मूल रूप में सिएरा लेओन के पिता की संतान नाई आईक्वेई पार्केस, जन्मे तो ब्रिटेन में पर शुरुआती और निर्मिति का समय उनका घाना में बीता..देश विदेश घूमते हुए और अनेक प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थाओं में रचनात्मक साहित्य पढ़ाते हुए वे पिछले कुछ वर्षों से ब्रिटेन में रह रहे हैं...पार्केस कविताओं के अलावा कहानियां और लेख तो लिखते ही हैं,अश्वेत अस्मिता को स्थापित करने वाले स्टेज परफोर्मेंस के लिए भी खूब जाने जाते हैं. उनके अपने सात संकलन प्रकाशित हैं और अनेक सामूहिक संकलनों में उनकी कवितायेँ शामिल हैं. यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी कुछ लोकप्रिय कवितायें..चयन और प्रस्तुति यादवेन्द्र की है.
चाहता हूँ पानी बरसे
कभी कभी मैं चाहता हूँ पानी बरसे
धारासार, अनवरत और पूरे जोर से
ताकि तुम मेरे अन्दर समा जाओ जैसे छुप जाती है व्यथा
और मुझे साँस की मानिंद पीती रहो निश्चिन्त हो कर धीरे धीरे.
मुझे खूब भाता है मेघों का विस्तार
इनका गहराना और दुनिया को अपनी छाया से ढँक लेना
जैसे पानी की धार हो जेल की सलाखें
और हम सब इसके अन्दर दुबक गए हों कैदी बन कर.
यही ऐसा मौका होता है जब सूरज बरतता है संयम
थोड़ी कुंद पड़ती हैं इसकी शिकारी निगाहें..
पडोसी धुंधलके में खो जाते हैं
और हमें पूरी आज़ादी नसीब होती है एकाकी प्रे म करने की.
सुबह सुबह का समय है
इसको न तो दिन कहेंगे न ही रात..
इस वेला में तुम न तो तुम रहीं और न मैं ही साबुत बचा
मुझे न तो किसी ने कैद में डाला और न खुला और आजाद ही रह पाया .
टिन की छत
बेकाबू गर्म थपेड़ों वाली तेज हवा कोड़े बरसाती रहती है तुम्हारी पीठ पर
फिर भी टिके बने रहते हो तुम..
तुम्हारी पूरी चमक पर बिखरा देते हैं वे गर्द और मिट्टी
और ऐंठ मरोड़ देते हैं तुम्हारे धारदार किनारे.
बारिश आती है तो अपनी थपाकेदार लय से
कीचड़ की लेप बना कर लपेट देती है तुम्हारा पूरा बदन
फिर भी टिके बने रहते हो तुम.
--- मेरा आत्मगौरव---
मेरी अपनी टिन की छत ही तो है.
मुझे मैं रहने दो
मैं मैं हूँ
और तुम तुम
पर तुम चाहते हो
मैं हो जाऊं बिलकुल तुम्हारे जैसा.....
तुम्हारी मंशा है कि मैं तो हो ही जाउं
तुम्हारे जैसा
पर आस पास के तमाम लोग भी
रूप बदल लें बिलकुल मेरी तरह...
मानो मैं हो गया बिलकुल तुम्हारी तरह
और चाहने लगूँ कि तुम भी बदल कर हो जाओ मेरी तरह..
इस से पहले कि मैं तुम्हारे जैसा हो जाऊं
तुम मेरे जैसे हो जाओगे
और मैं तो हो ही जाऊँगा बिलकुल तुम्हारी तरह..
पर जल्दी ही
मैं फिर से मैं ही हो जाऊंगा..
इसलिए यदि तुम चाहते हो
कि मैं बन जाऊं तुम्हारी तरह
तो मुझे रहने दो मैं ही...
2 comments:
सच कहूं तो कवितायें कुछ ख़ास नहीं लगीं…हिन्दी में रोज़ लिखी जा रहीं तमाम साधारण कविताओं सी ही…ऐसा ही एक अन्य ब्लाग पर कुछ कविताओं को भी पढ़ कर लगा था…फिर भी यादवेन्द्र जी जिस कमिटमेंट से लगातार नये विदेशी कवियों से परिचय करा रहे हैं उसका आभार न प्रकट करना गुस्ताखी होगी…
पसंद आईं, ख़ासकर तीसरी कविता
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