इबार रब्बी की कविता-3
दस
बस 10 बरस बचे हैं
जो कुछ करना है कर लीजिये
मकान बनवा लीजिये
किताब छपवा लीजिये
यश कमा लीजिये
देश को सम्हालिए
राष्ट्र को हिलाइए
समाज को बदलिए
10 बरस से पहले
बस 10 बरस बचे हैं
जल्दी कर लीजिये
जो कुछ करना है
निबट लीजिये
अब छोडिये यह दुनिया
कब तक लदेंगे आप
दृश्य बासी हुआ
फीकी बरसातें
बसंत सूखा सूखा
उतरिये इस गधे से
किसी और को चढ़ने दीजिये
आप दौड़े भी नहीं
रुके भी नहीं
आपने कमाल किया
जीए भी नहीं मरे भी नहीं
अब बस कीजिए
इस धरती पर रहम कीजिये
कीड़े मकोड़े कुछ तो कम कीजिये
थोड़ी सी, थोड़ी सी
बस तिल भर गन्दगी दूर कीजिये
आपने पीया भी नहीं
पीने भी नहीं दिया
हटिये
लोगों को नहाने दीजिये
2 comments:
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
क्या खूब कहा आपने वहा वहा क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
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