Tuesday, June 10, 2008

बुलाकी का उस्तरा और राजधानी

व्यंग्य कथा

दिनेश चन्द्र जोशी 09411382560


बुलाकी को आप नहीं जानते होंगे,जानेंगे भी कैसे, कभी फुटपाथ में सिर घोटाया होता तो जानते भी। बहरहाल बुलाकी को जनवाने के लिये मैं आपका सिर नहीं घुटवाउंगा, आप निश्चिन्त रहें,हां,इस कथा को पढ़ने की जहमत अवश्य करें।

बालों की फ़िसलन पर

बुलाकी के बाप दादा गांव के पुश्तैनी नाई थे। गांव के जमीदारों,सेठ साहुकारों की हजामत बनाया करते थे.लोग कहते हैं उनके उस्तरे में ऐसी सिफत थी कि पता ही नहीं चलता था कब उस्तरा चला और बिना खूं खरोच के अपना काम कर गया। रही बात कैंची की, सुना है ऐसी चलती थी कि पचास फीसदी बाल कम हो जाने के बाद भी पता नहीं चलता था कि बाल कम हुए हैं. यानी कि बाल कट भी जायें और कटिंग हुई कि नहीं इस बात का पता भी न चले।

पहली छब्बीस जनवरी यानी आजाद नाऊ

इस फने हजामत के एवज में उन्हें इनाम इकराम भी खूब मिला करता था. सो, कहा जाता है कि बुलाकी के दादा के जमाने में घर की माली हालत अच्छी थी। बुलाकी के बारे में एक बड़ा दिलचस्प वाकया यह था कि सन पचास में जिस दिन पहली छब्बीस जनवरी मनाई गई,उसी दिन बुलाकी का जन्म हुआ। आजादी की लहर का जोर था और दूर दराज के कस्बों गांवों तक छब्बीस जनवरी मनाये जाने की खबर थी,सो इस कारण बुलाकी की जन्म तिथि लोगों की जुबान पर रट गई यहां तक कि शुरू शुरू में बुलाकी को गांव में कुछ लोग "आजाद नाऊ" के नाम से भी पुकारते थे। आजादी के बाद बुलाकी के बाप दादा का धन्धा हल्का पड़ गया,जमीदारों सेठ साहुकारों का रौबदाब घट गया,उनकी मूछों का बांकपन कम हुआ और हजामत के काम में भी वो बात नहीं रही जो पहले थी,सो बुलाकी के बाप को गर्दिश के दिन देखने पड़े।
थोड़ी बहुत खेती पाती और थोड़ा हजामत का काम चला कर बुलाकी के बाप ने किसी तरह बुलाकी व उसके भाई बहिनों को जवानी तक ला खड़ा किया। हजामत के फन में बुलाकी ने भी पुश्तैनी महारत अवश्य हासिल कर ली थी, लेकिन गांव में हजामत बनाने वालों, बाल कटवाने वालों और सिर घुटाने वालों को कस्बे और शहर की सैलून का फैशन भाने लगा था, दो चार बुजुर्गों व सयानों की खोपड़ी व हजामत के भरोसे बुलाकी का उस्तरा कब तक अपना काम चलाता,ऐसे नामुराद वक्त में एक रोज बुलाकी ने अपनी हजामत वाली बक्सिया उठाई और गांव के पास वाले नजदीकी कस्बे की ओर रूख कर लिया। कस्बे के चौराहे पर बरगद के पेड़ तले मौका देख कर उसने अपनी चटाई तथा हजामत वाली बक्सिया जमा दी।
कस्बे में बुलाकी का धन्धा ठीक ठाक चल पड़ा,कस्बे की आवादी गांव से कई गुना ज्यादा थी। आस पास के गावों से कई लोग कस्बे में सौदा सुलुफ,डाक्टर,हकीम तहसील,स्कूल, नून तेल राशन के चक्कर में आते थे। लगे हाथों कटिंग,मुंडन व हजामत भी बना लेते थे। बुलाकी एक तो सस्ता था ऊपर से मौके की जगह पर बैठा करता था,सो उसके उस्तरे की धार चमकने लगी। बाल तो वो काटता ही था लेकिन जो मजा उसे सिर घोटने में आता था,वो बात हजामत आदि में नहीं थी, सिर घोटने का तो वह एक्सपर्ट ही था। घोटते वक्त जब वह मस्ती में आ जाता था तो घुटे हुए सिर के इंच इंच हिस्से को उंगलियों से चटखाता मालिस करता हुआ चहक उठता था, ग्राहकों से कहता, "भय्या हम आदमी को चेहरा देख कर नहीं खोपड़ी देख कर पहचानते हैं, और अगर घुटी हुई खोपड़ी हो तो कहने ही क्या। एक बार जिस खोपड़ी को हमारा उस्तरा देख लेता है उसे ताजिन्दगी नहीं भूलता। चेहरा पहचानने में हमसे गल्ती हो सकती है,लेकिन खोपड़ी पहचानने में कतई नहीं होगी। आखिर भय्या,खोपड़ी ही तो हमारी रोजी रोटी है, रोजी रोटी को नहीं पहिचानेंगें तो जिन्दा कैसे रहेंगे।"

चेहरे से नही खोपडी से होती है आदमी की पह्चान

कस्बे में बुलाकी की दिनचर्या बड़ी मजेदार चल रही थी,लेकिन एक रोज ऐसा वाकया हुआ कि कस्बे से उसका मन उचट गया। हुआ यूं कि उस दिन सुबह सुबह बौनी के वक्त एक गोल मटोल भारी आवाज व सख्त गलमुच्छों वाली खोपड़ी बुलाकी के समक्ष घुटने के वास्ते प्रस्तुत हुई, खोपड़ी रौबीले अन्दाज में बोली, "ऐ नाऊ जी, फटाफट हजामत बनाओ,और सिर घोटो, जल्दी करो यह काम, टैम नहीं है।"
बुलाकी का उस्तरा यूं भी तैयार ही बैठा था,उसने चेहरे पर ज्यादा गौर न कर फटाफट हजामत बना दी, उसके पश्चात सिर घोटने लगा। यह सिर सामान्य सिरों से कुछ ज्यादा ही बड़ा व गोल मटोल था। इसे घोटने में बुलाकी को बड़ा मजा आया।
काम हो चुकने के बाद भारी भरकम आवाज वाली वह खोपड़ी सिर पर चादर लपेट कर,बुलाकी के हाथ में पांच का नोट पकड़ा कर चलती बनी, बकाया पैसे लौटाने के लिए उसने आवाज मारी,पर खोपड़ी इतनी त्वरित गति से चली गई कि बुलाकी को वे पैसे रखने ही पड़े। बुलाकी को वह व्यक्ति कुछ रहस्यमय कुछ संदिग्ध कुछ भयानक तो अवश्य लगा लेकिन अन्य ग्राहकों में व्यस्त हो जाने के कारण उसके दिमाग से यह बात जाती रही।
उसी दिन दोपहर तीन बजे के लगभग दो पुलिस वाले बुलाकी के पास अकड़ते हुए आये और एक मुच्छैल भयानक किस्म के आदमी का फोटो दिखाते हुए बोले, "देखो, ये आदमी तुम्हारे पास हजामत बनाने तो नहीं आया था।"
बुलाकी ने फाटो को गौर से देखा, चेहरा गलमुच्छों से इतना भरा हुआ था कि स्पष्ट रूप से नजर ही नहीं आ रहा था, हां, सिर का आकार लगभग वैसा ही था।
बुलाकी बोला, "हुजूर, चेहरे पर तो हम ध्यान नहीं दिये,लेकिन एक मूछों वाला आदमी सुबह सुबह बौहनी के वक्त आया था, वह हजामत बनवा ले गया साथ ही सिर भी घुटवा ले गया,हमारे हाथ में पांच का नोट रख कर चला गया। उसके घुटे हुए सिर की तस्वीर हो तो हम पा बता सकते हें कि वही आदमी था।"
पुलिस वाले बुलाकी पर बिगड़ गये,बोले,"तुम साले कैसे नाई हो, आदमी का चेहरा न पहचान कर खोपड़ी पहचानते हो, आईन्दा से चेहरा पहचाना करो, और स्साले गुंडे बदमाशों से घूस लेते हो." उन्होंने बुलाकी को डराया धमकाया साथ ही उसको दो डंडे जमाते हुए बोले,जानते हो वो आदमी जिले का एक नम्बरी गुंडा है,दसियों हत्याओं का इल्जाम है उसके उपर जिसकी तुमने हजामत बनाई है।"
बुलाकी बोला,"सरकार आईन्दा ऐसी गल्ती नहीं करूंगा और चेहरा देख कर उस्तरा चलाउंगा।"


समय सिखा देता है जीवन के रंग ढंग

इस घटना से बुलाकी बेहद परेशान व चिन्तित हो उठा, कस्बे से उसका जी उचट गया। उसके दिल में कस्बे से पलायन की हूक उठने लगी। इस बावत उसने जुगाड़ भी लगाना शुरू कर दिया। नतीजा यह निकला कि उक्त घटना को घटे दो माह भी नहीं बीते होंगे कि बुलाकी जी, कस्बे से कूच कर अपने जिला मुख्यालय की कचहरी के बाहर एक चबूतरे के कोने में अपनी चटाई और बक्सिया सहित जम गये।
जिला मुख्यालय का तो नजारा ही कुछ और था, फिर कचहरी के तो कहने ही क्या।
मुवक्किल, मुहर्रिर वकीलों, पेशकारों के अलावा शहर, गांव, देहात के लागों का रेला हर समय लगा रहता था। पान,सिगरेट,फल चाय,समोसा खस्ता पूड़ी वालों की दिन भर चांदी रहती थी।
चबूतरे के पास ही पीपल के नीचे तीन चार नाई और बैठते थे, उनके पास बकायदा कुर्सी,शीशा,तौलिया व हजामत वाली क्रीम आदि भी थी। उनकी आमदनी भी ठीक थी। बुलाकी ने फिलहाल अपनी चटाई व बक्सिया से ही काम चलाना शुरू किया। उसके हुनर व कारीगरी से प्रसन्न हो कर ग्राहकों की संख्या दिनों दिन बढ़ने लगी. सो जिला मुख्यालय में बुलाकी का काम बढिया चल निकला। समय का पहिया चलता रहा और कब जिला मुख्यालय में बुलाकी को चार पांच वर्ष बीत गये,पता ही नहीं चला।
इस बीच बुलाकी ने वकीलों ,बाबुओं, अफसरों के घर जाकर छुट्टी के रोज उनके बाल काटने का कार्य प्रारम्भ कर के 'डोर टू डोर' सेवा प्रारम्भ कर दी। यहां तक कि उसने दो एक जजों को भी अपने हुनर से प्रसन्न करके उनको नियमित ग्राहक बना लिया था। इस दौरान वह शहरी शिष्टाचार,सीप शउर,चुश्ती नर्ती, बोली बानी व चुतराई से भी वाकिफ हो गया था। उसका भोला देहातीपन कम होता गया और एक शहरी तेज तर्रार किस्म के आदमी के व्यवहार की नकल उसको भाने लगी। अपने उस्तरे के फन की बदौलत उसने कुछ रकम भी जोड़ ली थी सो अपने स्टैन्डर्ड में कुछ इजाफा किया और चटाई बक्सिया के बदले कुर्सी,शीशा व तौलिया वाला स्टेटस हासिल कर लिया।

मेरा मुंडन कोई न कर पायेगा

बुलाकी के राजधानी में बैठने की व्यवस्था क्या हुई कि उसने अपने मृद व्यवहार और मेहनत से आस पास के दुकानदारों,ठेले रेहड़ी पान वालों से दोस्ती गांठ ली, धन्धा भी धीरे धीरे चलने लगा,ग्राहकों की संख्या में आहिस्ता आहिस्ता बृद्धि होने लगी। बुलाकी का परिचय क्षेत्र बढ़ने लगा, राजधानी उसे रास आई। महीने दो महीने में सामूहिक घुटन्ना करवाने वालों की भीड़ चली आती थी। बुलाकी के उस्तरे को अपने करतब का भरपूर प्रदर्द्रान करने का मौका मिलने लगा। उसके अतिरिक्त कैंची का कमाल और हजामत का हूनर भी फलदायी साबित हो रहा था, लिहाजा राजधानी में बुलाकी प्रसन्न था,आमदनी भी बढ़ती जा रही थी। बुलाकी ने 'डोर टू डोर' सर्विस यहां भी जारी रक्खी। छुट्टी के दिन वह आसपास के रिहायशी इलाकों में जाकर सेवा प्रदान कर आता था, इसी सिलसिले में उसने विधायक निवास व मंत्री आवासों तक अपनी पंहुच बना ली थी। वहां पर विधायकों, नेताओं, छुटभय्यों, चमचों व क्षेत्र से आये हुए कार्यकर्ताओं समाजसेवकों, सेविकाओं, खक्ष्रधारियों, गुंडे बदमाशों, मुच्छैल हट्टे कट्टे विशालकाय महापुरूषों की भीड़ भाड़ व आवाजाही लगी रहती थी। वे लोग, दाड़ी हजामत बाल बनवाने हेतु बुलाकी की सेवायें प्राप्त कर लेते थे। इस प्रकार राजधानी में बुलाकी पूरी तौर पर फिट हो चुके थे । राजनैतिक क्षेत्र में भी उनके उस्तरे ने दबदबा बना लिया था। कारोबार भी उसने बढ़ा लिया था, लकड़ी की पक्की दुकान बना कर उसमें शीशा,कुर्सी,कलेन्डर क्रीम,तौलिये का इंतजाम करके दुकान को 'सैलून' का दर्जा दिलवाने योग्य अर्हतायें प्राप्त कर ली थी। एक दो लड़के भी सहयोगी के तौर पर रख लिये थे। कुल मिला कर बुलाकी जी राजधानी के सुपरिचित नागरिक बन गये थे,सिर्फ गांव से बच्चों को लाने की देर थी। जमीन के एक टुकड़े पर छोटी सी कुटिया बनाने की योजना भी उनके दिमाग में आकार लेने लगी थी। इस सारी उन्नति व जमजमाव के चलते बुलाकी को राजधानी में आये हुए आठ दस वर्ष हो गये थे। गांव से कस्बे को कूच करते युवा बुलाकी अब अधेड़ावस्था में पदार्पण कर चुके थे। बालों में सफेदी आ गई थी, चेहरा प्रौढ़ हो गया था, आंखों से उम्र व अनुभव की झलक नजर आने लगी थी। उस्तरा निरन्तर कार्यरत था, आये रोज उस्तरे को राजधानी के अनेकों महापुरूषों के मुंडन करने का सौभाग्य प्राप्त होता जा रहा था।
इसी क्रम में एक रोज बुलाकी के पास कालीदास रोड स्थित मंत्री आवासों में तत्काल पंहुचने का आदेश प्राप्त हुआ। हुआ यह था कि माननीय न्याय मंत्री जी की माता जी का स्वर्गवास हो गया था सो मुंडन हेतु नाई की आवश्यकता थी। बुलाकी से ज्यादा इस काम में सक्षम और कौन हो सकता था। बुलाकी ने तुरन्त इस नेक काम में सहयोग देना प्रारम्भ कर दिया। माननीय मंत्री जी के मुंडन से पूर्व अनेकों छूटभय्ये, चेले चमचे सहयोगी, शुभचिन्तक मुंडन हेतु प्रस्तुत हो गये। मंत्री जी उनकी वफादारी से प्रसन्न हुए,उनका ह्दय पसीज गया।
सेवकों के मुंडन के पश्चात अन्त में मंत्री जी मुंडन हेतु प्रस्तुत हुए। बुलाकी ने उनकी सेवा में अतिरिक्त सावधानी व सफाई से उस्तरा चलाना प्रारम्भ किया। नाम व गुण के अनुरूप मंत्री जी का सिर अन्य सिरों की अपेक्षा ज्यादा बड़ा व गोलाकार था, बुलाकी ने अभी एक तिहाई सिर घोटा ही था कि उसे यह सिर पूर्व परिचित लगा, आधा सिर घोटने के पश्चात तो वह अचानक चौंक कर कांप सा गया, यह तो वही सिर था जिसकी बदौलत कस्बे में पुलिस के डंडे खाये थे। लेकिन यह कैसे हो सकता है, कहां वह गुंडे बदमाद्रा का सिर और कंहा मंत्री जी का। नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता, मुझसे ही कोई गल्ती हो रही है,बुलाकी अजीब पेशोपेश में पड़ गया। पर सिर पहचानने में मुझसे गल्ती नहीं हो सकती चाहे कुछ भी हो जाय,यह सिर सौ फीसदी वही है। बुलाकी डरा,सहमा व आश्चर्यचकित था। किसी तरह इसी मनोदशा में उसने पूरा सिर घोटा,उसके समक्ष वही कस्बे वाला विशाल सिर सम्पूर्ण रूप से साकार हा उठा। डर व भय से बुलाकी का हाथ कांपा और मंत्री जी के कान के पास उस्तरे की हल्की खरोंच सी लगी,मंत्री जी थोड़ा क्रुद्ध से हुए उन्होंने पलट कर बुलाकी का चेहरा घूरा,इससे पूर्व कि बड़बड़ाते,झुंझलाते उनकी तीक्ष्ण सृमति ने बुलाकी को चीन्ह लिया,क्रोध के बदले चेहरे पर आत्मीयता के भाव उभरे,सेवक लोग इस बीच गुस्ताखी के लिए बुलाकी पर बरसने ही वाले थे कि मंत्री जी बोल पड़े,"अरे भाई,नाऊ जी से कोई गल्ती नहीं हुई है, हमही सिर हिला दिये थे,सो खरोच लग गई। इसके साथ ही उन्होंने एक सेवक को हिदायत दे डाली, तुरन्त एक दूसरा नाई बुला कर इनका भी मुंडन किया जाय,ये अपने गांव जवांर के आदमी हैं,ऐसे मौकों पर गांव बिरादरी के लोगों का मुंडन जरूरी होता है,माता जी की आत्मा कों शान्ति मिलेगी।'
बुलाकी बड़ी असमंजस की स्थिति में था,उसने सेवक जी से दूसरा नाई लाने हेतु मना कर दिया,और जिन्दगी में पहली बार अपने ही हाथों से अपना मुंडन करने लगा।


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1 comment:

अनुनाद सिंह said...

आपके ब्लाग पर आकर बहुत उत्कृष्ट साहित्य पढ़ने को मिला। साधुवाद!

किन्तु लगता है कि आपके ब्लाग के बारे में अभी हिन्दी पाठकों को पता नहीं है। आप 'नारद', 'ब्लागवणी', आदि पर अपने ब्लाग की सूचना दे दें तो सबको पता चल जाय और यहाँ भी चहल-पहल हो।