सावन बीत गया था
भादों की उमस भरी गरमी में
कृष्ण जन्माष्टमी की वो एक
चुहल भरी सुबह थी -
बच्चे कट्टा भर रेत और
काई उठाये चले आ रहे थे
कितनी ही सीलन भरी दीवारें
खेल-खेल में हो गयीं थी साफ
खिल-खिलाने लगा उनका चूना
प्लास्टिक के कितने ही खिलौने से
भर गयी बहुमंजिला इमारत की
सीढ़ी के नीचे की वो जगह-
एक उदासी सी पसरी रहती थी जहां हर रोज
कितनी ही गोपियां, राधा और कृष्ण
खेलने लगे
धर्म-कर्म पर यकीन और
चण्डोल देखने वाले गुजरते
तो कृष्ण बना बच्चा
बांसुरी होठों से लगा
खड़ा हो जाता ऐसा
जैसी छठवीं कक्षा की पुस्तक में होती तस्वीर,
राधा भी नृत्य मुद्रा में स्थिर
गोपियों का कोरस और नृत्य देख
आनन्दित होते देखने वाले
प्रसाद बांटने को उत्सुक
कृष्ण बना बच्चा स्थिर न रह पाता
उसकी मुद्रा का टूटना भी
हंसी खेल हो जाता उस वक्त।
-विजय गौड़
7 comments:
सुन्दर प्रस्तुति
कृष्ण जन्माष्टमी के पर पर हार्दिक शुभकामनाये.....
जय श्रीकृष्ण
"कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्!"
--
योगीराज श्री कृष्ण जी के जन्म दिवस की बहुत-बहुत बधाई!
ज़िन्दगी उदास कोने मे छिपा बाल्कृष्ण. अच्छा लगा. लेकिन इस देश ने इस चरित्र को आपना नायक नही बनाया.
जन्माष्टमी की झांकी पसन्द आयी
ओह !
वह बच्चा !
और राजेश जोशी की इस कविता के ये बच्चे भी :
कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?
क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया हैं
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
ओह !
वह बच्चा !
और राजेश जोशी की इस कविता के ये बच्चे भी :
कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?
क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया हैं
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए
बच्चे, बहुत छोटे छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
"जैसी छठवीं कक्षा की पुस्तक में होती तस्वीर"
अच्छा है ...
Post a Comment