैं, मरीज़ हैं, संघर्ष करता शहर है. ठप शहर नहीं क्योंकि अमेरिका कभी रूकता नहीं एक ऐसा सूत्र वाक्य है जो यहां के लोगों में अंदर तक बसा हुआ है.

4 comments:

rajesh saklani said...

जे सुशील का विश्लेषण काफी विश्वशनीय लगता है।
अभी तक अमेरीकी जनता की प्रतिक्रिया का ठीक
से पता नहीं चल पा रहा है।

गीता दूबे, कोलकाता said...

बेहद गंभीरतापूर्वक सुशील जी ने अमेरिका के लोगों की मानसिकता पर प्रकाश डाला है। आज यह सवाल हर किसी के मन में उठ रहा है कि आखिरकार अमेरिका में लॉकडाउन की घोषणाओं क्यों नहीं हो रही है और प्रस्तुत आलेख में इसका संतोषजनक जवाब मिलता है। साथ ही वहां की मीडिया भी इस मामले काफी संजीदगी से संभाल रही है। वहाँ हमारी मीडिया की तरह व्यर्थ का हो हल्ला और आरोपों प्रत्यारोपों आक्रामक रुख संभवतः नहीं है। हमारे देश में इतना संक्रमण फैलता तो मीडिया खुद तो बौखलाता ही लोगों को आतंकित करने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ता।

Onkar said...

बढ़िया लेख

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर, शिक्षाप्रद