Wednesday, July 13, 2011

शीशे के पार

 कई घंटों  लम्बी न रुकने वाली बरसात के एक दिन मैंने बेडरूम के रोशनदान के शीशे के पार  परिंदों का एक जोड़ा सिमटा सुरक्षित बैठा हुआ देखा...सार्थक साथ की जरुरत और इस से मिलने वाली सुरक्षा और सुकून की शिद्दत से समझ  आई...उस दृश्य को मोबाईल के कैमरे में कैद कर के आपके  पास भेज रहा हूँ...मुझे लगता है यह अपने आपमें एक सार्थक कविता है.                 -यादवेंद्र
                                                

3 comments:

अजेय said...

bahut saarthak click. aabhaar.

डॉ .अनुराग said...

yakinan...

Dayanand Arya said...

Really its a beautiful piece in itself.