Friday, November 21, 2025

 

 

 

  कविता/    संग-साथ इक्कीस साल

 

 

 


(आज  इस ब्लॉग के संस्थापक विजय गौड़ को गये  एक साल बीत चला है. विजय को याद करते हुए हमारी कोशिश रहेगी कि फिर से इस ब्लॉग को नियमित रूप से जारी रख सकें.फिर से इस सिलसिले को शुरू करते हुए आज विजय की कविता लगा रहे हैं) 

-अरविन्द शेखर, नवीन कुमार नैथानी )

 

संग-साथ इक्कीस साल

 विजय गौड़ 

सबसे ज्यादा गुस्साया सिर्फ पत्नी पर 

डरते-डरते काट दिए उसने इक्कीस साल

 चाहा नहीं कभी मैंने पर, डरे वह हरदम

 गुस्साया यूँ आज तक जितना 

काश, गुस्सा पाया होता एक हिस्सा भी

 गोली, लाठी और बौछारों से 

बेदम कर देने वालें समाजद्रोहियों पर,

 अहंकार को मुँह चिढ़ाती मुस्कान पर

बना रहा शांत, कहलाया भला

 डराने भर को भी गुस्सा न पाया

 हरामियों पर इन इक्कीस सालों में। 

 

 

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