(ल्वोचू खरगोश की कथा श्रंृखंला की यह तीसरी कड़ी है। चौथी और अंतिम कडी भी प्रस्तुत की जायेंगी. इंतजार करें.)
ल्वोचू खरगोश की कथा - तीन
जंगल के बीच घास के मैदान में एक रोज एक चरवाहे ने नीले रंग की मादा भेड़िया को जब अपनी भेड़ के मेमने को मुंह में दबोचते देखा तो तुरन्त पत्थर फेंक कर मारते हुए जोर से चिल्लाया। मादा भेड़िया अकबका कर मेमने को वहीं छोड़ अपनी जान बचाने के लिए भागी। पीछे से दौड़ते हुए चरवाहे से बचने के लिए उसे मजबूरन घाटी में बहने वाली नदी में कूदना पड़ा।
नदी के उस पार पहुंचकर सुस्ताने के लिए वह एक चटटान पर चढ़ गयी। ठंडे पानी से बाहर निकल उसने धूप सेंकनी चाही। तभी उसने चटटान की धार पर उगे एक पेड़ पर झूलते ल्वोचू खरगोश को देखा।
उसकी निगाहें खरगोश पर अटक गयी। उसने गौर से देखा और पहचान लिया कि यह तो वही खरगोश है जिसने उसके पति को मार डाला था। दौड़कर उसने छलांग लगायी और खरगोश को दबोच लिया, "दुष्ट, तुझे तो मैं कब से ढूंढ रही हूं। तूने मेरे पति की हत्या की। आज मैं तेरी जान लूंगी।"
खरगोश ने गिरफ्त में फंसे हुए भी धैर्य नहीं खोया और बड़े ही आत्मविश्वास से कहा, "श्रीमती जी, ऐसा मजाक न करें। मैं तो अदना सा जानवर हूं। आप हिमाच्च्छादित पर्वत की शेरनी है। आप स्वंय सोचे अपने इस मुटठीभर शरीर से मैं आपके पति की हत्या कैसे कर सकता हूं। मुझे तो इस बात को सुनकर हंसी ही आ रही है।" क्षणांश की लिए ढीली हुई पकड़ के साथ ही खरगोश ने अपने बदन को इस तरह से छुड़ाया कि उछलकर सीधे पेड़ पर जा बैठा और वहीं से बोला, "श्रीमती जी मैं तो आकाशचर खरगोश हूं। इस स्वर्ग के वृक्ष पर सवार होकर जगह-जगह जा सकता हूं। मनुष्यलोक की गतिविधियों के बारे में मुझे कुछ भी मालूम नहीं। कृपया आप मुझ पर अपना गुस्सा न उतारें।"
मादा भेड़िया ने आश्यर्च से आंखों को पूरा खोलते हुए कहा, "क्या ---? तू स्वर्गलोक तक उड़ सकता है ?"
''जी, जी ---" इठलाते हुए खरगोश बोला, "वैसे तो मैं अभागा ही ठहरा पर पूरी तरह नहीं। मेरा जीवन तो बस इसी स्वर्ग के वृक्ष पर निर्भर रहता हूं। कलम मैं इस पर सवार होकर चांद पर गया था। वहां खूब खेला। आज स्वर्ग के मैंदान में जाऊंगा। स्वर्ग में देवता रहते हैं। ढेरों रत्न और तरह तरह के व्यंजन वहां आसानी से मिल जाते हैं। मैं अभी जा ही रहा हूं बस। आपको कुछ चाहिए तो मुझे बता दें। क्या आपके लिए भेड़ों की हडि्डयां या भैंस के मोटे मांस के कुछ टुकड़े ठीक रहेगें ?"
इतना सुनते ही भेड़ के मुह से लार टपकने लगी। वह सोचने लगी, "स्वर्ग में तो हडि्डयों और मांस का ढेर लगा होगा। वहां तो सोने और खाने को आसानी मिल जाता होगा। क्या एक बार मैं नहीं जा सकती वहां !"
उसने खरगोश को पेड़ से नीचे उतर आने को कहा और स्वंय पेड़ पर बैठ गयी और वहीं से बोली, "तू किस तरह पेड़ पर बैठकर उड़ता है, जल्द से जल्द मुझे बता!"
मायूसी भरे चेहरे से खरगोश उसे देखता रहा और फिर अपने दांतों से पेड़ की जड़ कुतरने लगा। पेड़ चट्टान के एकदम किनारे पर था. तना बाहर, खायी में झुलता हुआ। जड़ के कुतरने पर पेड़ मिट्टी छोड़ने लगा और बची रह गयी कुछ जड़ों के सहारे खायी की ओर लटक गया। मादा भेड़िया पेड़ पर लटकी झूला झूलने लगी।
खरगोश ने चिल्लाकर कहा, ''श्रीमती जी डरें नहीं। बस आप कुछ ही समय में स्वर्गलोक में पहुंच जायेगीं।"
बड़ी ही लयात्मक मधुर आवाज में उसने कहा, "एक-दो-तीन, अब आप अपने पांवों को नीचे की ओर लटका जोर का झटका दें।"
जैसे ही मादा भेड़िया ने पांवों को लटकाकर झटका दिया, वह पेड़ के साथ-साथ गहरी गर्त में बह रही नदी की तेज धारा में पहुंच गयी।
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