अकसर सुनते हैं कि फिल्म डायरेक्टर का माध्यम है और नाटक पात्रों का। हालांकि देखा जाए तो अभिनय की ये दोनों विधाएं ही मूल रूप से है तो पात्रों का ही माध्यम। फिर भी यदि कहावत को सच की तरह स्वीकारें तो भी यह आश्चर्य की बात ही होगी कि 1 अप्रैल 2024 को दून विश्वविद्यालय के डॉ नित्यानंद ऑडोटोरियम में खेले गए गढवाली नाटक “रुमेलो” को देखने के बाद कहना पड़ रहा है कि प्रदर्शित हुआ नाटक निर्देशन के कौशल का नमूना रहा। शेक्सपियर के नाटक “ओथेलो” पर आधारित रुमेलो की मंच परिकल्पना एवं निर्देशन दून विश्वविद्यालय में रंगमंच विभाग के शिक्षक डॉ अजीत पंवार ने किया। यह उल्लेखनीय है कीं नाटक के सभी पात्र दून विश्वविद्यालय के वे विद्यार्थी थे जिनमें से ज्यादतर के मंच पर उतरने के अनुभव नगण्य ही थे। मंचीय अनुभव सम्पन्न विद्यार्थियों की बात भी की जाए तो वे भी सीमित ही। यानि सीमित और नगण्य अनुभवों वाले कलाकारों से एक परिपक्व नाट्य प्रस्तुति को रच ले जाना बिना कुशल निर्देशकीय कौशल के सम्भव ही नहीं था। लेकिन सिर्फ इस एक मानक पर खरे उतरने के बाद भी यह कहना तो शायद उचित नहीं कि यह नाटक ‘निर्देशन के कौशल का नमूना रहा’।
जरूरी है कि उन अन्य जरूरी उपादानों का भी जिक्र हो जिन्होंने मंचित हुए इस नाटक में वे प्रभाव पैदा किये। इसीलिए सबसे पहला जिक्र होगा उस सेट का जो वातावरण का निर्माण करने के लिए नाटक में इस्तेमाल हुआ, अन्य अर्थों में कहें तो जिसे न सिर्फ तकनीक के समुचित प्रयोग से रचा गया, बल्कि जिंदगी के राग रंग स्पष्ट तरह से दर्शकों तक पहुंच सकें, उस तरह से व्यवस्थित किया गया। यह कहना कतई ज्यादा न होगा कि सेट के कारण जो वातावरण सृजित हुआ, उसके प्रभाव में ही दर्शक उतराखण्ड की इतिहास कथा के आस्वाद को मंचित होते दृश्यों में महसूस करते रहे। दृश्यों के प्रभाव उस पार्श्व संगीत से ओथेलो को रुमेलो में बदल रहे थे जो लोक की स्थानिकता में लयबद्ध होकर मंचीय संतुलन को सम्भाल रहा था और प्रकाश के सुनियोजन से प्रदीप्त हो रहा था। निर्देशकीय कौशल क़े ये उल्लेखनीय पक्ष भी भी शायद यह भ्रम रचने में असमर्थ रह जाते कि दर्शक शेक्सपियर का ओथेलो नहीं बल्कि गढवाली भाषा का ही कोई मूल नाटक देख रहे हैं, यदि नाटक का स्क्रिप्ट भाषायी रूपांतरण के रचनात्मक कौशल में न तैयार हुआ होता। नाट्य आलेख के लेखक दिनेश बिजल्वाण ने कथा के योरोपीय विन्यास से भिन्न उत्तराखण्डी भूगोल को ला खड़ा किया। सम्वादों में गढवाली भाषा का लालित्य उन मुहावरों में रचा जिन्होंने पात्रों की स्थानिकता को विश्वसनीय चरित्र की तरह पेश किया। नाटक के किरदार ओथेलो, डेसिमोना, इयागो, ऐमिला, कैशियो आदि के रूप में नहीं बल्कि अपनी स्थानिक आभा और चारित्रिक विशेषताओं के साथ रुमेलो, रुकमा, बिघ्नी, मायालू, बिच्छा आदि क़े रूप में दर्शकों के सामने आते हैं।
यह कहने में संकोच नहीं
कि न सिर्फ मंचन की दृष्टि से बल्कि लेखन की दृष्टि से भी शेक्सपियर के नाटक “ओथेलो”
पर आधारित रुमेलो दून विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक उपलब्धि होने का पात्र तो हुआ ही है, साथ ही आयोजित किये गये इस सात दिवसीय नाट्य उत्सव की भी उपलब्धि है। ज्ञात
हो की इस नाट्य उत्सव का अयोजन उत्त्र नाट्य संस्थान एवं रंगमंच, देहरादून और लोक कला विभाग दून विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में किया
गया है और 27 मार्च 2024 को रंगमंच दिवस के दिन शुरु हुआ।
अभिनय के स्तर पर हर पात्र की कोशिश अपने सर्वोत्तम के साथ प्रस्तुत होती हुई थी। घटना के प्रभावों में बिघ्नी की भूमिका में सृजन जोशी, रुमेलो- सृजन डोभाल, रुकमा- साक्षी देवरानी, बिच्छा आयूष चौहान, राजा- सिद्धार्थ डंगवाल, सुनार- संयम बिष्ट कई दिनों तक याद रहने वाले अभिनय हैं। जोत्रा के रूप में अनन्य डोभाल, मायालू- अंशुमन सजवाण, अलका- कनिष्का उनियाल, जलका- संध्या, कलदारसाह- राजदीप राणा और अन्य ग्रामीणों के रूप में मंच पर मौजूद रहे पात्रों की उपस्थिति के बिना तो नाटक के दृश्य भीं स्मृतियों में न उतर पाएंगे।
3 comments:
वाकई इस नाटक को देखकर, छपछपी पड़ गई। इतने उच्चस्तरीय नाटक के लिए, बहुत तैयारी और मेहनत की जरूरत है। प्रॉप्स से लेकर वस्त्रों तक का चयन, उनका प्रबंधन सब कुछ कितना सटीक था। बोली गई गढ़वाली भी अपने लहज़े के काफ़ी करीब थी और इस बात से मैं सबसे ज़्यादा प्रभावित रही। संवाद सुनकर आनंद आ गया, ये नाटक को आगे ही नहीं बढ़ा रहे थे बल्कि चरित्रों को गढ़ रहे थे, जैसा कि एक नाटक से अपेक्षा रहती है। पूरी टीम बधाई की पात्र है। देहरादून के रंगमंचीय इतिहास में इस साल के नाट्य समारोह को इसकी उत्कृष्ट प्रस्तुतियों के लिए याद किया जाएगा और एक रेजिडेंट के तौर पर मैं इस उपलब्धि से अभिभूत हूं।
बहुत सुन्दर
इस सुंदर समीक्षा के लिए बहुत धन्यवाद। आपने इतनी गहराई से नाटक को देखा पढ़कर अच्छा लगा।
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