(एक पुरानी कविता)
विजय गौड
आस्थओं का जनेऊ
कान पर लटका
चौराहे पर मूतने का वर्ष
बीत रहा है
बीत रहा है
प्रतिभूति घोटालों का वर्ष
सरकारों के गिरने
और प्रतिकों के ढहने का वर्ष
अपनी अविराम गति के साथ
बीत रहा है
सोमालिया की भीषण त्रासदी का वर्ष
हड़ताल, चक्काजाम
और गृहयुद्धों का वर्ष
अपने प्रियजनों से बिछुड़ने का वर्ष
हर बार जीतने की उम्मीद के साथ
हारने का वर्ष
2 comments:
इस समय जब अन्य ब्लाग पर ६ दिसम्बर १९९२ का बोलबाला हे ; आपने दिसम्बर को जिस अन्दाज मे याद किया है वह पसन्द आया.
अच्छा लगा !
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