अबुल कासिम अल शब्बी १९१९ में जन्मे ट्यूनीशिया के मशहूर आधुनिक कवि थे जिनको दुनिया की अन्य भाषाओँ में व्याप्त आधुनिक प्रवृत्तियों को अपने साहित्य में लेने का श्रेय दिया जाता है.अल्पायु में महज २५ वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया ...जिस जन आन्दोलन की आँधी में वहां की सत्ता तिनके की तरह उड़ गयी उसमें वहां के युवा वर्ग ने शब्बी की कविताओं को खूब याद किया.यहाँ प्रस्तुत हैं उनकी कविताओं के कुछ नमूने:
जनता की मर्ज़ी
यदि जनता समर्पित है जीवन के प्रति
तो भाग्य उनका बाल बाँका भी नहीं कर सकता
रात उसे ले नहीं सकती अपने आगोश में
और जंजीरें एक झटके में
टूटनी ही टूटनी हैं.
जीवन के लिए प्यार
नहीं है जिसके दिल में
उड़ जाएगा हवा में कुहासे की मानिंद
जीवन के उजाले से बेपरवाह रहने वालों के
ढूंढे कहीं मिलेंगे नहीं नामो निशान.
ऊपर वाले ने चुपके से
बतलाया मुझे ये सत्य
पहाड़ों पर बेताब होती रहीं आंधियाँ
घाटियों में और दरख्तों के नीचे भी:
"एक बार निर्बंध होकर बह निकलने पर
रूकती नहीं मैं किसी के रोके
मंजिल तक पहुंचे बगैर...
जो कोई ठिठकता है लाँघने से पहाड़
छोटे छोटे गड्ढों में
सड़ता रह जाता है जीवन भर."
दुनिया भर के दरिंदों से
अबे ओ अन्यायी दरिन्दे
अँधेरे को प्यार करने वाले
जीवन के दुश्मन...
मासूम लोगों के जख्मों का मज़ाक मत उड़ा
तुम्हारी हथेलियाँ सनी हुई हैं
उनके खून से
तुम खंड खंड करते रहे हो
उनके जीवन का सौंदर्य
और बोते रहे हो दुखों के बीज
उनकी धरती पर...
ठहरो, बसंत के विस्तृत आकाश में
चमकती रौशनी से मुगालते में मत आओ...
देखो बढ़ा आ रहा है
काले गड़गड़ाते बादलों के झुण्ड के साथ ही
अंधड़ों का सैलाब तुम्हारी ओर...
क्षितिज पर देखो
संभलना.. इस भभूके के अंदर
ढँकी होगी दहकती हुई आग.
अब तक हमारे लिए बोते रहे हो कांटे
लो अब काटो तुम भी जख्मों की फसल
तुमने कलम किये जाने कितनों के सिर
और साथ में कुचले उम्मीदों के फूल
तुमने सींचे उनके खेत
लहू और आंसुओं से...
अब यही रक्तिम नदी अपने साथ
बहा ले जाएगी तुम्हें
और ख़ाक हो जाओगे तुम जल कर
इसी धधकते तूफान में.
5 comments:
बहने को बेताब, दिशा के असमंजस में ठिठकी.
बेहद शानदार है दोनों , ख़ास तौर पर दूसरी वाली तो वाकई जनमानस को सही तरीके से प्रदर्शित करती है |
बेहतर...
समयानुकूल उम्दा कविताएं...
यदि जनता समर्पित है जीवन के प्रति
तो भाग्य उनका बाल बाँका भी नहीं कर सकता
रात उसे ले नहीं सकती अपने आगोश में
और जंजीरें एक झटके में
टूटनी ही टूटनी हैं.
कितना बडा सच उदघाटित करती है ये पंक्तिया..स्मरणीय
Dilchasp!!!
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