संस्समरण
सुनील कैंथोला
बकरोला जी श्याम को कुत्ता घुमाते हैं, कोई सात बरस पहले एक मलाईदार विभाग से सेवानिवृत हुए हैं, यहीं वसंत विहार एन्क्लेव में बंगला है, ऐशो आराम की कमी नहीं. बकरोला जी का कुत्ता उनसे जायदा हट्टा-कट्टा है. एक तो उम्र में कम है और दूसरा कुत्ता शराब नहीं पीता. जब वे घूमते हुए कुत्ते के मलत्याग हेतु कोई उपयुक्त स्थान ढूँढने की फिराक में होते हैं तो लगता ऐसा है कि मानो उनका कुत्ता उन्हें घुमा रहा हो.
बकरोला जी की एक खासियत है कि बात कहीं से भी शुरू हो उसका अंत I.A.S. व्यवस्था को फटकारने और यदि दो-चार पेग अन्दर हों तो माँ-बहन की गालियों पर समाप्त होती है. ये बकरोला जी की I.A.S. से व्यक्तिगत खुन्नस है. इसकी तह में जायेंगे तो आक्रोश शायद इस बात का है कि वे I.A.S. बनने से वंचित कैसे रह गए.
बकरोला जी अच्छे आदमी हैं. इलाके में सत्संग के आयोजन में हमेशा आगे रहते हैं. क्रिकेट में जब भारत पाकिस्तान से जीतता है तो अपनी जेब से आतिशबाजी का आयोजन करवाते हैं. पंद्रह अगस्त हो या छब्बीस जनवरी, बकरोला जी सोसाइटी के पार्क में होने वाले झंडारोहण कार्यक्रम का अहम् हिस्सा होते हैं. वे कड़क स्वाभाव के हैं. झंडारोहण के पश्चात् मिष्ठान वितरण के दौरान बगल की मलिन बस्ती का कोई बच्चा यदि दोबारा लड्डू मांग ले तो उसके कान गर्म करने में देर नहीं लगाते. बकरोला जी सेवानिवृत होने के बाद भी आजादी की रक्षा में संलग्न हैं. देश की आज़ादी को लेकर बकरोला जी बहुत भावुक हैं. यही वो आज़ादी है जिसने उनको वसंत विहार एन्क्लेव के इस बंगले में विराजमान किया अन्यथा सूखी तन्खवाह में भला ऐसा कहाँ संभव था. जब तक उनकी कलम में ताकत रही बकरोला जी ने उसे पूरी निष्ठा से आज़ादी की रक्षार्थ समर्पित किया. ये बात अब सार्वजनिक हो ही जानी चाहिए कि जब से उन्होंने उस नासपीटे कन्हैया को आज़ादी के नारे लगाते देखा उसी क्षण से बकरोला जी के भीतर एक हाहाकारी किस्म की उथल पुथल शुरू हो गयी है. अब कोई माने या न माने इसका श्रेय उस कमबख्त कन्हैया को ही जायेगा जिसने उन्हें अपनी आज़ादी से प्राप्त होने वाले फलों के प्रति जागृत किया और उस पर पड़ने दुष्प्रभावों के प्रति उन्हें सतर्क किया . बकरोला जी को अपनी आजादी की चिंता है. अब वे सीरियल कम और इंडिया टीवी जायदा देखने लगे हैं.
बकरोला जी उस सामाजिक परिवेश से आते हैं जिसमे महिलाएं अपने बड़े बुजुर्गों का नाम अपनी जुबान पर लाना पाप समझती हैं. मसलन यदि किसी महिला के ससुर का नाम इतवारी लाल हुआ तो वह इतवारी लाल जैसे पवित्र शब्द को अपनी जुबान पर लाना तो दूर इतवार के दिन को इतवार न बोल कर कुछ और बोलना शुरू कर देगी जैसे कि तातबार! इसी प्रथा का कुछ हैंगओवर बकरोला जी पर भी है. बकरोला जी आजकल बहुत हिंसक हो रहे हैं. पर अपने तरकश में भरी चुनिदा गालियों से लैस होने के उपरांत भी वे कन्हैया को गाली देने में इसलिये असमर्थ हैं क्योंकि उसका नाम कन्हैया जो है!
सुनील कैंथोला
बकरोला जी श्याम को कुत्ता घुमाते हैं, कोई सात बरस पहले एक मलाईदार विभाग से सेवानिवृत हुए हैं, यहीं वसंत विहार एन्क्लेव में बंगला है, ऐशो आराम की कमी नहीं. बकरोला जी का कुत्ता उनसे जायदा हट्टा-कट्टा है. एक तो उम्र में कम है और दूसरा कुत्ता शराब नहीं पीता. जब वे घूमते हुए कुत्ते के मलत्याग हेतु कोई उपयुक्त स्थान ढूँढने की फिराक में होते हैं तो लगता ऐसा है कि मानो उनका कुत्ता उन्हें घुमा रहा हो.
बकरोला जी की एक खासियत है कि बात कहीं से भी शुरू हो उसका अंत I.A.S. व्यवस्था को फटकारने और यदि दो-चार पेग अन्दर हों तो माँ-बहन की गालियों पर समाप्त होती है. ये बकरोला जी की I.A.S. से व्यक्तिगत खुन्नस है. इसकी तह में जायेंगे तो आक्रोश शायद इस बात का है कि वे I.A.S. बनने से वंचित कैसे रह गए.
बकरोला जी अच्छे आदमी हैं. इलाके में सत्संग के आयोजन में हमेशा आगे रहते हैं. क्रिकेट में जब भारत पाकिस्तान से जीतता है तो अपनी जेब से आतिशबाजी का आयोजन करवाते हैं. पंद्रह अगस्त हो या छब्बीस जनवरी, बकरोला जी सोसाइटी के पार्क में होने वाले झंडारोहण कार्यक्रम का अहम् हिस्सा होते हैं. वे कड़क स्वाभाव के हैं. झंडारोहण के पश्चात् मिष्ठान वितरण के दौरान बगल की मलिन बस्ती का कोई बच्चा यदि दोबारा लड्डू मांग ले तो उसके कान गर्म करने में देर नहीं लगाते. बकरोला जी सेवानिवृत होने के बाद भी आजादी की रक्षा में संलग्न हैं. देश की आज़ादी को लेकर बकरोला जी बहुत भावुक हैं. यही वो आज़ादी है जिसने उनको वसंत विहार एन्क्लेव के इस बंगले में विराजमान किया अन्यथा सूखी तन्खवाह में भला ऐसा कहाँ संभव था. जब तक उनकी कलम में ताकत रही बकरोला जी ने उसे पूरी निष्ठा से आज़ादी की रक्षार्थ समर्पित किया. ये बात अब सार्वजनिक हो ही जानी चाहिए कि जब से उन्होंने उस नासपीटे कन्हैया को आज़ादी के नारे लगाते देखा उसी क्षण से बकरोला जी के भीतर एक हाहाकारी किस्म की उथल पुथल शुरू हो गयी है. अब कोई माने या न माने इसका श्रेय उस कमबख्त कन्हैया को ही जायेगा जिसने उन्हें अपनी आज़ादी से प्राप्त होने वाले फलों के प्रति जागृत किया और उस पर पड़ने दुष्प्रभावों के प्रति उन्हें सतर्क किया . बकरोला जी को अपनी आजादी की चिंता है. अब वे सीरियल कम और इंडिया टीवी जायदा देखने लगे हैं.
बकरोला जी उस सामाजिक परिवेश से आते हैं जिसमे महिलाएं अपने बड़े बुजुर्गों का नाम अपनी जुबान पर लाना पाप समझती हैं. मसलन यदि किसी महिला के ससुर का नाम इतवारी लाल हुआ तो वह इतवारी लाल जैसे पवित्र शब्द को अपनी जुबान पर लाना तो दूर इतवार के दिन को इतवार न बोल कर कुछ और बोलना शुरू कर देगी जैसे कि तातबार! इसी प्रथा का कुछ हैंगओवर बकरोला जी पर भी है. बकरोला जी आजकल बहुत हिंसक हो रहे हैं. पर अपने तरकश में भरी चुनिदा गालियों से लैस होने के उपरांत भी वे कन्हैया को गाली देने में इसलिये असमर्थ हैं क्योंकि उसका नाम कन्हैया जो है!