Tuesday, November 18, 2008

चित्तौड़गढ़ में काशीनाथ सिंह का कहानी पाठ

हम उदयपुर के युवा रचनाकार पल्लव जी के आभारी हैं जिनके मार्फ़त हमें यह रिपोर्ट प्राप्त हुई।


चित्तौड़गढ़। नरभक्षी राजा चाहे कितना भयानक हो दुर्वध्य नहीं है, उसका वध संभव है। चर्चित उपन्यास `काशी का अस्सी` के एक अं को सुनाते हुए शीर्षस्थ हिन्दी कथाकार काशीनाथ सिंह ने यह कहा कि हमारे समय में भले ही संस्कृति-समाज में निरंतर आ रहे ह्रास का सामना लोगों को करना पड़ रहा है लेकिन इससे निरा नहीं हो जाना चाहिए। प्रोफेसर काशीनाथ सिंह ने चित्तौड़गढ़ में साहित्य-संस्कृति के संस्थान संभावना और साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कथा सन्धि में अपनी रचनाओं का पाठ किया। प्रो. सिंह ने अपनी चर्चित कहानी `बांस` का भी पाठ किया, जिसमें जीवन और वैचारिक जड़ता के द्वन्द्व को लोककथात्मक शैली में अभिव्यक्त किया गया है। काशीनाथ सिंह ने चित्तौड़गढ़ में अपने कहानी पाठ को सौभाग्य मानते हुए कहा कि चित्तौड़ मेरा सपना था और यह हर उस आदमी का सपना है जो प्रतिरोध की चेतना अपने भीतर जिंदा रखना चाहता है। उन्होंने कहा कि कहानियां सुनने और सुनाने के लिए ही होती हैं। कहानी वह झूठ है जो समाज के सच को उजागर करती है। रचना पाठ के पश्चात हुई चर्चा में सुशीला लड्ढा, आर.सी. तुंगारिया, बी.एस.त्यागी और गोविन्दराम र्मा ने भागीदारी की। चर्चा में भाग लेते हुए संभावना के अध्यक्ष डॉ. के. सी. र्मा ने कहा कि काशीनाथ सिंह की रचनाओं में हमारा समय और समाज अपने पूरे रंगो-खुबुओं में दिखाई पड़ता है। वरिष्ठ लेखक और काशीनाथ सिंह के सहपाठी रहे श्रीवल्लभ शुक्ला ने पचास बरस बाद काशीजी से हुई भेंट को अपने जीवन का अपूर्व संस्मरण बताया। चर्चा में श्रोताओं के उत्तर देते हुए काशीनाथ सिंह ने बांस की रचना प्रक्रिया पर विस्तार से टिप्पणी की। बनास के संपादक पल्लव ने कहा कि काशी का अस्सी भूमण्डलीकरण का भारतीय प्रतिकार है जो अपने नयी शैली के कारण भी महत्वपूर्ण हो गया है। अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ समालोचक प्रो. नवलकिशोर ने काशीनाथ सिंह के कथाकर्म को नये रूप बन्धन, नवीन उद्भावना और प्रातिभ चमत्कार का अपूर्व संयोग बताया। उन्होंने कहा कि `काशी का अस्सी` भाषा को भी नयी सम्पन्नता देने वाला उपन्यास है। समारोह में संभावना द्वारा प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका `बनास` के दूसरे अंक के मुखपृष्ठ का अनावरण अतिथियों द्वारा किया गया। संभावना के वरिष्ठ सदस्य व लेखक लक्ष्मण व्यास का स्थानान्तरण हो जाने पर समारोह में प्रो. सिंह ने माल्यार्पण कर विदाई दी। इससे पूर्व लेखक परिचय साहित्यकार डॉ. सत्यनारायण व्यास ने दिया। संचालन डॉ. कनक जैन ने किया। आयोजन स्थल पर लगाई गई लघुपत्रिका प्रदर्शनी को पाठकों ने भरपूर सराहा। आकावाणी के केन्द्र निदेक सुधीर राखेचा, एडवोकेट भंवरलाल सिसोदिया, कवि मुन्नालाल डाकोत, जगदी पंचोली, संतोष र्मा, माणिक सोनी सहित अनेक पाठक आयोजन में उपस्थित थे। अलख स्टडी के संचालक जयप्रका भटनागर ने आभार प्रदर्षित किया।

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विवरण: डॉ. कनक जैन, चित्तौड़गढ़

1 comment:

siddheshwar singh said...

ऐसे ही सहित्यिक आयोजनों की जानकारी से रू-ब-रू कराते रहें. बहुत बढ़िया.