Tuesday, February 5, 2013

दिनेश चन्द्र जोशी की कविता



धारकोट

शहर की आरामतलबी व एकरसता से ऊब कर

हम ट्रेकिंग पर निकल पडते हैं पास की

छोटी-छोटी पहाडियों की ओर



पक्के रास्ते को छोडकर पकडते हैं कच्चे रास्ते

और फिर पगडंडियां थामे चढ़ाई चढ़ने लगते हैं

अपने शरीर की सामर्थ्य जांचते हुए



गांव, खेत, जंगल,नदी, खाले पार करते हुए हम कोसते

 हैं शहर की भीड और शोरगुल को

राहगीर जो मिलते हैं इतने निर्जन पथ पर इक्का-दुक्का

उनका अभिवादन और प्रेम देखकर हमारा पथराया हुआ

 दिल पिधल उठता है

रास्ते में मिलती हैं घास का बोझा लाती हुई युवतियां

कहती हैं ,भाई जी नमस्ते

बस्स,थोडी सी ओर चढ़ाई है,फिर आ जायेगा धारकोट

हम भीतर तक धुल जाते हैं,बहिनों ,बेटियों के श्रम,सौंदर्य

व अभिवादन से



उधर अखबारों में दिल्ली रेप काण्ड का हाहाकार मचा है

टी वी पर चर्चा जारी है

हम सोचते हैं दिल्ली में क्या हो गया ऐसा

क्यों छा गयी इतनी विकृति,इतनी क्रूरता

इतनी हिंसा , लोगों की चेतना पर

यहां धारकोट में तो ऐसा कुछ भी नहीं




1 comment:

Ashok Pande said...

अच्छी रचना!