(नया ज्ञानोदय का
ग़ज़ल महाविशेषांक इस लोकप्रिय विधा के इतिहास की झलक दिखाने में कामयाब रहा है. यहां प्रस्तुत है
इस विशेषांक में प्रकाशित कबीर की रचना)
हमन है इश्क़ मस्ताना हमन को होशियारी क्या?
रहें आज़ाद या जग से हमन दुनिया से यारी क्या?
जो बिछुड़े हैं पियारे से भटाकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम मेम हमन को इन्तज़ारी क्या?
ख़लक सब नाम अपने को बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम सांचा है हमन दुनिया से यारी क्या?
न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछुड़े पियारे से
उन्हीं से नेह लागी है हमन को बेकरारी क्या?
कबीरा इश्क़ का माता,दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है
हमन सिर बोझ भारी क्या?
4 comments:
अति सुन्दर.....
आभार
अनु
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