लेखक सिर्फ एक माध्यम है। लेखन मूलत: एक सामुदायिक-नैतिक क्रिया है। यह गहरी जिम्मेदारी की माँग करता है। शब्द मानव अस्मिता के प्रतिफल होते हैं। शब्द-चर्चा को शोध माना जाता है। थोड़ा सा खिलावाड़ भी सहज माना जा सकता है। लेकिन प्रतिष्ठित कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह त्रिलोचन पर लिखे अपने संस्मरण में "जोबन" शब्द पर लिखते हुए गरीब दलित महिला के सम्मान की चिंदि्या उड़ा देते हैं। आधार शिला पत्रिका के त्रिलोचन केन्द्रित अंक में प्रकाशित आलेख "एक विरोधाभास त्रिलोचन" में वर्णित घटना सच है या नहीं लेकिन त्रिलोचन के पिता से लेकर आज तक की सामन्ती सड़ांध का पता जरूर लग जाता है। लेखक ने जिस गैर-जिम्मेदारी से एक घृणित प्रकरण को लिखा है वह सदमे में डालने वाला है। त्रिलोचन पर केन्द्रित इस विशेषांक में विद्वान कवि त्रिलोचन और जाने-माने कथाकार अब्दुल बिस्मिल्लाह की प्रतिष्ठा में कोई इजाफा नहीं होता। भर्त्सना के सिवाय कुछ नहीं सूझता है। पीड़ित बहन का हम दिल से समर्थन करते हैं।
-राजेश सकलानी
3 comments:
यह अंक अब तक देख नहीं पाय हूं सो विजय भाई कुछ कह पाना संभव नहीं होगा।
ye lekh padhva deejiye
मुझे पढ़ना होगा.. संभव हो, तो मुझे इसकी कॉपी दिलवाने का कष्ट करें...
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