लोकतंत्र का
मतलब इतना ही नहीं कि किसी भी संस्था के हर फैसले को किसी भी कीमत पर उचित ही मान
लिया जाए। वैधानिक ढांचे के कायदे से चलती संस्थाओं की कार्यशैली और निर्णय भी। उन
पर स्वतंत्र राय न रख पाने की स्थितियां पैदा कर देना तो नागरिक दायरे को तंग कर
देना है। स्वतंत्र राय तो जरूरी नागरिक कर्तव्य है, जो वास्तविक लोकतंत्र के फलक
को विस्तार देती है। सहमति और असहमति की आवाज को समान जगह और समान अर्थों में परिभाषित करने से ही लोकतंत्र का
वास्तविक चेहरा आकार ले सकता है। ऐसे लोगों का सम्मान किया जाना चाहिए जो बिना
धैर्य खोये भी असहमति के स्वर को सुनने का शऊर रखते हैं। सम्मान उनका भी होना
चाहिए जो बेलाग तरह से नागरिक कर्तव्य को निभाने में अग्रणी होते हैं। लोकतांत्रिक
प्रक्रिया को वास्तविक ऊंचाईयों तक पहुंचाने में ऐसी दृढ़ताएं महत्वपूर्ण साबित
होती हैं।
आदरणीय कलाम
साहब, भूतपूर्व राष्ट्रपति की लोकप्रियता को कोई
दाग नहीं लगा सकता। उनका घोर विरोधी भी नहीं। वे सादगी पसंद, भारत के ऐसे राष्ट्रपति
थे, टी वी पर जिन्हें कई बार स्कूली बच्चों के बीच देख मन
प्रफुल्लित हो जाता था। अन्य मौकों पर भी उनकी सहजता, सरलता की ऐसी तस्वीरें देखते
हुए उनके प्रति आदर उमड़ता था, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं। उनके व्यक्तित्व में एक सच्चे नागरिक का तेज नजर आता था। वे विज्ञान
के अध्येता थे, वैज्ञानिक थे, यह कोई छुपा हुआ तथ्य नहीं। लेकिन उनके वैज्ञानिकपन
को अनुसंधान के शास्त्रीय पक्ष के साथ पहचान करती आवाज पर हिंसक हो जाना, लोकतंत्र का मखौल बना देना है। सहमति के संतुलन
की ऐसी आवाज से असहमति रखना लोकतंत्र की खासियत हो सकता है, वाजिब भी है। लेकिन
हिंसक हो जाना तो अनजाने में ही हो चाहे, फासीवादी मूल्यों का ही समर्थन है।
न्याय के
विभिन्न रूपों में फांसी सबसे बर्बर अंदाज है, यह कहना भी लोकतंत्र का पक्ष चुनना
है और वैश्विक दृष्टि का पक्षधर होना है। अंधराष्ट्रवादी निगाहें यहां भी विरोध
के फासीवादी चेहरे में नजर आती हैं।
आश्वस्ति
की स्थिति हो सकती है कि खुद के भीतर उभार ले रहे फासीवाद को पहचानना शुरू हो और
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के स्वस्थ लोकतंत्र की दिशा निश्चित हो।
-- विजय गौड
2 comments:
एकदम। उन्माद के इस दौर में यह संतुलित टीप महत्त्वपूर्ण है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (01-08-2015) को "गुरुओं को कृतज्ञभाव से प्रणाम" {चर्चा अंक-2054} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
गुरू पूर्णिमा तथा मुंशी प्रेमचन्द की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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