Tuesday, April 15, 2008

गुजरते हुए

विजय गौड

(एक लम्बी कविता। वर्ष 200५ में रुपकुंड की यात्रा के दौरान जिसे यूंही टुकड़ों टुकड़ों में लिखा गया। समुद्र तल से लगभग 16500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है रुपकुंड। वर्षों पहले किसी विभिषका के दौरान बर्फ के नीचे दब गये नर कंकाल जहां आज भी ज्यों के त्यों हैं। रुपकुंड से आगे ज्यूरागली दर्रे से होते हुए घाट पहुंचा जा सकता है। 12 वर्षों के अंतराल पर निकलने वाली 12 सिंगों वाले खाडू बकरे के साथ नंदा देवी की जात-यात्रा सांस्कृतिक यात्रा का मार्ग भी यही है। खाडू को तो यहां से त्रिशूली चोटी की ओर रवाना कर दिया जाता है।)

घाटियों से उठते धुंए
और पंखा झलते पहाड़ों से लय बैठाते,
वाहन में सवार
खिड़की से गर्दन बाहर निकाल
उलटते रहे खट्टापन
बुग्यालों पर पिघल चुकी बर्फ के बाद
हरहराती-फिसलन से बेदखल कर दी गयी
भेड़ बकरियों की मिमियाट को खोजते हुए बढ़ते रहे
जली हुई चट्टानों की ओर
खो चुके रास्तों को खोजना जोखिम से भरा ही था
रुपकुंड की ऊंचाई से भी ऊपर
ज्यूरागली के डरावने पन के पार
शिला-समुद पहुंचना आसान नहीं इतना।
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पहाड़ों की खोह में है रुपकुंड
रुपकुंड में नहीं संवारा जा सकता है रुप
बर्फानी हवाऐं वैसे ही फाड़ देंगी चेहरा
यदि मौसम के गीलेपन को निचोड़ दिया चट्टानों ने,
खाल पर दरारें तो गीलेपन के खौफ से भी न डरेंगीं,
एक उम्र तक पहुंचने से पहले
यूं ही नहीं सिकुड़न बना लेती है घर
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नाम मात्र से आकर्षित होकर
रुपकुंड का रास्ता पकड़ना
खुद को जोखिम में डालना होगा
तह दर तह बिछी हुई बर्फ के नीचे
दबे हुई लाशें अनंतकाल से दोहरा रही हैं,
कटी हुई चट्टानों में रुकने का
जोखिम न उठाना कभी
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सदियों से उगती रही है
बेदनी बुगयाल में बुग्गी घास,
चरती रही हैं भेड़ें आली और दयारा बुग्याल में भी
रंग बदलती घास ही
चिपक जाती है बदन पर भेड़ों के
जो देती है हमें गर्माहट
और मिटाती है भेड़ चरवाहों की थकावट
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अतीश, पंजा, मासी-जटा
अनगिनत जड़ी-बूटियों के घर हैं बुग्याल,
कीड़ा-झाड़अ हाल ही में खोजा गया नया खजाना है
जो पहाड़ों के लुटेरों की
भर रहा है जेब
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बुग्याल के बाद भी
कितनी ही चढ़ाई और उतराई होंगी रुपकुंड तक पहुंचने में
कितने ही दिन रपटीले पहाड़ों पर
ढूंढ कर कोई समतल कहा जा सकने वाला कोना
करेगें विश्राम
पुकारेगें एक दूसरे का नाम,
आवाजों के सौदागर नहीं लगा पायेगें शुल्क,
निशुल्क ही कितने ही दिनों तक सुन सकते हैं
पत्थरों के नीचे से बहते पानी की आवाज
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बुग्यालों पर खरीददार होंगे,
क्या कह रहें हैं जनाब
बिकने के लिए भी तो कुछ नहीं है बुग्यालों में
समय विशेष पर उगने वाली जड़ियां तो
किसी एक टूटी हुई गोठ पर टांग दिये गये
राजकीय चिकित्सालय से
किसी भी तरह की उम्मीद न होने का सहारा भर हैं
फिर ऐसा क्यों हो रहा है हल्ला,
रोपवे खिंच जायेगा वहां
सड़क पहुंच जायेगी
गाड़ियों के काफिलें पहुंचने से इतनी पहले
बेदखल कर दिये गये जानवर
फिर किस लिए ?
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रुपकुंड के शीष पर चमकती है ज्यूरागली
पाद में फैले हैं बुग्याल;
आली, बेदनी, कुर्मातोली, गिंगातोली
बाहें कटावदार चट्टानों में दुबक कर बैठे
ग्लेशियरों में धंस गयी हैं
चेहरे को भी छुपा लिया है बर्फ ने
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बर्फ में मुंह छुपाये रुपकुंड के चेहरे को जरा संभल कर देखना
मौसम उसकी प्रेमिका है,
कोहरे में ढक देंगें बादल
ओलावृष्टि से क्षत-विक्षत हो जायेगें शरीर
कोई रपटीला ग्लेशियर भी
धकेल सकता है हजारों फुट गहरी खाई में
कार्बन डेटिंग के अलावा
और कोई आकर्षण नहीं रहेगा मानव शरीर का
बर्फ के नीचे दुबका कीड़ा-झाड़
ज्यादा अहमियत रखता है
मुनाफाखोरों के लिए।
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हां जी की नौकरी न जी का घर,
बड़ बड़ाते और आशंकित खतरे से डरे
बढ़ते रहे नरेन्द्र सिंह दानू और देवीदत्त कुनियाल
बगुवावासा में ही छोड़ दो सामान, सर
बिना पिट्ठु के ही रुपकुंड तक पहुंचना आसान नहीं है
ज्यूरागली तो मौत का घर है, सर

क्षरियानाग पर पस्त होने के बाद भी
नहीं रुके
नहीं रुकेगें शिला-समुद्र तक,
हमने ढेरों पहाड़ किये हैं पार

ज्यूरागली का रास्ता नहीं है आसान
पहाड़ों का पहाड़ है ज्यूरागली,
नीचे मुंह खोले बैठा है रुपकुंड

हमारे पिट्ठुओं का वजन
गीले हो चुके सामानों से बढ़ गया है, सर
पर नहीं हटेगें हम पीछे
चलेगें आपके साथ-साथ
बाल-बच्चे दार तो आप भी हैं न सर
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पहाड़ ताकत से नहीं हिम्मत से होते हैं पार
दृढ़ इच्छाशक्ति ही
कंधों पर लदे पिट्ठुओं के भार को हवा कर सकती है,
हवा की अनुपस्थिति में तो उठते ही नहीं पैर
फेफड़ों की धौंकनी तो गुम ही कर देती है आवाज
रपटीले पहाड़ों पर रस्सी क्रे सहारे चढ़ना-उतरना
टंगी हुई हिम्मत को अपने भीतर इक्ट्ठा करना है बस।
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बर्फीले ढलान पर नहीं होता कोई पद-चिन्ह,
किसी न किसी को तो उठाना ही पड़ेगा जोखिम आगे बढ़ने का
काटने ही होगें फुट-हॉल पीछे आने वालों के लिए
कमर में बंधी रस्सी के सहारे
आगे बढ़ते हुए फुट-हॉल काटता व्यक्ति
रस्सी पर चलने का करतब दिखाता
नट नजर आता है।
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धीरे-धीरे चलना, सर
तेज चलकर रुक जाने में कोई बुद्धिमानी नहीं है, सर
ऐसे तो एक कैंची भी नहीं कर पायेगें पार
खड़ी चढ़ाई पर चढ़ना तो और भी मुश्किल हो जायेगा

धीरे-धीरे चलना,
सर ऊंचाईयों को ताकते हुए तो दम ही टूट जायेगा,
अपने से मात्र दो फुट आगे ही निगाह रखें, सर
रुक-रुक कर नहीं
ऐसे एक-एक कदम चलें सर

सिर्फ कदमों पर निगाह रखें, सर
सिर्फ अपने कदमों की लय बैठायें, सर
ऊंचाई दर ऊंचाई अपने आप पार हो जायेगीं

देखना ही है तो नीचे छूट गये अपने साथी को देखें, सर
कहीं उसे आपकी मद्द की जरुरत तो नहीं
बेशक थकान कितनी ही भर चुकी हो
बेशक मुश्किल हो रहा हो पांव उठाना,
धीरे-धीरे चलते रहें, सर
लय बैठाने के लिए अभ्यास जरुरी है,
कदम गिन-गिन कर शुरु करें, सर
रुकना ही है तो गिनती पूरी होने पर ही
पल भर को खड़े-खड़े ही रुके, सर
चढ़ाई पर तो बदन आराम मांगता ही है
ठहरिये मत, सर
वैसे भी यूंही
कहीं पर ठहर जाना तो खतरनाक हो ही सकता है, सर

धीरे-धीरे चलें, सर
सिर्फ चलते रहें
एक ही लय में बिना थके
पीठ का बोझ तो वैसे ही हवा हो जायेगा
सिर्फ कमर को थोड़ा झुका लें, सर
सिर नही ।
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ढाल पर उतरते हुए तो और भी सचेत रहें, सर
घुटनों पर जोर पड़ता है;
ध्यान हटा नहीं कि रिपटते चले जायेगें

बस वैसे ही चलें, एक-एक कदम
ध्यान रखें सर
पिट्ठु, लाठी या कैमरा
कुछ भी फंस सकता है चट्टान में
एक बार डोल गये तो मैं भी कुछ नहीं कर पाऊंगा, सर
वैसे आप निष्फिकर रहें
मैं आपके साथ हूं
आगे निकल चुके साथियों को,
यदि हम ऐसे ही चलते रहे,
जल्द ही पकड़ लेगें
वे दौड़-दौड़ कर निकले हैं
लम्बा विश्राम जो उनकी जरुरत हो जायेगा
उन्हें वैसे ही थका देगा, सर
उनके पास पहुंच कर भी हम ज्यादा नहीं रुकेगें
बढ़ते ही रहेगें, सर
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तम्बाकू न खाओ, सर
बीड़ी भी ठीक नहीं
चढ़ाई में वैसे ही फूल-फूल जाती है सांस
हमारा क्या हमारा तो आना जाना ठहरा
आपका तो कभी-कभी आना ठहरा, सर।
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तुम्हारे सिर पर पसीना होगा
अभी चढ़ाई चढ़के आये हो,
टोपी उतारना ठीक नहीं
हमारी तरह साफा बांध लो सर
वरना हवा पकड़ लेगी 'सर"।




अतीश, पंजा, मासी-जटा जड़ी-बूटियों के नाम है
कीड़ा-झाड़ एक विशेष प्रकार की जड़ी। इसमें कीड़े के पेट से ही पौधा बाहर निकलता है। यानी जीव और वनस्पति की एकमय प्रमेय का साक्ष्य भी। इसका तिब्बति नाम है- यारक्षागंगू और अंग्रेजी नाम है- कार्डिसेप

5 comments:

Manas Path said...

अच्छी लगी लेकिन बहुउउउउउउत लंबी है.

Udan Tashtari said...

लम्बी कविता किन्तु पठनीय..अच्छा लगा.

आलोक श्रीवास्तव said...

कविता अच्छःई लगी सथ मे आप्का ब्लाग भी विजय जी ने ब्लाग का पता दिया सो धन्यवाद काफी अच्छी समाग्री जुटा रखी है ब्लाग पर................

KAMLABHANDARI said...

phir wahi kahna chhahungi sundar, ati sundar.

Arvind Mishra said...

यात्रा गीत ,रहस्य और रोमांच की छौक बघार ..मजा आ गया ...