Saturday, November 17, 2018

वर्णीय दायरे के क्षैतिज विभाजन


कवि, कथाकार एवं विचारक ओमप्रकाश वाल्मीकि की स्मृति


शवयात्रा’’ आपकी ऐसी कहानी है जिससे जाति व्‍यवस्‍था के उस मकड़जाल को देखना आसान हो जाता है, जो संकोच में डूबी आवाज का भी कारण बनती है। जाति के मकड़जाल में घिरे हुए लोग ही अमानवीयता को झेलते रहने के बावजूद खुद को दूसरे से श्रेष्‍ठ मानने के मुगालते में जीते रहते हैं। इतना ही नहीं, अक्‍सर खुद को ‘कमतर’ मानने वाली मानसिकता में डूबे लोग भी झूठी श्रेष्‍ठता को ही सत्‍य मानकर खुद के संकोच में डूबे रहते हैं। जातिगत विभाजन की रेखाएं जो चातुर्व्‍णय दायरे के ऊर्ध्‍वाधर खांचों के साथ-साथ क्षैतिज विभाजन के विस्‍तार तक फैली हुई हैं, श्रेष्‍ठताबोध से भरी क्रूरता का नैतिक’ आधार बनी रहती हैं। ऐसे में वे संकोच में डूबी आवाज को चुनौती भी कैसे मान सकती हैं भला। यदि कोई भिन्‍न स्‍वर दिखता भी है तो उसे व्‍यक्तिगत मान लेने की वजह ढूंढी जाती है, ताकि उसके प्रभाव के प्रसारण के विस्‍तार को रोका जा सके।  ‘’शवयात्रा’’ ऐसी कहानी है जिसने दलित बुद्धिजीवियों के बीच भी बहस को गरम कर दिया था और उसमें दलितों में दलित वाले आपके पक्ष को ‘दलित एकजुटता’ के लिए घातक मानने की बात की जा रही थी और आपके पक्ष को आपके जीवन के जाति- यथार्थ के साथ देखने के दुराग्रह खड़े किये जा रहे थे।
  

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-11-2018) को "किसी कच्ची मिट्टी को लपेटिये जनाब" (चर्चा अंक-3159) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

शिवम् मिश्रा said...

ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 17/11/2018 की बुलेटिन, " पंजाब केसरी को समर्पित १७ नवम्बर - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !