( वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूडी की दो कवितायें १९७७ में प्रकशित संग्रह "बची हुई पृथ्वी" से दी जा रही हैं)
मौलिकता
जडें
वही हों
उसी तने पर
वे ही टहनियां हों
ज्याद अच्छे लगते हैं
तब
नये पत्ते
वरना नये पौधे में तो वे होते ही हैं
आऊंगा
नये अनाज की खुशबू का पुल पार करके
मैं तुम्हारे पास आऊंगा
ज्यों ही तुम मेरे शब्दों के पास आओगे
मैं तुम्हारे पास आऊंगा
जैसे बादल
पहाड़ की चोटी के पास आता है
और लिपट जाता है
जिसे वे ही देख पाते हैंजिनकी गरदनें उठी हुई हो>
मैं वहां तुम्हारे दिमाग में
जहां एक मरूस्थल है
आना चाहता हूं
मै आऊंगा
मगर उस तरह नहीं
बर्बर लोग जैसे कि पास आते हैं
उस तरह भी नहीं
गोली जैसे कि निशाने पर लगती है
मै आऊंगा
आऊंगा तो उस तरह
जैसे कि हारे हुए
थके हुए में दम आत है
2 comments:
दोनों कविताएं अद्वितीय हैं...
दूसरी ने तो एकदम मौलिक विचार दिया...धन्यवाद..
मै आऊंगा
आऊंगा तो उस तरह
जैसे कि हारे हुए
थके हुए में दम आता है !
...................
लाजवाब !
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