संस्कृत विभाग
के उपाचार्य पहले एक साहब थे जिनका नाम संस्कृत के आन्दोलन में कुछ-कुछ लिया जाता
है.ग्रिफिथ साहव के स्थान में, उनके प्रिन्सिपल बनने पर, डाक्टर थीवी जर्मनी से
लाये गये.उनकी विद्या और विशेषतः परिश्रम की धूम मची हुई थी.गर्मियों में रात की
आँधी में न बुझने वाला लैम्प जलाकर ग्यारह बजे तक उन्हें पढ़ते देख एक आदमी ने
आश्चर्य प्रकट किया.उत्तर मिला कि रात को गणित का फिर से अभ्यास किया करते हैं और
इस प्रकार किसी भी पढ़े हुए विषय का ज्ञान बासी नहीं होने देते.आते ही पं०
बालशास्त्री से दर्शनशास्त्र का पढ़ना और संस्कृत संभाषण का अभ्यास आरम्भ कर
दिया.थोड़े दिन पीछे ही षाण्मासिक परीक्षा में संस्कृत के परीक्षक हुए.एक भी
अनुत्तीर्ण न हुआ.यह पहले यूरोपियन थे जिनकी दाढ़ी के साथ मूँछों का भी सफाया मैंने
देखा.प्रसिद्ध यह था कि धर्मशास्त्र में उच्चिष्ट की निन्दा सुनकर इन्होंने मूँछ
मुड़ा ली है , जिससे बालों में उच्चिष्ट न फँस जाए.
गणित के
प्रोफेसर मिस्टर राजर्स भी अपने विषय में निपुण थे और उन्हीं के पढ़ाये हुए, उनके
शिष्य, लक्ष्मी नारायण मिश्र सहायक प्रोफेसर थे और पीछे से गणित-साइन्स, दोनों के
प्रोफेसर हो गये.
इतिहास के प्रोफेसर
इङ्लिस्तान से एक सिफारिशी युवक बुलाये गये,जिनको अयोग्यता के कारण कोई डिग्री न
मिल सकी तो उन्हें बनारस कालिज के गले मढ़ा गया.इनको विद्यार्थी बहुत तंग किया करते
थे और इनकी इतिहास से अनभिज्ञता की पोल खोला करते थे.
अंग्रेजी के
सहायक प्रोफेसर दो हिन्दुस्तानी एम०ए० थे-एक बाल्कृष्ण भट्ट और दूसरे उमाचरण
मुकर्जी.ये दोनों भी अपने विषय में बहुत योग्य थे, जिनमें भट्टजी तोसदाचार की
मूर्ति थे.दोनों ही कालिज के अतिरिक्त एण्ट्रेंस की दोनों कक्षाओं को भी पढ़ाया
करते थे.रह गये दो प्रोफेसर उन विषयों के जो गौण सस्मझे जाते हैं .अंग्रेजी उस समय
मुख्य भाषा समझी जाती थी.ब्रिटिश गवर्नमेंट के स्कूलों और कालिजों में अब भी मुख्य
भाषा अंग्रेजी और संस्कृत तथा फारसी-अरबी दूसरी वा गौण भाषा समझी जाती हैं.संस्कृत
के उपाध्याय पण्डित रामजसन थे जो प्रिन्सिपल ग्रिफिथ को संस्कृत से अंग्रेजी उल्था
में भी सहायता देते थे.इसके अतिरिक्त किसी विशेष आश्रय पर इनका ग्रिफिथ साहब पर
बड़ा अधिकार था.यही कारण था कि इनके बड़े लड़के लक्ष्मीशंकर मिश्र एम०ए०पास करते ही
प्रोफेसर बन गये.दूसरे उमाशंकर अंग्रेजी में फ़ेल होकर बिजनौर जिला के ताजपुर के
राजा के पुत्रों के अध्यापक नियत होकर
भेजे गये और तीसरे रमाशंकर मिश्र एम०ए० परीक्षोत्तीर्ण होते ही पहले बनारस कालिज
केमें गणित के सहायक प्रोफेसर और फिर अलीगढ़ मेंस्थापित नये ऐंग्लो महम्मडन कालिज के गणित के मुख्य प्रोफेसर
बन कर गये.