कवि और पत्रकार अरूण आदित्य की यह टिप्पणी हबीब तनवीर के नाटक चरणदासचोर पर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के प्रतिरोध में प्राप्त हुई है। पाठकों से अनुरोध है कि प्रतिरोध की इस मुहिम को आगे बढाएं।
अरूण आदित्य
सतनामी समाज बरसों से इस नाटक को देखता आ रहा है। इसमें कुछ सतनामी कलाकारों ने काम भी किया है। फिर अचानक आपत्ति क्यों हो गई ? इसके पीछे क्या कारण हैं ? और कौन इसे संचालित कर रहा है, इन सब चीजों की गहराई में जाना होगा। सतनामी समाज को विश्वास में लेकर ही यह लड़ाई लडऩी चाहिए, ताकि छत्तीसगढ़ सरकार की विभाजनकारी नीति की पोल खोली जा सके। सतनामी समाज की आपत्ति की आड़ लेकर चरणदास चोर को प्रतिबंधित करना अगर जायज है तो क्या इसी तर्क का आधार पर ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताडऩा के अधिकारी जैसी चौपाई पर स्त्रियों और शूद्रों की आपत्ति के कारण रामचरित मानस पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है? क्या छत्तीसगढ़ सरकार ऐसा करने की हिमाकत कर सकेगी?
2007 में एक साक्षात्कार के दौरान हबीब साहब ने कहा था-‘सवाल सिर्फ मेरे नाटकों का नहीं है। सवाल अभिव्यक्ति की आजादी का है। आप कोई फिल्म बनाते हैं, तो बवाल हो जाता है। पेंटिंग बनाएं तो बवाल। लेखक को भी लिखने से पहले दस बार सोचना पड़ता है कि इससे पता नहीं किसकी भावना आहत हो जाए और जान-आफत में। दुख की बात यह है कि सरकार इस सब पर या तो चुप है, या उन्मादियों के साथ खड़ी नजर आती है।'
उनकी बात एक बार फिर सही साबित हो गई है।
3 comments:
बिल्कुल इसका मुखर विरोध किया जाना चाहिए और यदि संभव हो तो सभी संस्कृतिकर्मी, पत्रकार-कलाकार, साहित्कार अपने अपने क्षेत्रों में इस प्रतिबंध के विरोध में प्रदर्शन भी करें, ये प्रदर्शन कभी कभी बम के धमाकों से कम नहीं होते और बहरों को सुनाने के लिए बम के धमाकों की जरूरत होती है....
मैं भी इस प्रतिबंध का विरोध करता हूं.
Arun ji ki baat se sahmat hoon.
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