सुभाष पंत जी की कहानी 'सिंगिंग बेल' विचार प्रधान साहित्य चिंतन और सहज भाषा- दृष्टि के माध्यम से साहित्य को गढ़ने के प्रक्रिया में उपजी हुई कहानी है । कहानी के कुछ अंशो में गद्य की लयात्मकता कविता का आभास देती है। कहानी की मुख्य पात्र मारिया डिसूजा वर्तमान में रहते हुए भी अतीत से जुड़ी रहती है ,तथा अतीत अदृश्य रूप से उसके वर्तमान में प्रवाहित होता रहता है । उसके सामने बहुत सी चुनौतियां हैं । उसका निजी अतीत है । और अचानक अपरिचित और होस्टाइल हो गया संसार है । उसका अतीत घने गहरे प्रेम की, अतृप्त की और पूर्णता की लालसा की कहानी है । आकर्षण की स्थितियां बीत चुकी हैं। उसकी जिंदगी में समय एवं समाज ऐतिहासिक रूप से क्रमवार नहीं आता । एक ओर निरा वर्तमान , और दूसरी ओर परिवेश के प्रति आक्रांत एवं भय -दृष्टि , निराशा, भविष्य के प्रति उदासीनता जैसी परिस्थितियों में उसका जीवन बीत रहा है। लेखक ने कुछ सजीव विंबो के माध्यम से मारिया कि मनस्थिति का चित्रण किया है। 'गहरी नम धुंध,, 'कोहरा बेआवाज शीशे पर नमी की तरह फैलता हुआ'। उसके होटल हिल क्वीन की दीवारें 'जंग खाई हुई आत्मा' की तरह हो गई थी। ' सब कुछ बेआब उदासी में डूबा हुआ' ।दीवार घड़ी की 'खामोशी' उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। वक्त का अंदाज तो उसे मस्जिद की अजान,गुरद्वारे की अरदास, मन्दिर के घंटो औऱ गिरजाघर की प्रार्थना से भी लग जाता , लेकिन यह घड़ी डेबिड लाया था। इसकी आवाज की बात ही कुछ और थी। डेविड, मारिया डिसूजा की जिंदगी का 'एंकर 'था। डेविड उसे बहुत साल पहले अकेला छोड़ कर चला गया। लाल फिरन में डेविड की यादें छुपी थी। चर्च ने उससे रियायत मांगी थी कि वह इस फिरन को ना पहना करें । इसे देखकर लोगों का ध्यान प्रार्थना से हट जाता है। उसे लाल फिरन पहने देखकर 'बर्फ में आग' लग जाती है। उसने ये रियायत चर्च को दे दी। डेविड कहता था सबसे खूबसूरत 'तेरी काली आंखें मारिया, जिसके पास जुबान है, वो हर वक़्त बोलती है'। वह ये जानती थी फिर भी बार बार सुनना चाहती थी ।और फिर एक दिन डेविड उसे छोड़ गया। सिंगिंग बेल और हिलक्वीन होटल की विरासतके साथ। हिल क्वीन की शाख पर बट्टा कैसे लगने देती वो। हिलक्वीन उसके और डेविड के 'साझे श्रम का संगीत ' जो था । वह उस संगीत को मरने नहीं देना चाहती। 'शहर अब वैसा नहीं रहा ,जैसा वह उसे जानती थी हवाएं बदल गई। आदमी और उसका व्यवहार बदल गया। अच्छे भले आदमी हाशिए में फिसल गए। हत्या और बलात्कार लोगों को उद्वेलित नहीं करते । ऐसे समाचार शौर्य गाथाओं की तरह पढ़े जाते हैं।' इस माहौल में शराब माफिया नसीब सिंह उससे हिलक्वीन छीनना चाहता है । उसे हर तरह मजबूर करना चाहता है कि वह हिल क्वीन उसके हाथों बेच दे ।तरह तरह के दवाब डालता है। इस षड्यंत्र में सारा शहर नसीब सिंह के साथ हैं क्योंकि सब उससे डरते है । यहां तक कि चर्च का पादरी भी मारिया को होटल बेचने के लिए कहता है ।जब वह पादरी से मदद के मांगती है तो वह कहता है , 'हमारे हाथ में बाइबल है बंदूक नहीं'। धर्म की मजबूरी नंगी होकर सामने आ जाती है। वह मायूस हो जाती है ।उसे जो भी मिलता है , चाहे वह चर्च की कैंडल बेंचने वाला हो, या और कोई, सब उसे होटल बेचने की सलाह देते हैं ।सत्ता और शासन का प्रतीक कॉन्स्टेबल जो नसीब सिंह की असलियत भी जानता है और इतिहास भी , वह भी अपनी मजबूरी बताते हुए मारिया को होटल बेचने की सलाह देता है।यहां तक कि इस साज़िश में खुद उसका बेटा भी शामिल है। जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, चाहे वह धर्म का हो या सत्ता ,का या इन दोनों के गठबंधन का, तब मारिया में एक नई शक्ति का जागरण होता है और वह दृढ़ता के साथ हिल्कवीन न बेचने का निश्चय लेती है। यह दृढ़ता उसमें कहां से आती है यह सोचने का विषय है। जब दुश्मन से लड़ते-लड़ते और भागते भागते हमारी पीठ दीवाल से लग जाती है, तो हमारे पास सिवाय लड़ने के और कोई विकल्प नहीं बचता और यही विकल्प शून्यता हमारी ताकत होती है। और इस शक्ति का स्रोत स्वयं हमारे अंदर होता है। बस उसे एक ट्रिगर की जरूरत होती है।
सुभाष पंत जी की इस कहानी की अंतर्धारा में कई पहलू है।इसमें एक नितांत अकेली स्त्री के समाज के साथ संघर्ष की कहानी है, तो दूसरी तरफ उसके एकाकीपन का व्यक्तिगत आयाम, जो उसके विगत के रूमानी जिंदगी की यादों से परिपूर्ण है। उसके पति की यादें उन दोनों की साझा आशाएं और आकांक्षाओं का प्रतीक हिलक्वीन होटल जिसकी हिफाजत उसके वर्तमान का मकसद बन जाता है।ये होटल उसकी अस्मिता का प्रतीक है. उसे हर कीमत पर बचाने की कोशिश में उसे माफ़िया और चर्च से लेकर अपने बेटे तक से टक्कर लेनी है। इसके लिए जो ताकत दरकार है, वो कहीँ और से नही , उसे अपने अंदर से , अपने वजूद से उत्खनित करनी है। अन्य सारे विकल्पों को 'रूल आउट ' करने के बाद उसे एहसास होता है की उस शक्ति का मूल तो उसके स्व: में ही निहित है। सिंगिंग बेल का बजना उसके इस इलहाम का प्रतीक ही नही है, बल्कि आने वाले कठिन संघर्ष और जद्दोजहद का आगाज़ भी है।
इस कहानी का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू समाज के उन लोगों के सच को उजागर करता है जिनकी रीढ की हड्डी अपना अस्तित्व खो चुकी है। उनके अंदर की अच्छाई और अंतरात्मा की आवाज का उद्बोधन अपना दम तोड़ चुका है। सच्चाई जानते हुए भी , अपने भय और निष्क्रियता के कारण , वे आक्रान्ता के पक्ष में खड़े दिखाई देतें है। कहानी में आम आदमी, समाज के विभिन्न वर्ग, धर्म और सत्ता के प्रतिनिधि सबका एक्सपोज़र अपने अपने ढंग से वर्णित है। ऐसे लोग सामाजिक विघटन और मूल्यों के छरण के उतने ही जिम्मेदार हैं जितने की नसीब सिंह जैसे लोग। ये सारे के सारे घटक मिलकर एक मूल्यविहीन विघटित सामाजिक राजनीतिक परिवेश का परिदृश्य हैं , जो हमारी समकालीन सच्चाई भी है। इस दृष्टि से पंत जी की ये कहानी, बिना sermonise किये, हमे अपने वर्तमान का आइना दिखाती हुई सी लगती है।
"An injustice anywhere is a threat to Justice everywhere."
चन्द्र नाथ मिश्र
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वाह
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