हमारे देहरादून के साथी मुहम्मद हम्माद फारूखी के शब्दों में कहूं तो 19 अगस्त से दिल्ली में आयोजित होने जा रहे एक कला आयोजन, जिसे दिल्ली की सरकार और कुछ आर्ट गैलरियां मिल कर रही है, में भी एक अघोषित किस्म का प्रतिबंध जारी है, जहां हुसेन की पेंटिगों को प्रदर्शन के लिए रखा ही नहीं जाना है। वे बताते है कि यह तथ्य है कि पिछले वर्ष आयोजित उस कार्यक्रम का यह एजेंडा ही था जिसके विरोध में सहमत ने एक अन्य आयोजन किया।
यह कहने की जरूरत नहीं कि महत्वाकांक्षाओं की लिप्सा में डूबे रचनाकारों की भी भूमिका भी यहां चिहि्नत की जानी चाहिए जो प्रभु वर्ग की चालाकियों में फंसकर अपने प्रतिरोधी चरित्र को भी संदिग्ध बनाती है। पुरुस्कारों का मायाजाल और निहित राजनैतिक उद्देश्यों के लिए आयोजित होने वाले प्रभु वर्ग के ऐसे आयोजनों की चमक से हतप्रभ उनकी उपस्थितियां, साहित्य का सलमा जुडूम रचने में कैसे सहायक हो रही है, यह सवाल क्यों नहीं उठना चाहिए ? क्यों नहीं व्यापक एकता के दम पर ही ऐसी हिसंकता के प्रतिरोध को स्वर दिया जाना चाहिए ?
हबीब छत्तीसगढ़ की पहचान हैं। सतनामी संप्रदाय के बहाने चरणदास चोर की स्क्रिप्ट को बैन करना साहित्य का सलमा जुडुम ही है- मुहम्मद हम्माद फारूखी ।
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