
जेम्सवाट की केतली- यह ऐसा शीर्षक है जो ने सिर्फ एक कहानी को रिपरजेंट करता है बल्कि कुसुम भट्ट के कथा संग्रह में शामिल सभी कहानियों को बहुत अच्छे से परिभाषित करता है। संवेदना, देहरादून की विशेष चर्चा गोष्ठी में, जो सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित हुई कथाकार कुसुम संग्रह की कहानियों की पुस्तक पर आयोजित थी, कथाकार सुभाष पंत का यह वक्तव्य उन सवालों का जवाब था जिनमें कुसुम भट्ट की कहानियों पर यह सवाल ज्यादातर उठ रहा था कि उनकी कहानियों के शीर्षक उनकी कहानियों के कथ्य से मेल खाते हुए नहीं हैं। फिल्म समीक्षक मनमोहन चढडा का तो कहना था कि जेम्स वॉट की केतली जैसा शीर्षक तो स्त्रियों की अन्तर्निहित शक्तिय को पूरे तौर पर परिभाषित करता है। कुसुम भट्ट की कहानी हिसंर को एक महत्वपूर्ण कहानी मानते हुए कथाकार सुभाष पंत ने कहानी के प्रति अपने दृष्टिकोण को सांझा करते हुए कहा कि प्रकृति चित्रण, साहित्य की जुमले बाजी है जिसमें मूल संवेदना से दूर जाना है। उन्होंने आगे कहा कि भाषा सम्प्रेषण का माध्यम है। कथ्य पर भाषा हावी नहीं होनी चाहिए। भाषा का सौन्दर्य कथ्य के साथ है।
कहानी पुस्तक पर चर्चा से पहले गोष्ठी में संग्रह में शामिल कहानी वह डर का पाट किया गया। कवयित्री और सहृदय पाठिका कृष्णा खुराना ने कुसुम भट्ट के कथा संग्रह में सम्मिलित कहानियों की विस्तार से चर्चा अपने लिखित पर्चे को पढ़कर की। जिसका सार तत्व था कि पहाड़ी अंचल और स्त्रीमन को कुसुम भट्ट ने अच्छे से पकड़ा है। दूसरा पर्चा वरिष्ठ कथाकार एवं व्यंग्य लेखक मदन शर्मा ने पढ़ा। कुसुम भट्ट की कथा भाषा को महत्वपूर्ण मानते हुए उन्होंने कहानियों के शिल्प की भी चर्चा की।
एक अधेड़ स्त्री मन के भीतर से बार बार किशोर और युवा के दिनों के गहरे आघात में आकार लेता एक स्त्री का व्यक्तित्व उनके ज्यादातर पात्रों के मानस के रूप में दिखाई देता है। संग्रह में शामिल वह डर, गांव में बाजार: सपने में जंगल, हिंसर, डरा हुआ बच्चा आदि कहानियों को सभी पर सभी ने खूब बात की। चर्चा में अन्य लोगों में प्रेम साहिल, राजेश सकलानी, गुरूदीप खुराना, डॉ जितेन्द्र भारती, चन्द्र बहादुर, जितेन्द्र शर्मा, राजेन्द्र गुप्ता आदि ने भी शिरक्त की।