(सुषमा नैथानी की कवितायें इस ब्लॉग के पाठक पहले भी पढ़ चुके हैं.यहां प्रस्तुत है उनकी ताजा कविता जो उनके ब्लॉग स्वप्नदर्शी से साभार ली गयी है)
छिन्नमस्ता!
मैं तिरुपति नहीं
गयी
तिरुपति से लौटी औरतें देखीं
शोक तज आयीं
केश तज आयीं
देखीं
हिन्दू विधवा
शिन्तो विधवा
नन
संयासिन
और ऑर्थोडॉक्स यहूदी सधवा
कामना तज आयीं
केश तज आयीं
क्या नहीं रीझतीं
नहीं रिझातीं
मुंडिता
किसकी कामना हैं
केश
किसकी मुक्ति
क्या हैं स्त्री के केश
किस विषवृक्ष की शाख पर
किस ऋतु के खिले
वर्जित, बैगैरत कामना फूल!
तिरुपति से विग में गुंथी
कोई परकटी लालसा
क्या कभी नहीं पहुंचती
न्यूयॉर्क, बोस्टन
पेरिस, इजरायल
विरहराग नहीं
सुनती विगधारिणी
तब किस तरह
लालसा और कामना की
नदी में
पूरब-पश्चिम
उत्तर-दक्षिण
तिल तिल तिरोहित होती
छिन्नमुण्डा !
वज्रयोगिनी!
छिन्नमस्ता!
1 comment:
सुषमा नैथानी इधर उन कवियों में हैं, जिनकी नई कविता का इंतज़ार रहता है.... यह कविता पढ़कर कह सकता हूं कि इंतज़ार सफल रहा। अब असफल हो चुके बिम्बों के बरअक्स सीधे बात करने का ये अंदाज़ बहुत अच्छा और अपना लगता है।
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