बारिश के रुकने के बाद
मौसम खुला तो
रूइनसारा ताल के नीचे से
दिख गई स्वर्गारोहिणी
आंखों में दर्ज हो चुका
दिखा पाऊं तुम्हें,
खींच ही लाया बस तस्वीर
ललचा क्यों रही हो
ले चलूंगा तुम्हे कभी
कर लेना दर्शन खुद ही-
पिट्ठू तैयार कर लो
गरम कपड़े रख लो
सोने के लिए कैरी मैट और स्लिपिंग बैग भी
टैंट ले चलूंगा
बस कस लो जूते
चढ़ाई-उतराई भरे रास्ते पर चलते हुए
रूइनसारा के पास पहुंचकर ही जानोगी,
झलक भर दर्शन को कैसे तड़फता है मन
कितनी होती है बेचैनी
और झल्लाहट भी
गनीमत हो कि मौसम खुले
और स्वर्गारोहिणी दिखे।
4 comments:
तस्वीर क्या स्वर्गारोहिणी की है?
इस वक्त तो मौसम का ढक्कन पूरी तरह बन्द है
Bahut achhi kavita hai...
Picture bhi achhi lag rahi hai...
Yeaaah...a nice company makes the joy go unlimited !
सुन्दर कविता !
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