प्रस्तुति के लिहाज से संदर्भित नाटक ने न सिर्फ वातयान को ऐतिहासिक सफलता से गौरवान्वित होने का अवसर दिया, अपितु देहरादून रंगमंच के लिए भी यह प्रस्तुति एक यादगार प्रस्तुति के रूप में याद रखे जाने वाले इतिहास को गढने में सफल कही जा सकती है।
संदर्भित नाटक का आलेख, हिंदी में यथार्थवादी साहित्य के प्रणेता कथाकार प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास ‘’गोदान’’ के आधार पर तैयार किया गया था और उपन्यास की उस मूल कथा को आधार बनाकर रचा गया है, आजादी पूर्व भारतीय किसान के जीवन की त्रासदी के प्रतीक के रूप में जिसके मुख्य चरित्र होरी के जीवन का खाका प्रमुख तरह से प्रकट होता है। यानि ग्रामीण समाज के जंजाल को ही नाटक में प्रमुखता से उकेरा गया है। यद्यपि नाटक के उत्तरार्द्ध में गांव से भाग कर, शहरी जीवन के अनुभव से विकासित हुए गोबर के चरित्र की एक हल्की झलक भी मिल जाती है। लेकिन शहरी जीवन के छल छद्म और आजादी पूर्व के ग्रामीण समाज के जीवन को प्रभावित कर रही शहरी हवा और इन अर्न्तसंबंधों को परिभाषित करने वाले गोदान उपन्यास के अंशों से एक सचेत दूरी बरतते हुए निर्देशक ने जिस नाट्य आलेख के साथ गोदान को प्रस्तुत करने की परिकल्पना की, उसने नाटक की सफलता की जिम्मेदारी होरी और धनिया के कंधों पर पहले ही डाल दी। यानि नाट्य आलेख के इस रूप ने भी निर्देशक को पार्श्व में धकेलते हुए पात्रों को ही असरकारी भूमिका में प्रस्तुत होने का एक अतिरिक्त अवसर दिया। मंचन के दौरान यह स्पष्टतौर पर दिखा भी। धनिया के पात्र को जीते हुए सोनिया नौटिायन गैरोला और होरी की भूमिका में धीरज सिंह रावत ने निर्देशकीय मंतव्य को प्रस्तुत करने में अहम भूमिका अदा की। बल्कि यह कहना ज्यादा उचित होगा कि होरी के परिवार के अन्य पात्रों: सोना के रूप में अनामिका राज, रूपा की भूमिका में सिद्धि भण्डारी और गोबर की भूमिका में शुभम बहुगुणा दर्शकों की निगाहों में ज्यादा प्रभावी तरह से प्रस्तुत होते रहे। लेकिन यह भी सत्य है कि अवसर की अनुकूलता के कारण से ही नहीं, अपितु अपने जीवन के सम्पूर्ण अनुभव को प्रतिभा के द्रव में घोलकर जिस तरह से सोनिया नौटियाल गैरोला ने धनिया के किरदार का जीवंत रूप में प्रस्तुत किया, उसे उनका दर्शक एक लम्बे समय तक भुला नहीं पाएगा। रंगकर्म के अपने छोटे से जीवन में ही एक परिपक्व अभिनेत्री के रूप में सोनिया नौटियाल गैरोला को देखना और वैसे ही छोटे अंतराल के रंगकर्म के सफर में होरी के किरदार धीरज सिंह रावत का अभिनय इस बात की आश्वस्ति दे रहा है कि दून रंगमंच अपने ऐतिहासिक मुकाम की नयी यात्रा पर आगे जरूर बढेगा। रंग संस्था वातायन के लिए भी यह आश्वस्तकारी है कि नये-उत्साही और गंभीरता से नाटक करने वाले रंगकर्मियों का इजाफा उनके यहां हुआ है।
उम्मीद की जा सकती है कि गोदान के मंचन की यह सफलता वातायन को नयी ऊर्जा से जरूर भरेगी। बेहतर टीम वर्क ही उल्लेखित नाटक के मंचन की सफलता को तय करता हुआ दिख रहा था। संगीत और प्रकाश का खूबसूरत संयोजन भी नाटक को प्रभावी बनाने में अहम भूमिका अदा कर रहा था।
उपयोग की जा रही सभी तस्वीरों के लिए जयदेव भट्टाचार्य का आभार। तस्वीरें उनके कैमरे का कमाल हैं।
2 comments:
बहुत सुंदर
शानदार
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