ब्राजीली कहानी
--- लोरेना लियान्द्रो
मैंने
जरा भी बुरा नहीं माना जब तुम मुझे बड़ी बेरुखी से पीठ दिखा के दूसरे कमरे
में चले गए थे , मैं ठगी सी वहीँ खड़ी की खड़ी रह गयी। मैं तुम्हारी
मिन्नतें करती रही और तुम मुझे अनसुना कर के अपने मन की ऊल ज़लूल करते रहे
,तब भी मुझे बुरा नहीं लगा। तब भी नहीं जब तुम मेरी आँखों के सामने खुली
सड़क पर यहाँ वहाँ भागते रहे और उन तमाम आज़ादियों का लुत्फ़ उठाते रहे जिनकी
मेरे घर के अन्दर तो बिलकुल गुंजाइश नहीं थी। कई बार ऐसा भी हुआ कि तुम
अपना गुस्सा थाम न पाए और मुझपर झपट पड़े … मुझे नोंच खाया , तब भी मैंने
सहज भाव से सब स्वीकार करती रही।
देखो , मैंने उन मौकों को भी बिलकुल तूल नहीं दिया जब
घर आये मेहमानों की आँखों के सामने तुमने मेरी इज्ज़त तार तार कर डाली। रात
रात भर जब तुम खुराफ़ात और मौज में घर में धमा चौकड़ी मचाते रहे और एकपल को
भी मुझे सोने नहीं दिया ,तब भी मैंने धैर्य नहीं खोया…. उस समय भी नहीं जब
तुमने मेरे घर के फर्नीचर और दूसरी चीजों की बिलकुल परवाह नहीं की और तोड़
फोड़ करते रहे। यहाँ तक कि सर्दी की रातों में मेरे साथ सोते हुए तुम मुझे
कम्बल से धकेल धकेल कर बाहर खिसकाते रहे ,तब भी मैंने तुम्हें कुछ नहीं
कहा। एक एक कर के मेरी प्रिय चीजों पर जैसे तुम हक़ जताते रहे ,तब भी मैं
बगैर किसी बात का बतंगड़ बनाये सब कुछ शान्त भाव से सहती रही। कई बार
तुम्हारे साथ रहते हुए खीझ भी होती कि फलाँ चीज तुम्हें पता क्यों नहीं ,पर
उसका भी बुरा नहीं लगा। दिनभर की थकान के बाद जब मैं थकी हारी बिस्तर पर
निढ़ाल हुई और तब तुम्हें खेल ठट्ठा सूझने लगता ,तब भी कोई मौका ऐसा नहीं
आया जब मैंने तुमपर कोई गुस्सा दिखाया हो। दीनार की मेज पर मुझे इमोशनली
ब्लैकमेल का तुम्हारा ढब मुझे आहत करता था ,फिर भी मैंने यह सब तुम्हें
करने दिया।
निपट अकेले रह कर मनमर्जी जीवन जीने के तमाम मौके तुमने मुझसे छीन लिए
,पर मुझे इनका भी अफ़सोस नहीं हुआ। पर अब जब इन सारी बातों और मौकों के
बावजूद आज मैं चारों ओर भाग भाग के तुम्हें ढूँढ रही हूँ … तुम मुझसे दूर
भागते जा रहे हो , कहीं तुम्हारा नामो निशाँ नहीं दिखाई दे रहा है। अब मुझे
समझ आने लगा है कि तुम्हारा लौटना मुमकिन नहीं… अब मैं तुम्हें देख
नहीं पाऊँगी।
ओ मेरे प्रिय कुत्ते ,और कुछ तो नहीं पर अब तुम्हारी
गैर मौजूदगी मुझपर भारी पड़ने लगी है …. तुम्हारे रहते कभी मुझे बुरा नहीं
लगा ,अब तुम्हारी अनुपस्थिति मुझे बेहद खल रही है।
अनुवााद एवं प्रस्तुति : यादवेन्द्र
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