नेपाल में एक राजा रहता था. नेपाल की मांऐ अपने बच्चों को सुनायेगी लोरिया। बिलख रहे बच्चे डर नहीं रहे होगें, बेशक कहा जा रहा होगा - चुपचाप सो जाओ नहीं तो राजा आ जायेगा।
खबरों में नेपाल सुर्खियों में है। कौन नहीं होगा जो सदी के शुरुआत में ही जनता के संघर्षों की इस आरम्भिक, ऐतिहासिक जीत को सलाम न कहे। उससे प्रभावित न हो। जनता के दुश्मन भी, इतिहास के अंत की घोषणा करते हुए जिनके गले की नसें फूलने लगी थी, शायद अब मान ही लेगें कि उनके आंकलन गलत साबित हुए है। 240 वर्ष पुराने राजतंत्र का खात्मा कर नये राष्ट्रीय क्रान्तिकारी जनवाद की ओर बढ़ती नेपाली जनता को उनकी जीत की खुशी क पैगाम देना चाहता हूं। 20 वीं सदी की क्रान्तिकारी कार्यवाहियों 1917 एवं 1949 के बाद लगातार बदलते गये परिदृश्य के साथ सदी के अंतिम दशक के मध्य संघर्ष के जनवादी स्वरुप की दिशा का ये प्रयोग नेपाली जनता को व्यापक स्तर पर गोलबंद करने में कामयाब हुआ है। तीसरी दुनिया के मुल्कों की जनता रोशनी के इस स्तम्भ को जगमगाने की अग्रसर हो, यहीं से चुनौतियों भरे रास्ते की शुरुआत होती है। पूंजीवादी लोकतंत्र के भीतर राजसत्ता का वह स्वरुप जो वर्गीय दमन का एक कठोर यंत्र बनने वाला होता है, उस पर अंकुश लगे और उत्पादन के औजारों पर जनता के हक स्थापित हो, ये चिन्ता नेपाली नेतृत्व के सामने भी मौजूद ही होगी। औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया कायम हो पाये, जो गरीब और तंगहाली की स्थितियों में जीवन बसर कर रही नेपाली जनता को जीवन की संभावनाओं के द्वार खोले, ऐसी कामना ही रोजगार के अभाव में पलायन कर रहे नेपालियों के लिए एक मात्र शुभकामना हो सकती है। भरत प्रसाद उपाध्याय मेरा मित्र है, जो नेपाली मूल का है। चुनाव के बाद नेपाल से मिल रही सूचनाओं में ऐसी ही उम्मीदों के साथ है ढेरों अन्य नेपाली मूल के तमाम भारतीय। अपने जनपद देहरादून के बारे में कहूं तो ऐसे ढेरों लोगों ने ही उसे आकार देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। वे भी जो कुछ दिनों पहले तक सूचना तंत्र के द्वारा फैलायी जा रही खबरों, जिनमें नेपाल के जन आंदोलन को आतंकवाद की संज्ञा दी जाती रही, अब उम्मीदों के साथ देख रहे हैं। नेपाल के वर्तमान परिदृश्य पर पिछले दो दिनों से लिखने का मन था, जो कुछ लिखने लगा हूं वह अवांतर कथाओं के साथ विस्तार लेता जा रहा है। उम्मीद है कुछ दिनों में ही पूरा कर पाऊंगा अब। तब तक नेपाल की स्थिति भी काफी साफ हो ही जायेगी।
खबरों में नेपाल सुर्खियों में है। कौन नहीं होगा जो सदी के शुरुआत में ही जनता के संघर्षों की इस आरम्भिक, ऐतिहासिक जीत को सलाम न कहे। उससे प्रभावित न हो। जनता के दुश्मन भी, इतिहास के अंत की घोषणा करते हुए जिनके गले की नसें फूलने लगी थी, शायद अब मान ही लेगें कि उनके आंकलन गलत साबित हुए है। 240 वर्ष पुराने राजतंत्र का खात्मा कर नये राष्ट्रीय क्रान्तिकारी जनवाद की ओर बढ़ती नेपाली जनता को उनकी जीत की खुशी क पैगाम देना चाहता हूं। 20 वीं सदी की क्रान्तिकारी कार्यवाहियों 1917 एवं 1949 के बाद लगातार बदलते गये परिदृश्य के साथ सदी के अंतिम दशक के मध्य संघर्ष के जनवादी स्वरुप की दिशा का ये प्रयोग नेपाली जनता को व्यापक स्तर पर गोलबंद करने में कामयाब हुआ है। तीसरी दुनिया के मुल्कों की जनता रोशनी के इस स्तम्भ को जगमगाने की अग्रसर हो, यहीं से चुनौतियों भरे रास्ते की शुरुआत होती है। पूंजीवादी लोकतंत्र के भीतर राजसत्ता का वह स्वरुप जो वर्गीय दमन का एक कठोर यंत्र बनने वाला होता है, उस पर अंकुश लगे और उत्पादन के औजारों पर जनता के हक स्थापित हो, ये चिन्ता नेपाली नेतृत्व के सामने भी मौजूद ही होगी। औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया कायम हो पाये, जो गरीब और तंगहाली की स्थितियों में जीवन बसर कर रही नेपाली जनता को जीवन की संभावनाओं के द्वार खोले, ऐसी कामना ही रोजगार के अभाव में पलायन कर रहे नेपालियों के लिए एक मात्र शुभकामना हो सकती है। भरत प्रसाद उपाध्याय मेरा मित्र है, जो नेपाली मूल का है। चुनाव के बाद नेपाल से मिल रही सूचनाओं में ऐसी ही उम्मीदों के साथ है ढेरों अन्य नेपाली मूल के तमाम भारतीय। अपने जनपद देहरादून के बारे में कहूं तो ऐसे ढेरों लोगों ने ही उसे आकार देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। वे भी जो कुछ दिनों पहले तक सूचना तंत्र के द्वारा फैलायी जा रही खबरों, जिनमें नेपाल के जन आंदोलन को आतंकवाद की संज्ञा दी जाती रही, अब उम्मीदों के साथ देख रहे हैं। नेपाल के वर्तमान परिदृश्य पर पिछले दो दिनों से लिखने का मन था, जो कुछ लिखने लगा हूं वह अवांतर कथाओं के साथ विस्तार लेता जा रहा है। उम्मीद है कुछ दिनों में ही पूरा कर पाऊंगा अब। तब तक नेपाल की स्थिति भी काफी साफ हो ही जायेगी।
2 comments:
good article. congratulations.
आशा है जैसा आप सोच रहे हैं व कामना कर रहे हैं वैसा ही हो । परन्तु जो भय व ताकत के बल पर अपना कहना मनवाने के आदी हो जाते हैं वे अचानक लोकतांत्रिक नहीं बन जाते । जब तक चुनावों में वे सफल होंगे चुनाव तब तक ही जायज माने जाएँ ऐसा भी हो सकता है । देखें ऊँट किस करवट बैठता है ।
घुघूती बासूती
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