Monday, May 25, 2009

गुरूदीप खुराना की लघु कथा

गुरुदीप खुराना महत्वपूर्ण कथाकार हैं। दिखावे की किसी भी तरह की संस्कृति से उन्हें परहेज है। रचना में ही नहीं सामान्य जीवन में भी उनके मित्र उन्हें इसी तरह पाते हैं। उनकी रचनाओं की खास विशेषता है कि वे ऐसे ही, जैसे कोई बहुत चुपके से, आपके बगल में आकर कुछ कह गया हो और आप उस वक्त किसी दूसरे काम में उलझे होने के कारण उस पर ध्यान दे पाए हों लेकिन वह बात जब दुबारा दोहराई ही जानी हो तो आप उस क्षण में अपने भीतर अटक गए बहुत सारे शब्दों, स्थितियों को दोहराते हुए उस तक पहुंचने को उतावले हो जा रहे हो कि आखिर क्या कहा गया था। उनकी रचनाओं पर आलोचकों की एक खास किस्म की चुप्पी की एक वजह यह भी है। वरना नई आर्थिक औद्योगिक नीति ने किस तरह से नौकरशाहों के चरित्र को आकार दिया है, इसे जानना हो तो उनके उपन्यास बागडोर को पढ़ना जरूरी हो जाता है। उजाले अपने-अपने उनका एक अन्य उपन्यास है जो उस नयी आर्थिक नीति के कारण परेशानियों में उलझी दुनिया को बाबा महात्माओं तक ले जाने वाले कारणों और आए दिन धर्म के बाजार में नई से नई सजती जा रही दुकान के खेल का ताना बाना कैसे खड़ा होता है, इसे रखने में सक्षम है।



भाग्य
-गुरूदीप खुराना



हम तीनों एक दूसरे का हाथ थामें, साथ-साथ टहल रहे थे।
अचानक एक गोली कहीं से आकर। बीच वाले को लगी और वह वही ढेर हो गया।
गोली उसी को क्यों लगी, दोनो में से किसी को क्यों नहीं? मैनें पूछा। दूसरे ने कहा यह भाग्य है और मैं धबराया रहा।
मेरा यह भाग्यवादी साथी, निश्चित था क्यों कि उसकी कुण्डली में अस्सी पार करना लिखा था। वह खूब मस्ती में गुनगुना रहा था-जाको राखे साईया मार सके न कोए।।।
वह दोहा पूरा कर पाता इससे पहले एक और गोली कहीं से आयी और उसके सीने से आर पार हो गई।
वह भी गया। पर वह मेरा तरह घबराया हुआ नहीं रहा। वह अतं तक निश्चिंत बना रहा और मस्त रहा।

1 comment:

दिनेशराय द्विवेदी said...

यहाँ कुंडली और उस की भविष्यवाणी का सदुपयोग किया गया है।