देहरादून
नया ज्ञानोदय के अगस्त अंक में प्रकाशित साक्षात्कार में महिला रचाकारों के रचनाकर्म पर की गई अभद्र टिप्पणी के विरोध में आयोजित पत्रकार वार्ता में देहरादून के विभिन्न सामजिक साहित्यिक संगठनों के बीच स्पष्ट एकता दिखायी दी। महिला समाख्या, जागो रे अभियान, उत्तराखंड महिला मंच, संवेदना, दिशा सामाजिक संगठन, वाइज, प्रगतिशील महिला मंच की प्रतिनिधियों ने सामूहिक तौर पर पत्रकारवार्ता को संबोधित किया। साक्षात्कार में की गई टिप्पणी की निंदा करते हुए महात्मा गांधी राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति और साहित्यकार विभूतिनारायण राय के इस्तीफे की मांग शिक्षा मंत्री से की गई। वार्ता में शामिल महिला संगठनों का मानना था कि विभूतिनारायण राय की ओर से की गई टिप्पणी उनकी कुत्सित मानसिकता को दिखाती है। पत्रकार वार्ता को संबोधित करने वालों में गीता गैरोला, कमला पंत, मनमोहन चड्ढा, पदमा गुप्ता आदि मुख्य रहे। देहरादून के अन्य साहित्यकार और सामाजिक, सांस्कृतिक संगठनों के बहुत से कार्यकर्ता इस अवसर पर उपस्थित रहे।
Wednesday, August 11, 2010
Sunday, August 8, 2010
विवादित साक्षात्कार की हलचल
गोष्ठी की रिपोर्ट को दर्ज करने की सूचना पर इस ब्लाग के सहभागी लेखक राजेश सकलानी ने कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह द्वारा लिखित एक संस्मरण ( एक विरोधाभास त्रिलोचन) के उस अंश को दुबारा याद करना चाहा है जिसमें एक जिम्मेदार लेखक गरीब की बेटी को नग्न करके शब्द के अर्थ तक पहुंचने की कथा पूरी तटस्थता से सुनाता है। जबकि लेखक एक शिक्षाविद्ध भी है। |
साहित्य की समकालीन दुनिया की खबरों की हलचल का प्रभाव इतना गहरा था कि खराब मौसम के बावजूद 8 अगस्त 2010 को आयोजित संवेदना की मासिक रचनागोष्ठी बेहद हंगामेदार रही। कथाकार सुभाष पंत, डॉ जितेन्द्र भारती, कुसुम भट्ट, मदन शर्मा, दिनेश चन्द्र जोशी, के अलावा फिल्म समीक्षक मनमोहन चढडा और दर्शन लाल कपूर गोष्ठी में उपस्थित थे। अगस्त माह की यह गोष्ठी बिना किसी रचनापाठ के कथाकार और कुलपति विभूति नारायण राय के उस साक्षाकत्कार पर केन्द्रित रही जो नया ज्ञानोदय के अगस्त अंक में प्रकाशित हुआ है और विवाद के केन्द्र में है। महिला समाख्या की कार्यकर्ता गीता गैरोला के उस पत्र को आधार बनाकर बातचीत शुरू हुई जिसमें उन्होंने संवेदना के सदस्यों से अपील की है कि महिला रचनाकारों के बारे में अभद्र भाषा में की गई टिप्पणी के विरोध में 10 अगस्त को आयोजित होने वाली प्रेस कान्फ्रेन्स में, अपनी सहमति के साथ उपस्थित हों। साक्षात्कार का सामूहिक पाठ किया गया और उस पर विस्तृत बहस के बाद गोष्ठी में उपस्थित सभी रचनाकारों ने अभद्र भाषा में की गई टिप्पणी पर विरोध जताते हुए प्रेस कांफ्रेंस में संवेदना की भागीदारी की सहमति जतायी।
जयपुर
प्रेमचंद जयंती समारोह-2010
राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ और जवाहर कला केंद्र की पहल पर इस बार जयपुर में प्रेम चंद की कहानी परंपरा को ‘कथा दर्शन’ और ‘कथा सरिता’ कार्य क्रम ों के माध्यम से आम लोगों तक ले जाने की काम याब कोश िश हुई, जिसे व्यापक लोगों ने सराहा। 31 जुलाई और 01 अगस्त, 2010 को आयोजित दो दिवसीय प्रेमचंद जयंती समारोह में फिल्म प्रदर्शन और कहानी पाठ के सत्र रखे गए थे। समारोह की शुरुआत शनिवार 31 जुलाई, 2010 की शाम प्रेमचंद की कहानियों पर गुलजार के निर्देशन में दूरदर्शन द्वारा निर्मित फिल्मों के प्रदर्शन से हुई। प्रेमचंद की ‘नमक का दारोगा’, ‘ज्योति’ और ‘हज्ज-ए-अकबर’ फिल्में दिखाई गईं।
रविवार 01 अगस्त, 2010 को वरिष्ठ रंगकर्मी एस.एन. पुरोहित ने प्रेमचंद की कहानी ‘नमक का दारोगा’ का अत्यंत प्रभावशाली पाठ किया। कथाकार राम कुमार सिंह ने ‘शराबी उर्फ तुझे हम वली समझते’ कहानी का पाठ किया। कहानी पाठ की शृंखल ा में प्रदेश के युवतम कथाकार राजपाल सिंह शेखावत ने ‘नुगरे’ कहानी का पाठ किया| उर्दू अफसानानिगार आदिल रज़ा मंसूरी ने अपनी कहानी ‘गंदी और त’ का पाठ किया। सुप्रसिद्व युवा कहानीकार अरुण कुमार असफल ने अपनी कहानी ‘क ख ग’ का पाठ किया। मनीषा कुलश्रोष्ठ की अनुपस्थिति में सुपरिचित कलाकार सीमा विजय ने उनकी कहानी ‘स्वांग’ का प्रभावी पाठ किया। अध्यक्षता करते हुए जितेंद्र भाटिया ने पढ़ी गई कहानियों की चर्चा करते हुए समकाल ीन रचनाशीलता को रेखांकित करते हुए कहा कि इधर लिखी जा रही कहानियों ने हिंदी कहानी के भविष्य को लेकर बहुत आशाएं जगाईं हैं। सत्र के समापन में उन्होंने अपनी नई कहानी ‘ख्वाब एक दीवाने का’ का पाठ किया।
‘कथा सरिता’ के दूसरे सत्र का आरंभ वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज की अध्यक्षता में युवा कहानी कार दिनेश चारण के कहानी पाठ से हुआ। इसके बाद लक्ष्मी शर्मा ने ‘मोक्ष’ कहानी का पाठ किया। युवा कवि कथाकार दुष्यंत ने ‘उल्टी वाकी धार’ कहानी का पाठ किया। चर्चित कथाकार चरण सिंह पथिक ने ‘यात्रा’ कहानी का पाठ किया।
प्रस्तुति : फारुक आफरीदी
Friday, August 6, 2010
देहरादून के साल वन :दिनेश चन्द्र जोशी का गीत
दूर तक फैले सघन
देहरादून के सालवन
हरितिमा ही हरितिमा
आंखों की प्रियतमा
वृक्षों का कारवां
कभी यहां , कभी वहां
गजब के कमाल वन
देहरादून के साल वन
पेडों की पांत का
उठता हुआ सिलसिला
काही रंग के मंजर का
हंसता हुआ काफिला
बाहें फैलाये खडे
गले मिलो, अंग्वाल वन
देहरादून के साल वन
रात गहराई हुई
बात शरमाई हुई
झुरमुटों में वनचरों की
नींद अलसाई हुई
सांझ से चुप मौन साधे
खडॆ हैं निढाल वन
देहरादून के साल वन
पतझड़ में ठूंठ प्यारे
पेड़ नंगे तन विचारे
पत्तियों की चरमराहट की
कई नयी ताल ध्वनियां
फाल्गुन में फूलों की
महमहाती फुनगियां
सुतर लम्बे, हरे खम्बे
मोहक मृणाल वन
देहरादून के साल वन
बारिश मे बूंदे गिरतीं
वृक्षों की छाती पर
कोहरे की धुंध चिरती
मिटें ना, ये कटे ना
जादुई माहौल रचते
गझिन मालामाल वन
देहरादून के साल वन
देहरादून के सालवन
हरितिमा ही हरितिमा
आंखों की प्रियतमा
वृक्षों का कारवां
कभी यहां , कभी वहां
गजब के कमाल वन
देहरादून के साल वन
पेडों की पांत का
उठता हुआ सिलसिला
काही रंग के मंजर का
हंसता हुआ काफिला
बाहें फैलाये खडे
गले मिलो, अंग्वाल वन
देहरादून के साल वन
रात गहराई हुई
बात शरमाई हुई
झुरमुटों में वनचरों की
नींद अलसाई हुई
सांझ से चुप मौन साधे
खडॆ हैं निढाल वन
देहरादून के साल वन
पतझड़ में ठूंठ प्यारे
पेड़ नंगे तन विचारे
पत्तियों की चरमराहट की
कई नयी ताल ध्वनियां
फाल्गुन में फूलों की
महमहाती फुनगियां
सुतर लम्बे, हरे खम्बे
मोहक मृणाल वन
देहरादून के साल वन
बारिश मे बूंदे गिरतीं
वृक्षों की छाती पर
कोहरे की धुंध चिरती
मिटें ना, ये कटे ना
जादुई माहौल रचते
गझिन मालामाल वन
देहरादून के साल वन
Saturday, July 31, 2010
देखते हैं क्या प्राब्लम है आपकी
टेलीफोन डिपार्टमेंट के निगमी करण के बावजूद बी एस एन एल एक सार्वजनिक सेवा ही है। निजीकरण की प्रक्रिया को एकतरफा बढ़ावा देती सरकारी नीतियों के चलते वह कब तक सरकार बनी रहेगी यह प्रश्न न सिर्फ बी एस एन एल के लिए है बल्कि उन बहुत से क्षेत्रों के सामने भी खड़ा है जो अभी सार्वजनिक सेवा के रुप में सरकारी मशीनरी द्वारा ही संचालित है। बी एस एन एल का सबक दूसरे विभागों को भी निजी हाथों में सौंपने का एक पाठ हो सकता है।
जानकार सूत्रों के मुताबिक बी एस एन एल का संचालन दो विभिन्नस्तरीय सेवाओं के जरिये सम्पन्न हो रहा है। एकतरफ है ग्रुप सी और डी के कर्मचारी जिनके पास निगमीकरण की प्रक्रिया के आरम्भिक चरण में ही खुद को निगम की सेवा शर्तों के मुताबिक नौकरी में बने रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहा। वहीं दूसरी ओर हैं ग्रुप ए अधिकारी जो अभी तक सरकारी सेवाओं के अधीन कार्यरत हैं और निजी संस्थान के तर्क को आए दिन मजबूती प्रदान करने के लिए कार्यरत है। बी एस एन एल की सेवाओं से परेशान उपभोक्ता से बात करने का या तो उनके पास वक्त नहीं या वे उपलब्ध ही नहीं। गलती से सम्पर्क हो भी जाए तो कोई ठोस कदम उठाने की बजाय टालू तरीका- ""देखते हैं क्या प्राब्लम है आपकी।"" यदि जवाब अप्रत्याशित मिले, ''मुझसे क्यों बात कर रहे है ?"" तो आश्चर्य न करें। 27 जुलाई 2010 का वह एक ऐसा ही दिन था जब महीनों महीनों से लगातार खराब चल रहे ब्राड-बैण्ड और टेलीफोन के सम्बंध में देहरादून बी एस एन एल के जी एम से अपनी समस्या को रखने की प्रार्थना करने पर डिवीजनल इंजिनियर श्री सी एम सक्सेना का ऑफिस फोन न। 0135-2720080 एवं व्यक्तिगत मोबाइल नम्बर उपभोक्ता को मुहैया कराया गया। ऑफिस का फोन तो कितनी ही फोन कॉलों के बाद भी अबोला ही बना रहा और व्यक्तिगत नम्बर जो यूं तो स्वीच ऑफ जैसे संदेशों की आवाज देता या फिर पूरी पूरी कॉल जाने के बाद भी शायद स्क्रीन पर किसी अनजाने नम्बर की आवाज को सुनने को उत्सुक न था। हां 29 जुलाई की दोपहर अनजाने नम्बर पर हुई कृपा पर उपभोक्ता द्वारा अपनी समस्या बताने के बाद ही ''मुझसे क्यों बात कर रहे है ?"" के साथ दूसरी ओर से आती आवाज ने पीड़ित उपभोक्ता को छटपटा कर रह जाने को मजबूर कर दिया। फोन खराब हो और कईयों-कईयों दिनों तक खराब ही रह रहा हो और ऊपर से किसी जिम्मेदार अधिकारी तक अपनी समस्या बताने पर टका सा जवाब मिले तो क्या किया जा सकता है। धैर्य बनाये रख सके तो और ऊपर के अधिकारी से बात करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं। ऊपर का अधिकारी कौन? कोई डी जी एम या सीधे जी एम ही न। लेकिन अफसोस जब भी सम्पर्क करना चाहो सिर्फ सुनने को मिलता है, साहब तो अभी हैं नहीं, क्या काम है ? परेशान आदमी के लिए यह भी एक राहत की ही आवाज हो सकती है। पर हफ्तों हफ्तों तक एक ही बात को दोहराते हुए और बार-बार खराब टेलीफोन के नम्बर को बताते हुए कोई कब तक धैर्य रख सकता है। पर यकीन जानिए कि यदि आप उखड़ने लगें तो तुरन्त बहुत ही आत्मीय सी आवाज में एक नया नम्बर मुहैया करा दिया जाएगा कि यह फलाने-फलाने का है आप इनसे बात कर लीजिए, आपका नम्बर हमने भी नोट कर लिया है उन्हें बता देगें। यदि खुद यकीन करना चाहे और बेहद आत्मीय सी लगती आवाज सुनना चाहें तो बात करके देख लीजिए देहरादून जी एम सेक्रेटिएट के नम्बर पर 0135-2727374 या 0135-2625600। पर यकीन जानिए न तो समस्या सुलझेगी और न ही आप जी एम से बात कर पाएंगे। क्योंकि यदि आप सहृदय हैं तो उस क्षण उस आवाज पर, जो जी एम सेक्रेटिएट से आ रही होगी, जरा भी संदेह न कर पाएंगे और मान ही लेगें कि जी एम मौजूद नहीं है। तो क्या जी एम बी एस एन एल, देहरादून कभी अपने ऑफिस में होते ही नहीं। ''नहीं नहीं यह इत्तिफाक है, आप आध घंटे बाद मालूम कर लीजिए।" गनीमत हो कि कहीं आप हर आध घंटे में फोन न करने लगें--- और एक दिन, दो दिन---पांच दिन या महीना ही बीत जाए पर आपके लिए इत्तिफाक इत्तिफाक ही बना रहे।
जानकार सूत्रों के मुताबिक बी एस एन एल का संचालन दो विभिन्नस्तरीय सेवाओं के जरिये सम्पन्न हो रहा है। एकतरफ है ग्रुप सी और डी के कर्मचारी जिनके पास निगमीकरण की प्रक्रिया के आरम्भिक चरण में ही खुद को निगम की सेवा शर्तों के मुताबिक नौकरी में बने रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहा। वहीं दूसरी ओर हैं ग्रुप ए अधिकारी जो अभी तक सरकारी सेवाओं के अधीन कार्यरत हैं और निजी संस्थान के तर्क को आए दिन मजबूती प्रदान करने के लिए कार्यरत है। बी एस एन एल की सेवाओं से परेशान उपभोक्ता से बात करने का या तो उनके पास वक्त नहीं या वे उपलब्ध ही नहीं। गलती से सम्पर्क हो भी जाए तो कोई ठोस कदम उठाने की बजाय टालू तरीका- ""देखते हैं क्या प्राब्लम है आपकी।"" यदि जवाब अप्रत्याशित मिले, ''मुझसे क्यों बात कर रहे है ?"" तो आश्चर्य न करें। 27 जुलाई 2010 का वह एक ऐसा ही दिन था जब महीनों महीनों से लगातार खराब चल रहे ब्राड-बैण्ड और टेलीफोन के सम्बंध में देहरादून बी एस एन एल के जी एम से अपनी समस्या को रखने की प्रार्थना करने पर डिवीजनल इंजिनियर श्री सी एम सक्सेना का ऑफिस फोन न। 0135-2720080 एवं व्यक्तिगत मोबाइल नम्बर उपभोक्ता को मुहैया कराया गया। ऑफिस का फोन तो कितनी ही फोन कॉलों के बाद भी अबोला ही बना रहा और व्यक्तिगत नम्बर जो यूं तो स्वीच ऑफ जैसे संदेशों की आवाज देता या फिर पूरी पूरी कॉल जाने के बाद भी शायद स्क्रीन पर किसी अनजाने नम्बर की आवाज को सुनने को उत्सुक न था। हां 29 जुलाई की दोपहर अनजाने नम्बर पर हुई कृपा पर उपभोक्ता द्वारा अपनी समस्या बताने के बाद ही ''मुझसे क्यों बात कर रहे है ?"" के साथ दूसरी ओर से आती आवाज ने पीड़ित उपभोक्ता को छटपटा कर रह जाने को मजबूर कर दिया। फोन खराब हो और कईयों-कईयों दिनों तक खराब ही रह रहा हो और ऊपर से किसी जिम्मेदार अधिकारी तक अपनी समस्या बताने पर टका सा जवाब मिले तो क्या किया जा सकता है। धैर्य बनाये रख सके तो और ऊपर के अधिकारी से बात करने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं। ऊपर का अधिकारी कौन? कोई डी जी एम या सीधे जी एम ही न। लेकिन अफसोस जब भी सम्पर्क करना चाहो सिर्फ सुनने को मिलता है, साहब तो अभी हैं नहीं, क्या काम है ? परेशान आदमी के लिए यह भी एक राहत की ही आवाज हो सकती है। पर हफ्तों हफ्तों तक एक ही बात को दोहराते हुए और बार-बार खराब टेलीफोन के नम्बर को बताते हुए कोई कब तक धैर्य रख सकता है। पर यकीन जानिए कि यदि आप उखड़ने लगें तो तुरन्त बहुत ही आत्मीय सी आवाज में एक नया नम्बर मुहैया करा दिया जाएगा कि यह फलाने-फलाने का है आप इनसे बात कर लीजिए, आपका नम्बर हमने भी नोट कर लिया है उन्हें बता देगें। यदि खुद यकीन करना चाहे और बेहद आत्मीय सी लगती आवाज सुनना चाहें तो बात करके देख लीजिए देहरादून जी एम सेक्रेटिएट के नम्बर पर 0135-2727374 या 0135-2625600। पर यकीन जानिए न तो समस्या सुलझेगी और न ही आप जी एम से बात कर पाएंगे। क्योंकि यदि आप सहृदय हैं तो उस क्षण उस आवाज पर, जो जी एम सेक्रेटिएट से आ रही होगी, जरा भी संदेह न कर पाएंगे और मान ही लेगें कि जी एम मौजूद नहीं है। तो क्या जी एम बी एस एन एल, देहरादून कभी अपने ऑफिस में होते ही नहीं। ''नहीं नहीं यह इत्तिफाक है, आप आध घंटे बाद मालूम कर लीजिए।" गनीमत हो कि कहीं आप हर आध घंटे में फोन न करने लगें--- और एक दिन, दो दिन---पांच दिन या महीना ही बीत जाए पर आपके लिए इत्तिफाक इत्तिफाक ही बना रहे।
Tuesday, July 27, 2010
एक रात, एक पात्र और पांच कहानियां(२)
इस कडी की तीन कहानियां पिछली पोस्ट में थीं। शेष आज
कत्ल
एक मकान के पास वह रुक गया.इसमें दोस्त रहता है,उसने दरवाजा खटखटाया.
"कौन है?"
"मैं"
"मैं कौन?"
"तुम्हारा दोस्त."उसने टूटती आवाज में कहा."
"वह नहीं आया."भीतर से आवाज आयी.
"अच्छा!मैंने उसे कत्ल कर दिया"उसने दरवाजे पर लात जमायी
दोस्त
वह शहर के अंधेरे में उजली सड़कों पर भटक रहा है.अस्पताल पीछे छूट गया,जनाना अस्पताल से आती चीख की आवाजें पीछे छूट गयीं.गश्त में निकले पुलिस के सिपाहियों ने उसे अनदेखा किया.उसे थाने जाना चाहिये.
"थाना किधर है?"वह सिपाहियों के सामने खड़ा हो गया.
"उधर"एक सिपाही ने उस तरफ़ संकेत किया जहां आग जल रही थी.वह उधर बढ़ गया.
वहां आग जल रही है और लोग बैठे हैं.
"तुम लोग कौन हो?"उसने पूछा.
"हम तुम्हारे दोस्त हैं"
"दोस्त! तुम्हारे घर कहां हैं?"
"हमारे घर नहीं हैं"
"सुबह उठ कर कहां जाओगे?"उसका संशय दूर नहीं हुआ.
"सूरज की रोशनी में किसी को घर की जरूरत नहीं रहती"
कत्ल
एक मकान के पास वह रुक गया.इसमें दोस्त रहता है,उसने दरवाजा खटखटाया.
"कौन है?"
"मैं"
"मैं कौन?"
"तुम्हारा दोस्त."उसने टूटती आवाज में कहा."
"वह नहीं आया."भीतर से आवाज आयी.
"अच्छा!मैंने उसे कत्ल कर दिया"उसने दरवाजे पर लात जमायी
दोस्त
वह शहर के अंधेरे में उजली सड़कों पर भटक रहा है.अस्पताल पीछे छूट गया,जनाना अस्पताल से आती चीख की आवाजें पीछे छूट गयीं.गश्त में निकले पुलिस के सिपाहियों ने उसे अनदेखा किया.उसे थाने जाना चाहिये.
"थाना किधर है?"वह सिपाहियों के सामने खड़ा हो गया.
"उधर"एक सिपाही ने उस तरफ़ संकेत किया जहां आग जल रही थी.वह उधर बढ़ गया.
वहां आग जल रही है और लोग बैठे हैं.
"तुम लोग कौन हो?"उसने पूछा.
"हम तुम्हारे दोस्त हैं"
"दोस्त! तुम्हारे घर कहां हैं?"
"हमारे घर नहीं हैं"
"सुबह उठ कर कहां जाओगे?"उसका संशय दूर नहीं हुआ.
"सूरज की रोशनी में किसी को घर की जरूरत नहीं रहती"
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