बहुत दिनों बाद एक ऐसी कहानी पढ़ने को मिली जिसे जोर जोर से उव्वारित करके पढ़ने का मन हुआ। यह कहानी के कथ्य की खूबी थी या उसका शिल्प ही ऐसा था कि उसे उच्चारित करके पढ़ने का मन होने लगा, इस बहस में नहीं पढ़ना चाहता। लीजिए आप भी सुनिए।
बेहद रोचक कहानी की सशक्त नाटकीय प्रस्तुति। पूरे उतार चढ़ाव के साथ कहानी की भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बधाई। एक बात बताना चाहूंगी, तकरीबन इसी थीम पर थोड़े बदलावों के साथ एक फिल्म 2017 में रिलीज हुई जिसका नाम है "ट्रैप्ट" जिसमें राजकुमार राव ने बेहतरीन अभिनय किया है। हां, एक और विशेषता का जिक्र भी करना चाहूंगी कि तमाम मुंबइया फिल्मों की तरह इसका अंत सुखद है अर्थात नायक बंद कमरे से बाहर निकल आता है,यह बात अलग है कि तब तक नायिका किसी और के साथ घर बसा चुकी होती है। फिल्मवाले भी नयी कहानियों की तलाश में कहां कहां चले जाते हैं, यह बात और है कि मूल कहानीकार को न श्रेय मिलता है न पैसा।
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बेहद रोचक कहानी की सशक्त नाटकीय प्रस्तुति। पूरे उतार चढ़ाव के साथ कहानी की भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बधाई। एक बात बताना चाहूंगी, तकरीबन इसी थीम पर थोड़े बदलावों के साथ एक फिल्म 2017 में रिलीज हुई जिसका नाम है "ट्रैप्ट" जिसमें राजकुमार राव ने बेहतरीन अभिनय किया है। हां, एक और विशेषता का जिक्र भी करना चाहूंगी कि तमाम मुंबइया फिल्मों की तरह इसका अंत सुखद है अर्थात नायक बंद कमरे से बाहर निकल आता है,यह बात अलग है कि तब तक नायिका किसी और के साथ घर बसा चुकी होती है। फिल्मवाले भी नयी कहानियों की तलाश में कहां कहां चले जाते हैं, यह बात और है कि मूल कहानीकार को न श्रेय मिलता है न पैसा।
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