मेरी उम्र चालीस
के पास पहुंच रही थी उस वक्त। आपको ख्याल नहीं था। चंदा भाभी को भी ख्याल नहीं
रहा होगा। मुझे याद नहीं भाभी ने न जाने क्या मजाक किया था, आपकी मुस्कराहट याद
है बस, और याद है वह जवाब जो मैंने उस वक्त दिया था। चंदा भाभी नहीं जानती थी कि
मैंने वैसा जवाब क्यों दिया। आप समझ गए थे पर। आपके चेहरे की मुस्कराहट बुझ गयी
थी। कही गयी बात को सुनते हुए बोलने वाले के भीतर चल रही प्रक्रिया को जानने का
आपमें खूब सलीका था। रंगकर्मी जो थे आप। एक रंगकर्मी की पहचान ही है यह कि वह न
सिर्फ अपनी ‘एक्जिट’ और ‘एंट्री’ से अपने पात्र का परिचय दे दे बल्कि अपने पात्र
को तैयार करते हुए ऐसे कितने ही लोगों के चलने बोलने, देखने, सुनने, मुस्कराने, रुठने
जैसे भावों का अध्ययन करे। आप जानते थे कि मेरे और आपके बीच वह लम्बे समय का
अंतरंग साथ कुछ कम हुआ है। ऐसा आपको इसलिए भी लग सकता था कि आपके जबलपुर स्थानांतरित
हो जाने के बाद हमारा हर वक्त का साथ नहीं रहा था। जबकि असल वजह इतनी भर नहीं थी,
आप अब पहले वाले आमेप्रकाश वाल्मीकि नहीं रहे थे, हिन्दी के ‘सुपर स्टार’ लेखक
हो चुके थे। अपने इर्द गिर्द एक घेरा खड़ा कर लेने वाले लेखक के रूप में जाने जाने
लगे थे। अब आपको लौटती हुई रचनाओं के साथ किलसते हुए देखने वाला कोई नहीं हो सकता
था। बल्कि आज यहां का बुलावा तो कल वहां के बुलावे पर आपको हर दिन कहीं न कहीं
लेक्चर देने जाने के जाते हुए देखने पर हतप्रभ होने वाले लोग ही थे। मेरा संबंध
तो उस वाल्मीकि से नहीं था। मैं तो उस वाल्मीकि को जानता था जो मेरा आत्मीय ही
नहीं, सबसे करीबी मित्र और बड़ा भाई था। अपनी उस फितरत का क्या करूं जो महानता को
प्राप्त हो गये लोगों के साथ मुझे तटस्थ रहने को मजबूर कर देती है। तब भी हल्के
फुल्के और थोड़ा मजाकिया लहजे में ही मैंने चंदा भाभी की बात का जवाब दिया था,
‘’देखो अब मुझे अठारह साल का किशोर न समझो भाभी। आप लोगों से भी ज्यादा उम्र हो
गई मेरी।‘’
भाभी मेरी बात पर
चौंकी थी। चौंके तो आप भी थे। क्योंकि वास्तविकता तो यही है कि उम्र तो हर व्यक्ति
समय के सापेक्ष ही बढ़ती है। दरअसल उस वक्त मेरे मन एकाएक ख्याल उठा था कि हम जब
करीब आए थे आपकी उम्र कितनी रही होगी। आपको याद होगा कि कुछ ही देर पहले आपने
बताया था कि बस दो साल रह गए रिटायरमेंट के। उस वक्त हम मार्च 2009 के अप्रैल की
धूप ही तो सेंक रहे थे आपके आवास की बॉलकनी में बैठकर। अपनी बात को स्पष्ट करते
हुए मैंने कहा था,
‘’अच्छा बताओ भाभी जब हम पहली बार मिले थे आपकी उम्र कितनी थी
?’’
वे समय का अनुमान लगाते हुए कुछ गिनती सी करने लगीं थीं। आपके मन में भी कोई
ख्याल तो आया ही होगा। वे जब तक जवाब तक पहुंचती, मैंने उनका रास्ता आसान कर
देना चाहा था,
‘’मैं बताता हूं, 37 या 38 के आस-पास ही रही होगी।‘’
वे खामोशी से
मुझे सुनती रहीं। आप भी। मेरा बोलना जारी था,
‘’तब बताइये, आज मैं चालीस पूरे करने
की ओर हूं... तो हुआ नहीं क्या आपसे बड़ा?’’
भाभी बहुत जोर से हंसी थी और एक धौल
जमाते हुए उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा था,
‘’चल निगोड़े’’
आपके चेहरे पर बहुत
धूमिल सी मुस्कराहट ठहर गई थी। वैसे आप
भी जानते होंगे रंगमंच मेरा भी क्षेत्र रहा और मैंने चेहरे की मुद्रा के बावजूद
मुस्कराहट को मुस्कराहट की तरह नहीं पकड़ा था।
#स्मृति
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-11-2017) को "नागफनी के फूल" (चर्चा अंक 2791) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्रेरक रोचक प्रसंग। संस्मरण विधा का उत्तम उदाहरण।प
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