दुश्मनों से दोस्ती होने लगी है ;
गहन मेरी चौकसी होने लगी है।
ज़िन्दग़ी के नाज़ उठाने लगे हैं आप;
बात चलो काम की होने लगी है ।
हाँफ़ने लगी थी अब मेरी निगाह भी;
शुक्र है कि भोर सी होने लगी है ।
हो गये हैं कान चौकन्ने से और भी;
मुखर जब से खामुशी होने लगी है ।
खटकने लगी है ग़म को बात ये साहिल;
ख़ुशी से जो वाकिफ़ी होने लगी है ।
प्रेम साहिल
प्रेम साहिल पंजाबी के कवि है. उनकी यह रचना मुझे उनके द्वारा ही वाट्सअप पर संदेश रूप में प्राप्त हुई. निशचित लिप्यांतरण और अनुवाद प्रेम साहिल ने खुद किया होगा.
गहन मेरी चौकसी होने लगी है।
ज़िन्दग़ी के नाज़ उठाने लगे हैं आप;
बात चलो काम की होने लगी है ।
हाँफ़ने लगी थी अब मेरी निगाह भी;
शुक्र है कि भोर सी होने लगी है ।
हो गये हैं कान चौकन्ने से और भी;
मुखर जब से खामुशी होने लगी है ।
खटकने लगी है ग़म को बात ये साहिल;
ख़ुशी से जो वाकिफ़ी होने लगी है ।
प्रेम साहिल
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4 comments:
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Health World
good poem.. :)
Nice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Latest Government Jobs.
Daagh Dehlvi sahab ko pranam nahin kiya?
https://rekhta.org/ghazals/ranj-kii-jab-guftuguu-hone-lagii-dagh-dehlvi-ghazals
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